सुब्रमण्यम स्वामी की पूजास्थल अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पूजास्थल अधिनियम को संशोधित करने के लिए स्वामी की याचिका का जवाब दे!

1
1184
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पूजास्थल अधिनियम को संशोधित करने के लिए स्वामी की याचिका का जवाब दे!
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पूजास्थल अधिनियम को संशोधित करने के लिए स्वामी की याचिका का जवाब दे!

सीजेआई एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया!

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। सीजेआई एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने नोटिस जारी किया और इस मामले को अश्विनी उपाध्याय की समान याचिका के साथ टैग कर दिया।

अयोध्या आंदोलन के दौरान, 1991 में केंद्र सरकार ने अयोध्या को छोड़कर सभी पूजा स्थलों को 1947 के समय का दर्जा देने के लिए पूजा स्थल अधिनियम पारित किया था। हालांकि संघ परिवार ने काशी विश्वनाथ और मथुरा श्रीकृष्ण मंदिरों की पुनर्स्थापना का मुद्दा उठाया था, जो मुगल शासकों द्वारा नष्ट कर दिए गए थे, पूजास्थल अधिनियम को इस मांग के रास्ते की बाधा के रूप में देखा गया था।

पिछले हफ्ते स्वामी ने ट्वीट कर नाराजगी व्यक्त की थी कि रजिस्ट्री ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका को पहले सूचीबद्ध किया और उनकी याचिका को नजरअंदाज कर दिया जो महीनों पहले दायर की गई थी।

सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी दलील में कहा कि उपासना स्थल अधिनियम एक बाधा है, जो उन्हें एक ऐसे स्थान पर प्रार्थना करने के अधिकार से वंचित करता है, जहां विदेशी उत्पीड़न और आक्रमण के कारण हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार एक निश्चित महत्व के हिंदू मंदिर को परिवर्तित किया गया था/ है, इस न्यायालय को अच्छी तरह से प्रलेखित इतिहास के बदले में व्याख्या की समीक्षा करने और इस तरह के अधिनियम की संवैधानिक वैधता की जाँच करने के लिए आमंत्रित कर रहा हूँ।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

स्वामी ने सहयोगी सत्य सबरवाल के साथ दायर याचिका में कहा – “अधिनियम, याचिकाकर्ता (ओं) के अधिकार (ओं) को, धार्मिक हिंदुओं को किसी भी अदालत में मुकदमा दायर करने या किसी अन्य कार्यवाही को करने से रोकने के अलावा, पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, भगवान शिव को समर्पित सबसे दिव्य और पवित्रतम हिंदू मंदिरों में से एक, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है और ऐसे किसी भी/ सभी मंदिर जहां विदेशी आक्रामकता के कारण धर्मांतरण हुआ, पर पूजा के अधिकार से वंचित करता है। 1991 का अधिनियम धार्मिक पूजास्थल तक पहुँच को प्रतिबंधित करता है, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता (ओं) के मौलिक अधिकार और विश्वास का उल्लंघन होता है, जबकि इनकी रक्षा भारत के संविधान की प्रस्तावना और बुनियादी संरचना में निहित है।”

अपने तर्क के दौरान स्वामी ने कहा कि उनकी याचिका पर विचार करने में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में देरी हुई जो कि पहली याचिका थी। पिछले हफ्ते स्वामी ने ट्वीट कर नाराजगी व्यक्त की थी कि रजिस्ट्री ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका को पहले सूचीबद्ध किया और उनकी याचिका को नजरअंदाज कर दिया जो महीनों पहले दायर की गई थी।

स्वामी ने अपनी याचिका में कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 3 और 4 असंवैधानिक घोषित करने चाहिए, क्योंकि ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13, 25, 26 और 32 को शून्य और अधिकार हीन बनाते हैं[1]

यह जानना दिलचस्प होगा कि पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली बीजेपी नेताओं सुब्रमण्यम स्वामी और अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर बीजेपी शासित केंद्र सरकार का क्या जवाब होगा। नवंबर 2019 में, स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काशी विश्वनाथ और मथुरा श्री कृष्ण मंदिरों की बहाली के लिए पूजास्थल अधिनियम में संशोधन करने के लिए पत्र लिखा था[2]

संदर्भ:

[1] Supreme Court Issues Notice On Subramanian Swamy’s Plea Challenging Provisions Of Places of Worship ActMar 26, 2021, Live Law

[2] सुब्रमण्यम स्वामी ने 1991 के पूजा के स्थान अधिनियम में संशोधन का आग्रह किया है। कहा है कि यह अधिनियम पूजा करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ हैDec 02, 2019, hindi.pgurus.com

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.