भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने केदारनाथ और बद्रीनाथ सहित 51 मंदिरों के अधिग्रहण के खिलाफ उत्तराखंड सरकार को दिए अपने जवाब में कहा कि राज्य सरकार ने भक्तों के अधिकारों और संविधान का पूरी तरह से उल्लंघन किया है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष दायर अपने 49 पन्नों के जवाबी प्रतिक्रिया में याचिकाकर्ता स्वामी ने कहा कि नया चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम 2019 पूरी तरह से गैरकानूनी है और सरकारों द्वारा मंदिरों के अधिग्रहण के खिलाफ कई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के फैसलों की भावना के खिलाफ है।
अपनी याचिका पर राज्य सरकार के जवाब पर बिंदुबार खंडन करते हुए, स्वामी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस मामले पर डॉ स्वामी के ट्वीट्स का प्रस्तुतिकरण, यह दर्शाता है कि वह इस मामले पर संबंधित व्यक्ति हैं। इससे पहले एक 21-पृष्ठ के उत्तर में, राज्य सरकार ने डॉ स्वामी के ट्वीट्स की एक प्रति प्रस्तुत की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि स्वामी परामर्श न लेने और न्यायालय के नियमों के उल्लंघन करने के लिए दुखी थे[1]। स्वामी ने अपने जवाब में कहा, “प्रतिवादी (सरकार) द्वारा प्रत्युत्तर शपथपत्र के अंत में जोड़े गए ट्वीट यह साबित करते हैं कि अर्जदार अपने ध्येय के अनुसरण में कितने समर्पित है”। स्वामी ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विवादित मंदिर अधिग्रहण कानून की अवैधता के बारे में लिखे पत्र के बारे में भी बताया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की उच्च न्यायालय की खंडपीठ 22 जून को इस मामले की सुनवाई करेगी। सुब्रमण्यम स्वामी का प्रतिनिधित्व एडवोकेट मनीषा भंडारी द्वारा किया जायेगा।
स्वामी ने केदारनाथ और बद्रीनाथ सहित उत्तराखंड में मंदिरों की देखभाल करने वाले पुजारियों और परिवारों पर आरोप लगाने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया। “प्रत्यक्ष रूप से श्रद्धेय रावल पर और सबसे सम्मानित टिहरी दरबार पर सीधा आरोप लगाया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि टिहरी दरबार अभी भी नामित सदस्यों का हिस्सा क्यों है। तीर्थयात्री वर्षों से बिना किसी समस्या के मंदिर का दौरा कर रहे हैं। और इस संबंध में कभी कोई शिकायत नहीं आयी। यह मानते हुए कि आय की लूट हुई, इसमें शामिल लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती थी, लेकिन ऐसा कभी नहीं किया गया। इसने याचिकाकर्ता की धार्मिक अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है कि राज्य सरकार द्वारा 51 मंदिरों को अचानक बिना किसी सूचना के कब्जे में ले लिया गया है, जिन्होंने कथित शिकायतें की हैं और उन पर आज तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई,” कई बार न्यायालयों ने फैसला सुनाया कि मंदिर अधिग्रहण केवल एक सीमित अवधि के लिए प्रबंधन में पाई गयी समस्याओं को सुधारने के लिए है, यह बताते हुए डॉ स्वामी ने कहा।
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डॉ स्वामी ने अपनी याचिका में तमिलनाडु सरकार द्वारा नटराज मंदिर के अधिग्रहण के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय सहित कई निर्णयों का हवाला दिया। डॉ स्वामी ने तिरुपति मंदिर के प्रबंधन पर चल रहे मामले सहित सरकारों के खिलाफ अपने अन्य मामलों को भी इंगित किया।
स्वामी ने कहा कि राज्य सरकार ने कई स्थानों पर झूठ बोला, दावा किया कि मंदिर प्रबंधन के खिलाफ जनता द्वारा आंदोलन किये गए। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने केदारनाथ में छह साल पुरानी (2013) प्राकृतिक आपदा को अनावश्यक रूप से अधिग्रहण का कारण बताया। स्वामी ने यह भी कहा कि राज्य सरकार 1939 अधिनियम को गलत तरीके से उद्धृत कर रही थी और गलत अनुमान लगा रही थी।
सरकार को दिए अपने जवाब में, डॉ स्वामी ने कहा कि अधिनियम के कुछ प्रावधान कहते हैं, अगर जिला पंचायत नहीं है, तो जिला कलेक्टर बोर्ड में व्यक्तियों को नामित कर सकता है। बीजेपी शासित उत्तराखंड सरकार द्वारा भारत के संविधान में पारित उल्लंघनों की श्रृंखला और अधिनियमों की अवैधता की ओर इशारा करते हुए स्वामी ने कहा, “यह व्यावहारिक रूप से धार्मिक संप्रदाय के एक प्राचीन समूह का राज्य अधिग्रहण और अनिश्चित काल के लिए संपूर्ण देवस्थानम का विभागीयकरण है।” मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की उच्च न्यायालय की खंडपीठ 22 जून को इस मामले की सुनवाई करेगी। सुब्रमण्यम स्वामी का प्रतिनिधित्व एडवोकेट मनीषा भंडारी द्वारा किया जायेगा।
संदर्भ:
[1] उत्तराखंड के 51 मंदिरों के अधिग्रहण का मामला: भाजपा सरकार ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर आपत्ति दर्ज की – Jun 11, 2020, hindi.pgurus.com
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