विदेशी निवेशक केयर्न और वोडाफोन दोनों मामलों के परिणामों के लिए सरकार की प्रतिक्रिया देखेंगे
एक और दिन, और भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक और मामला हार गया। भारत सरकार (जीओआई), केयर्न एनर्जी के साथ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता में हार गया और उसे कर मामले में 1.4 बिलियन डॉलर (लगभग 10,400 करोड़ रुपये) का भुगतान करने का आदेश दिया गया है। एक बहुत बड़ा सवाल उठता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मंचों में बार-बार मामले क्यों हारता है। कल (24 दिसंबर) को, वित्त मंत्रालय ने वोडाफोन मामले में एक अन्य अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता फोरम के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का फैसला किया, जिसने जुर्माना लगाया था और लगभग 5.3 मिलियन डॉलर की कानूनी फीस का भुगतान करने के लिए कहा था।
यह अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता मंचों पर सहमत होने के लिए भारत सरकार की दोहरी चाल है, जब ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं, तो कंपनियों को भारतीय नियमों का पालन करना चाहिए। लेकिन कभी-कभी भारत सरकार द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को प्राथमिकता देती है और मामलों को भारतीय कानूनों से बाहर रखती है – फिर इसी वजह से विदेशों में अपमानित होती है। केवल व्यवसायी और उनके वकील इन मध्यस्थता मंचों में पैसा छापते हैं। सबसे बुरी बात यह है कि दोनों ही मामलों में आदेश निर्विरुद्ध थे क्योंकि मध्यस्थता में भारत द्वारा नामित व्यक्ति भी भारत के खिलाफ गया था!
आदेश के अनुसार भारत सरकार को मध्यस्थता की लागत के साथ-साथ केयर्न को हुए कुल नुकसान और परेशानी की क्षतिपूर्ति करने के लिए कहा गया है।
पीगुरूज ने वोडाफोन के अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता मामले में संदिग्ध खेलों पर कई रिपोर्ट्स की श्रंखला प्रकाशित की है। आप उन्हें इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं[1] ।
केयर्न मामला
23 दिसंबर को, भारत को यूके की केयर्न एनर्जी पीएलसी को 1.4 बिलियन अमरीकी डालर तक की रकम वापस करने का आदेश दिया गया, क्योंकि एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मंच पूर्वव्यापी रूप से की गयी कर की मांग से पलट गया। तीन सदस्यीय न्याधिकरण (ट्रिब्यूनल), जिसमें भारत सरकार के एक उम्मीदवार भी शामिल थे, ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि 2006-07 में केयर्न के भारत के व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन पर पिछले करों में 10,247 करोड़ रुपये का भारत का दावा एक वैध मांग नहीं थी। ट्रिब्यूनल ने सरकार को आदेश दिया कि वह इस तरह के कर की मांग करने से बचे और इसके द्वारा बेचे गए शेयरों का मूल्य, जब्त किया लाभांश और कर वसूली के लिए रोक कर रखे टैक्स रिफण्ड को वापस लौटाए। आदेश के अनुसार भारत सरकार को मध्यस्थता की लागत के साथ-साथ केयर्न को हुए कुल नुकसान और परेशानी की क्षतिपूर्ति करने के लिए कहा गया है।
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जबकि इस आदेश के खिलाफ चुनौती या अपील का प्रावधान नहीं है, सरकार ने कहा कि वह मध्यस्थता आदेश का अध्ययन करेगी और “सभी विकल्पों पर विचार करेगी और उचित मंचों के समक्ष कानूनी उपायों सहित आगे की कार्यवाही पर निर्णय लेगी।” कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत द्वारा मुआवजा न दिये जाने की स्थिति में केयर्न इस आदेश का इस्तेमाल ब्रिटेन जैसे देशों की अदालतों में याचिका दायर करने में कर सकता है, ताकि मुआवजे की रकम वसूलने हेतु भारत की संपत्तियों को जब्त किया जा सके।
वोडाफोन के बाद दूसरा नुकसान
पूर्वव्यापी करों की वसूली में सरकार को यह तीन महीने में दूसरा नुकसान हुआ है। सितंबर में ब्रिटेन के वोडाफोन समूह ने 22,100 करोड़ रुपये की कर मांग के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में जीत हासिल की थी। हालांकि, केयर्न एकमात्र कंपनी थी जिसके खिलाफ सरकार ने पूर्वव्यापी कर वसूलने की कार्रवाई की। मध्यस्थता लंबित होने के दौरान, सरकार ने वेदांता लिमिटेड में मौजूद केयर्न की लगभग 5 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेच दिया, शेयरहोल्डिंग्स से 1,140 करोड़ रुपये के बकाया लाभांश को जब्त कर लिया और मांग के खिलाफ 1,590 करोड़ रुपये का टैक्स रिफण्ड लगाया।
केयर्न एनर्जी के अलावा, सरकार ने इसकी पूर्व सहायक कंपनी केयर्न इंडिया (जो अब वेदांता लिमिटेड का हिस्सा है) पर भी इसी तरह की कर मांग लागू की थी। केयर्न इंडिया ने भी एक अलग मध्यस्थता के माध्यम से मांग को चुनौती दी है। वोडाफोन के मामले में सरकार ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की थी।
2010-11 में केयर्न एनर्जी ने केयर्न इंडिया को वेदांता को बेच दिया, लेकिन कंपनी में एक छोटी हिस्सेदारी अपने पास रखी, जिसे कर विभाग द्वारा आंशिक रूप से कर मांग की वसूली करने के लिए बेच दिया गया था।
विदेशी निवेशक केयर्न और वोडाफोन दोनों मामलों के परिणामों के लिए सरकार की प्रतिक्रिया देखेंगे। भाजपा सरकार और उसके मंत्रियों ने 2012 में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा पूर्वव्यापी कर संशोधन की शुरुआत की निंदा करते हुए इसे कर आतंकवाद कहा था। केयर्न ने भारत सरकार को चुनौती दी थी कि वह यूके-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत 2012 के पूर्वव्यापी कर कानून का उपयोग करके एक आंतरिक व्यापार पुनर्गठन पर करों की मांग कर रही है।
देश को सबसे बड़ी तेल खोज देने वाली केयर्न से, अपनी भारतीय इकाई को स्थानीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करने के लिए एक अलग सहायक कंपनी के रूप में फिर से पुनः संगठित करके पूँजीगत लाभ कमाने हेतु 10,247 करोड़ रुपये की कर मांग की गयी थी। 2010-11 में केयर्न एनर्जी ने केयर्न इंडिया को वेदांता को बेच दिया, लेकिन कंपनी में एक छोटी हिस्सेदारी अपने पास रखी, जिसे कर विभाग द्वारा आंशिक रूप से कर मांग की वसूली करने के लिए बेच दिया गया था।
इतालवी मरीन का मामला
यह एक आपराधिक मामले में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए सहमत होने के लिए भारत सरकार का एक अपमानजनक आत्मसमर्पण था, जिसमें दो इतावली नौसैनिकों को भारतीय मछुआरों की हत्या के लिए गिरफ्तार किया गया था। कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों ने भारतीय आपराधिक कानूनों से आरोपी इतालवी नौसैनिकों को बचाकर इस मामले में विश्वासघात किया[2] ।
संदर्भ:
[1] वोडाफोन मामला – क्या सरकार के पास आत्मनिरीक्षण करने का समय है? – Sep 28, 2020, hindi.pgurus.com
[2] इतालवी नौसेनिक मामले में कांग्रेस और भाजपा सरकारों का विश्वासघात – Jul 03, 2020, hindi.pgurus.com
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