कई पत्रकार सिद्दीकी को बचाने की कोशिश कर रहे थे, जो पीएफआई के कार्यकर्ता हैं
उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुक्रवार को जिहादी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कार्यालय सचिव सिद्दीकी कप्पन को बचाने के लिए पत्रकार संघ द्वारा बोले गए झूठ का पर्दाफाश किया। कई पत्रकार और केरल के पत्रकार संघ (केयूडब्ल्यूजे), सिद्दीकी कप्पन को एक पत्रकार के रूप में चित्रित करने के लिए हर तरह के झूठ बोल रहे थे, इस तथ्य को चतुराई से छिपाते हुए कि केयूडब्ल्यूजे की दिल्ली इकाई के सचिव के अलावा, सिद्दीकी कप्पन पीएफआई के भी कार्यालय सचिव है। केरल में स्थित मुख्यालय वाले पीएफआई का दिल्ली के शाहीन बाग में कार्यालय है और सिद्दीकी वहीं रह रहा था और वह इस विवादास्पद जिहादी संगठन का कार्यालय सचिव है। पीगुरूज ने पहले केयूडब्ल्यूजे और सिद्दीक के इस गुप्त संचालन को प्रकाशित किया था, जबकि कई पत्रकार उस सिद्दीकी को बचाने की कोशिश कर रहे थे, जो पत्रकारिता की आड़ में एक पीएफआई कार्यकर्ता है[1]।
उत्तर प्रदेश (यूपी) पुलिस के हलफनामे (एफिडेविट) को संज्ञान में लेने के बाद, सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि न्यायालय द्वारा कप्पन को राहत देने से इनकार करना “अनुचित” है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा – “हमारे पहले के आदेश के बारे में बहुत अनुचित रिपोर्टिंग हुई। मैं गलत रिपोर्टिंग के बारे में चिंतित हूं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकार को राहत देने से इनकार कर दिया गया।” पीठ ने कपिल सिब्बल को उत्तर प्रदेश द्वारा दायर जवाब का अद्धययन करने और एक प्रतिवाद उत्तर दायर करने के लिए कहा। न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा, “आपको जमानत दाखिल करने का अधिकार है, और आप जवाब पढ़ें और फिर हम आपको पूरी तरह से सुनेंगे।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रस्तुत यूपी पुलिस के हलफनामे को देखकर, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने केयूडब्ल्यूजे के वकील कपिल सिब्बल से इसे पढ़ने के लिए कहा और अगले सप्ताह के लिए मामला टाल दिया
यूपी पुलिस द्वारा दायर 82 पन्नों का हलफनामा कई पत्रकारों और उनके संगठनों द्वारा फैलाये गए झूठ का पर्दाफाश करता है। यह हलफनामा उनके चेहरे पर एक तमाचा है। जिहादी संगठन पीएफआई के कार्यालय सचिव सिद्दीक कप्पन (पत्रकार के वेश में) को बचाने के लिए कई पत्रकारों और उनके संगठनों द्वारा बोले गए झूठों के विस्तृत हलफनामे में कहा गया – “याचिकाकर्ता (केयूडब्ल्यूजे) के पास याचिका दायर करने के लिए कोई कारण नहीं है क्योंकि आरोपी पहले से ही अपने वकीलों और रिश्तेदारों के संपर्क में है और वह खुद अपने वकीलों के माध्यम से कानूनी कार्यवाही दायर कर सकता है…याचिकाकर्ता (केयूडब्ल्यूजे) ने झूठ का सहारा लिया है और केवल मामले को सनसनीखेज बनाने के लिए कई झूठे बयान दिए हैं, जो कि निम्नलिखित तथ्यों को समझने पर स्पष्ट हो गया है।”
“हिरासत में व्यक्ति, जिसका नाम सिद्दीकी कप्पन है, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का कार्यालय सचिव है, जो केरल के एक अखबार के पहचान पत्र का उपयोग करके एक पत्रकार के रूप में पहचान का उपयोग करता है, अखबार का नाम ‘तेजस’ है जिसे 2018 में बंद कर दिया गया था। जांच के दौरान यह पता चला है कि वह अन्य पीएफआई कार्यकर्ताओं और उनके छात्रसंघ (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ पत्रकारिता की आड़ में, जातिगत भेदभाव को फैलाने और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए एक बहुत ही सुनियोजित रूपरेखा के साथ हाथरस जा रहे थे।
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यूपी पुलिस ने कहा – “जब उन्हें एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) द्वारा दिल्ली लाया गया, तो उन्होंने गलत आवासीय पता देकर पुलिस को गुमराह किया, वह पता गलत पाया गया। उन्होंने जांच में सहायता नहीं की और भ्रामक विवरण दिया। उनके फ्लैटमेट (साथ रहने वाला), वो भी पीएफआई और इससे जुड़े तमाम संगठनों का सदस्य है, ने मिलने से इनकार कर दिया। अंत में, तलाशी वारंट से लैस, जब पुलिस द्वारा परिसर की तलाशी ली गई, तब और भी अपराधी प्रवृत्ति की सामग्री बरामद की गई है, जो कि जांच का विषय है।” जबकि पुलिस ने सिद्दीकी कप्पन के हर झूठ को धराशायी कर दिया, कप्पन ने कभी जमानत की अर्जी दायर नहीं की, कई बार अपने वकीलों से मिला और वकीलों एवं परिजनों से फोन पर बात भी की। वर्तमान में बंद पड़ा अखबार ‘तेजस’ पीएफआई द्वारा ही संचालित किया जाता था।
पहले कई पत्रकारों ने यह भी झूठ बोला था कि सिद्दीकी कप्पन को वकील से भी मिलने से रोका गया। यूपी पुलिस ने कहा, “यह नोट करना उचित है कि आरोपी सिद्दीकी कप्पन ने कभी किसी रिश्तेदार या किसी वकील से मिलने का अनुरोध नहीं किया और न ही सक्षम अदालत/ जेल अधिकारियों के समक्ष ऐसा कोई आवेदन दिया है।” यह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने के लिए एक चतुर चाल थी।
अदालत के रिकॉर्ड और फोन कॉल विवरण की एक श्रृंखला के साथ, यूपी पुलिस ने कहा कि यह सरासर झूठ था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रस्तुत यूपी पुलिस के हलफनामे को देखकर, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने केयूडब्ल्यूजे के वकील कपिल सिब्बल से इसे पढ़ने के लिए कहा और अगले सप्ताह के लिए मामला टाल दिया। इससे पहले, सिब्बल एक लव जिहाद मामले में पीएफआई के लिए पेश हुए थे और उन्हें 77 लाख रुपये मिले थे, जबकि उनके सहयोगियों दुष्यंत दवे को 11 लाख रुपये और इंदिरा जयसिंग को केवल चार लाख रुपये मिले थे। इन बड़ी दिलचस्प शुल्क दरों का खुलासा पीएफआई कार्यालय में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापे से हुआ।
जब केयूडब्ल्यूजे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कई पत्रकारों ने सफेद झूठ बोला। पहली धोखाधड़ी इंडियन एक्सप्रेस की थी जिसमें सिद्दीकी कप्पन की पत्नी के झूठ का हवाला दिया गया था। अब यूपी पुलिस के हलफनामे से पता चलता है कि कप्पन की पत्नी भी इंडियन एक्सप्रेस की मिलीभगत से झूठ बोल रही थी[2]।
सबसे बुरा विख्यात पत्रकार राजदीप सरदेसाई द्वारा था। 20 नवंबर को हिंदुस्तान टाइम्स (सिद्दीकी कप्पन मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दिन) में प्रकाशित अपने लेख में, उन्होंने अपने पेशेवर प्रतिद्वंद्वी पत्रकार अर्नब गोस्वामी को दी गयी त्वरित जमानत की तुलना सिद्दीकी कप्पन और नक्सलियों और माओवादियों के खिलाफ न्याय में देरी के साथ की। जबकि ये सभी नक्सली और माओवादी यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) और आतंकवाद से संबंधित आरोपों में जेल में हैं[3]।
अब प्रेस्टीट्यूट्स (खबरिया दलाल) के सारे झूठ यूपी पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में धराशायी कर दिए हैं। तो आगे क्या? क्या इस महिमामंडन/ तिरस्कार से लोगों के मन में किसी भी तरह की शर्म पैदा होगी?
संदर्भ:
[1] यूपी पुलिस ने पत्रकारिता की आड़ में काम करने वाले पीएफआई के कार्यालयी सचिव को पकड़ा – Oct 6, 2020, hindi.pgurus.com
[2] SC plea today, journalist Siddique Kappan’s family asks: Aren’t we citizens? – Nov 16, 2020, Indian Express.
[3] On liberty, the lack of judicial consistency – Nov 20, 2020, Hindustan Times
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