सर्वोच्च न्यायालय ने सुपरटेक परियोजना पर नोएडा प्राधिकरण को फटकार लगाई
उत्तर प्रदेश की दिल्ली सीमा पर भारत के प्रमुख औद्योगिक और आवास क्षेत्र प्राधिकरण नोएडा (न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण) को बुधवार को सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट परियोजना होम बायर्स को स्वीकृत योजना प्रदान करने में विफल रहने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से गंभीर फटकार मिली, न्यायालय ने कहा – “आप (प्राधिकरण) पूर्णतः भ्रष्टाचार में लिप्त हैं”। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ, जिसने दो 40 मंजिला टावरों को ध्वस्त करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुपरटेक की अपील पर फैसला सुरक्षित रखा, ने कहा कि जब घर खरीदारों ने योजना की मांग की, तो प्राधिकरण ने डेवलपर को पत्र लिखा कि क्या योजना को साझा करना है या नहीं, और इसके आदेश पर उन्हें योजना देने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा – “यह शक्ति का एक चौंकाने वाला कृत्य है। आप (नोएडा) न केवल लीग में हैं बल्कि सुपरटेक के साथ गठबंधन में हैं। जब घर खरीदारों ने एक स्वीकृत योजना के लिए कहा, तो आपने सुपरटेक को लिखा कि आपको दस्तावेज देना चाहिए या नहीं और इनकार करने पर आपने उन्हें योजना देने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से आपको यह निर्देश देने के बाद ही आपने उन्हें दी थी। आप (प्राधिकरण) पूर्णतः भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।” शीर्ष अदालत ने दिन भर की सुनवाई के दौरान नोएडा से यह भी कहा कि एक नियामक शहरी नियोजन प्राधिकरण होने के नाते उसे तटस्थ रुख अपनाना चाहिए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में 2018 में सीएजी ऑडिट (लेखापरीक्षा) की अनुमति दी गई थी। फरवरी 2020 में मुख्यमंत्री ने कहा था कि सीएजी रिपोर्ट पिछले 10 वर्षों के दौरान नोएडा भूमि आवंटन में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला दर्शाती है।
तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के संरक्षण में 70 के दशक के मध्य में शुरू हुआ न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) कई औद्योगिक घरानों, मीडिया घरानों और हजारों रियल एस्टेट परियोजनाओं और विवादों का केंद्र है, जो हमेशा गैर-पारदर्शी भूमि आवंटन प्रणाली के कारण हुए। नौकरशाही और मीडिया के कई वीआईपी को नोएडा द्वारा जमीन आवंटित की गई है। सितंबर 2016 में पीगुरूज ने बताया था कि कैसे नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी/कैग) द्वारा नोएडा भूमि आवंटन पर होने वाले ऑडिट (लेखापरीक्षा) पर पिछले 30 वर्षों से यूपी सरकार द्वारा रुकावटें डाली गयी हैं।[1]
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में 2018 में सीएजी ऑडिट (लेखापरीक्षा) की अनुमति दी गई थी। फरवरी 2020 में मुख्यमंत्री ने कहा था कि सीएजी रिपोर्ट पिछले 10 वर्षों के दौरान नोएडा भूमि आवंटन में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला दर्शाती है। चूंकि जमीन के आवंटन से कई मीडिया घरानों और उनके दिग्गजों को फायदा हुआ है, इसलिए खबरें हमेशा दबा दी गयीं। इसके अलावा रियल एस्टेट दिग्गजों के भारी विज्ञापनों के कारण, मीडिया घरानों ने अपना मुँह बन्द रखा। मूल रूप से भूमि आवंटन घोटाला यूपी में बसपा और सपा के शासन के दौरान हुआ, जिन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक इस सबसे बड़े राज्य पर शासन किया।[2]
पीठ ने नोएडा की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता रवींद्र कुमार से कहा – “प्राधिकरण होने के नाते, आपको सुपरटेक के कृत्यों का बचाव करने के बजाय तटस्थ रुख अपनाना चाहिए। आप किसी भी प्रमोटर के लिए निजी रुख नहीं अपना सकते।” न्यायालय से यह आलोचना तब आई जब कुमार ने परियोजना में दो 40 मंजिला टावरों के निर्माण को सही ठहराने की कोशिश करते हुए कहा कि यह प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित योजना के अनुसार किया गया था। पीठ ने टिप्पणी की कि नोएडा ने अपने “शाश्वत ज्ञान” में 40 मंजिला टावर को हरित क्षेत्र में कैसे आने दिया। कुमार ने कहा कि यह हरित भूमि नहीं थी जैसा कि घर खरीदारों द्वारा आरोप लगाया गया था, क्योंकि जहाँ ये टॉवर आये थे, 2006 की स्वीकृत योजना में वहाँ एक ठोस संरचना दिखाई गई थी। 2014 में, उच्च न्यायालय ने बिल्डिंग कोड का उल्लंघन करने के लिए टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था।
संदर्भ:
[1] UP Government stonewalling CAG’s move to audit land allotments in Noida – Sep 16, 2016, PGurus.com
[2] CAG has revealed Rs 30,000 crore scam in Noida: Yogi Adityanath – Feb 27, 2020, HT
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