
धारा 66ए के अब भी हो रहे इस्तेमाल पर सर्वोच्च न्यायालय हैरानी मैं है
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि यह “आश्चर्यजनक” है कि लोगों पर अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है, जबकि इस अधिनियम को 2015 में शीर्ष अदालत के फैसले द्वारा खत्म कर दिया गया था। जस्टिस आरएफ नरीमन, केएम जोसेफ और बीआर गवई की पीठ ने एक एनजीओ, ‘पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) द्वारा दायर एक आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया, इस आवेदन में पिछले छह वर्षों से देश भर में पुलिस द्वारा धारा 66ए के तहत दर्ज हजारों मामलों की जानकारी दी गयी है। रद्द की गई धारा के तहत आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने वाले व्यक्ति को तीन साल तक की कैद और जुर्माना भी हो सकता था।
पीठ से पीयूसीएल की ओर से प्रस्तुत वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल का फैसला 2015 का है। यह वास्तव में चौंकाने वाला है। जो हो रहा है वह भयानक है।” पारिख ने कहा कि 2019 में अदालत के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कि सभी राज्य सरकारें 24 मार्च, 2015 के फैसले के बारे में पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनाएं और फिर भी इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज किए गए हैं। पीठ ने कहा, “हां, हमने वो आंकड़े देखे हैं। चिंता न करें हम कुछ करेंगे।”
अब जब एक पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है, तो वह धारा को देखता है और फुटनोट को पढ़े बिना मामला दर्ज करता है। इसके बजाय, हम यह कर सकते हैं कि हम धारा 66ए के ठीक बाद एक ब्रैकेट डाल दें और उल्लेख कर सकते हैं कि इसे खत्म कर दिया गया है।
पारिख ने कहा कि इस मामले को संभालने के लिए किसी तरह का तरीका होना चाहिए क्योंकि लोग पीड़ित हैं। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आईटी अधिनियम के अवलोकन पर यह देखा जा सकता है कि इसमें धारा 66ए है, लेकिन फुटनोट में लिखा है कि प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।
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वेणुगोपाल ने कहा – “अब जब एक पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है, तो वह धारा को देखता है और फुटनोट को पढ़े बिना मामला दर्ज करता है। इसके बजाय, हम यह कर सकते हैं कि हम धारा 66ए के ठीक बाद एक ब्रैकेट डाल दें और उल्लेख कर सकते हैं कि इसे खत्म कर दिया गया है। हम फ़ुटनोट में फैसले का पूरा सार डाल सकते हैं।” न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा – “आप कृपया दो सप्ताह में जवाब दाखिल करें। हमने नोटिस जारी किया है। मामले को दो सप्ताह के बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।” याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि आईटी अधिनियम का 66ए न केवल पुलिस थानों में बल्कि पूरे भारत में निचली अदालतों के मामलों में भी उपयोग में है।
पीयूसीएल ने केंद्र से उन एफआईआर/ जांच के संबंध में सभी डेटा/ सूचना, जहां धारा 66ए लागू की गई है और साथ ही देश भर की अदालतों में लंबित मामलों जहां 2015 के फैसले का उल्लंघन करके प्रावधान के तहत कार्यवाही जारी है, को एकत्र करने का निर्देश देने की मांग की। पीयूसीएल ने 2015 के फैसले का संज्ञान लेने के लिए देश भर के सभी जिला न्यायालयों (संबंधित उच्च न्यायालयों के माध्यम से) को संवाद करने के लिए शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को निर्देश देने की भी मांग की, ताकि किसी भी व्यक्ति को अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रतिकूल परिणाम का सामना न करना पड़े। एनजीओ ने कहा कि केंद्र को सभी पुलिस थानों को सलाह देनी चाहिए कि वे निरस्त धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न करें[1]।
संदर्भ:
[1] “What is going on is terrible:” Supreme Court on continued use of Section 66A of IT Act; issues notice to Centre in plea by PUCL – Jul 05, 2021, Bar and Bench
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