आईटीएटी की पलटी
उद्योगपति साइरस मिस्त्री ने आयकर न्यायाधिकरण की मुंबई शाखा के संदिग्ध आदेश पर तीखा प्रहार किया, बाद में न्यायाधिकरण ने टाटा ट्रस्टीज के खिलाफ, भारत में चैरिटी (दान) के उद्देश्य हेतु ट्रस्ट के पैसे के अनैतिक और अवैध उपयोग के लिए, आदेश में सुधार किया। 28 दिसंबर को एक विवादास्पद आदेश में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने आयकर द्वारा पकड़े गए तीन टाटा ट्रस्टों को राहत दी और इस आदेश में साइरस मिस्त्री को, आयकर विभाग को दस्तावेज मुहैया कराने के लिए आलोचना का शिकार बनाया गया। तीन दिनों के भीतर – 31 दिसंबर – न्यायाधिकरण ने साइरस मिस्त्री के खिलाफ अपनी टिप्पणी वापस ले ली, साइरस इस मामले में कोई पक्ष ही नहीं थे[1]।
आयकर न्यायाधिकरण द्वारा आदेश की वापसी पर प्रतिक्रिया करते हुए, साइरस मिस्त्री के कार्यालय ने कहा: “हमने ध्यान दिया कि आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ने श्री मिस्त्री पर लगाए गए बेबुनियाद भद्दे व्यक्तिगत आरोपों को सुधारने के लिए, अपने आदेश हेतु सुधार-पत्र जारी किया है, यह 28 दिसंबर के आदेश का हिस्सा है जहां श्री मिस्त्री कोई पक्ष ही नहीं थे। टाटा ट्रस्टों से जुड़े आदेश हेतु जारी सुधार-पत्र में इसे “अनजाने में हुई त्रुटियां” करार दिया गया। इन टिप्पणियों का सुधार-पत्र यह मानता है कि श्री मिस्त्री द्वारा आयकर विभाग के डिप्टी कमिश्नर आयकर (डीसीआईटी) को भेजी गई जानकारी एक विशिष्ट सम्मन के जवाब में थी, यही आचरण किसी भी कानून के पालन करने वाले व्यक्ति से अपेक्षित है।”
साइरस मिस्त्री ने हार्वर्ड जैसे विदेशी विश्वविद्यालयों को लाखों डॉलर का दान देने के लिए भी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टियों की आलोचना की।
सीएजी के निष्कर्षों ने आईटी (आयकर) को कार्य करने के लिए प्रेरित किया
2013 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के निष्कर्षों के बाद, आयकर (आईटी) विभाग ने तीन ट्रस्टों के खिलाफ कार्यवाही करना शुरू किया — सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, रतन टाटा ट्रस्ट और जेआरडी टाटा ट्रस्ट। ये तीनों सामूहिक रूप से टाटा संस में 66 प्रतिशत हिस्सेदारी पर कब्जा किये हुए हैं, जिसे रतन टाटा द्वारा नियंत्रित किया जाता है, वही रतन टाटा जो नैतिकता का प्रचार करते हैं। यह पूरी तरह से कानून का उल्लंघन है, क्योंकि वाणिज्यिक फर्म टाटा संस को नियंत्रित करने और कर छूट का लाभ लेने हेतु धर्मार्थ ट्रस्टों का उपयोग किया जा रहा है। आयकर को 3000 करोड़ रुपये से अधिक की कर छूट धोखाधड़ी का पता लगा 2015 में और इन ट्रस्टों ने अपने विदेशी धन-स्वीकृति-लाइसेंस (विदेशों से धन की प्राप्ति) को भी आत्मसमर्पित कर दिया। सीएजी ने 2019 में और लोक लेखा समिति (पीएसी) ने भी वाणिज्यिक कंपनियों को नियंत्रित करने और हजारों करोड़ रुपये की कर छूट प्राप्त करने वाले चैरिटेबल ट्रस्टों की बड़ी धोखाधड़ी को पकड़ा था।
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जब भारत में जरूरतमंदों की मदद की जा सकती है तो हार्वर्ड को क्यों दान किया?
साइरस मिस्त्री ने हार्वर्ड जैसे विदेशी विश्वविद्यालयों को लाखों डॉलर का दान देने के लिए भी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टियों की आलोचना की। एक बयान में, उनके कार्यालय ने कहा कि यह पैसा भारत में लोगों के कल्याण के लिए जाना चाहिए न कि विदेशी कार्यों के लिए।
“टाटा ट्रस्ट्स पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट (सार्वजनिक धर्मार्थ) हैं, न कि एक पारिवारिक निवेश कंपनी। मौजूदा ट्रस्टी परोपकार के माध्यम से लाखों भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाने के महान लक्ष्य हेतु उत्तरदायी हैं। मिस्त्री को हर वक्त दोष देने की कोशिश करने के बजाय, टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टियों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि वे इस रास्ते से क्यों भटक गए हैं, जिससे विभिन्न सरकारी निकायों द्वारा उनके संचालन पर अधिक जांच की जा रही है।”
“ट्रस्टियों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्यों जुलाई 2018 में, एक संसदीय समिति लोक लेखा समिति ने चिंता व्यक्त की थी कि सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों का उपयोग लाभ के लिए व्यवसायों को चलाने के लिए किया जा रहा है और ये बार-बार आयकर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं। 2019 की सीएजी रिपोर्ट में दर्ज है कि ट्रस्टों के कोष (धन) का उपयोग धर्मार्थ कार्यों में करने के बजाय समूह की कंपनियों के व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है।”
रतन टाटा द्वारा ट्रस्टियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए साइरस मिस्त्री के कार्यालय ने बयान में कहा – “ट्रस्टियों को यह भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि उन्होंने क्यों बड़ी जेब वाले अमीर विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए करोड़ों डॉलर का दान जारी रखा हुआ है और वो भी उन संस्थाओं को जिनके साथ एक ट्रस्टी के संबंध हैं, इसके बजाय कि वह कर-मुक्त राशि का उपयोग ट्रस्ट के अवस्थापक के आज्ञापत्र के अनुसार भारत में शैक्षिक संस्थाओं के विकास के लिए करें। सार्वजनिक धन के प्रभारी (संभालने वाला) के रूप में, ट्रस्टियों का यह नैतिक कर्तव्य है कि वे हितों के टकराव से बचें और कानून और ट्रस्ट के नियमों के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।”
मुंबई आईटीएटी ने कैसे ये जोरदार गड़बड़ी की?
यह एक अति-महत्वपूर्ण सवाल है कि कैसे आयकर न्यायाधिकरण की मुंबई शाखा पहले इस तरह के एक भयानक आदेश के साथ सामने आई और फिर उससे पलट गई? नीरा राडिया टेप हमें बताते हैं कि कैसे रतन टाटा और अनिल अंबानी की टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में टेलीकॉम न्यायाधिकरण के आदेश पारित किए गए थे, जब इन व्यवसायियों ने आदेश तैयार किये थे और 2007 के मध्य में एक यूएसबी ड्राइव के माध्यम से न्यायाधिकरण में मौजूद बिकाऊ सदस्यों को दे दिया था। टाटा ट्रस्ट को राहत प्रदान करने वाले आयकर न्यायाधिकरण के हालिया आदेश से भी यही पता चलता है कि चीजें अभी भी नहीं बदली हैं।
संदर्भ:
[1] Tata-Mistry row: Tax tribunal suo moto junks negative remarks on Cyrus Mistry – Dec 31, 2020, Economic Times
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