अब जम्मू के डोगरा जानते हैं कि उनके दोस्त और दुश्मन कौन हैं!
कैसी विडंबना है? जिन लोगों ने जम्मू को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसकी विशिष्ट पहचान को नष्ट किया, जम्मू समाज में अलगाव पैदा किया, एक समुदाय को दूसरे समुदाय के सदस्यों के खिलाफ भड़काया, डोगराओं को असत्य और अप्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया, धार्मिक आधार पर जम्मू को विखंडित कर घाटी जैसा बनाने पर तुले हुए हैं और जम्मू को राष्ट्र निर्माण का हिस्सा न बनने देने पर आमादा हैं, वे आज जम्मू में भाषण दे रहे हैं। और उनके उपदेशक डोगरों को सिखाना चाहते हैं कि राष्ट्र, राज्य, राष्ट्रीयता, देशभक्ति, संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता, बहुलवाद, विविधता, एकता, भाईचारा, सांप्रदायिक और सामाजिक सौहार्द, मानवाधिकार और लोकतंत्र का मतलब क्या है और डोगराओं को ये सब बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए जो ये अपने स्वयं के प्लेटफार्मों से और कुछ बौद्धिक और राजनीतिक दिवालिया और सत्ता के भूखे व्यक्तियों द्वारा प्रदान किए गए मंचो से उपदेश देते रहते हैं, वो भी डोगरों के प्रति अपने दायित्वों को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए।
बहुत महत्वपूर्ण रूप से, विध्वंसक आसानी से कठोर वास्तविकताओं और ऐतिहासिक तथ्यों को यह मानते हुए छिपाते हैं कि डोगरा इनके असली इरादे को समझने में अराजनैतिक, निरक्षर और अक्षम हैं। वे मानते हैं कि उनके उपदेशों में डोगरों को बेवकूफ बनाने और भोले डोगराओं की मदद से अपने स्वयं के कार्यावली को आगे बढ़ाते है।
कश्मीरी नेता, राजनीतिक और धार्मिक दोनों, लगातार मांग करते रहे कि सरकार में सभी पद – राज्यपाल से लेकर साधारण – एक विशेष समुदाय से संबंधित कश्मीर के लोगों के लिए ही संरक्षित रखे जाएं।
वे सबसे अंजान हैं। जम्मू में चीजें मौलिक रूप से बदल गई हैं। जम्मू के डोगरा जानते हैं कि उनके दोस्त और दुश्मन कौन हैं। जम्मू में उनके राजनीतिक व्यवहार और मतदान पैटर्न से ये साबित होता है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
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यहां कम से कम 15 कठोर वास्तविकताओं और ऐतिहासिक तथ्यों को सूचीबद्ध करने की अवश्यकता है, जो ये विध्वंसक जम्मू में धर्मोपदेश देते समय इसके बारे में बात नहीं करते हैं या दबा देते हैं। य़े हैं:
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- उन्होंने अमृतसर की संधि का लगातार विरोध किया जिसके तहत 1846 में कश्मीर डोगरा साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
- उन्होंने लगातार अमृतसर की संधि को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि “डोगरों ने ब्रिटिश सरकार को 75 लाख रुपये देकर कश्मीरी मुसलमानों के जीवन, सम्मान और स्वाभिमान को खरीदा था।”
- “अमृतसर की संधि को पूर्णतः खत्म करो” यह 1847 और 2000 के बीच उनका नारा था।
- उन्होंने दिन-ब-दिन डोगरा शासकों को “हत्यारे, सांप्रदायिक, आक्रमणकारी, क्रूर और कश्मीर विरोधी” के रूप में घोषित किया।
- कश्मीर के मौलवी जैसे बहा-उद-दीन (खादिम दरगाह खानकाह-ए-मौला) और खादिम साद-उद-दीन शाल भारत के गवर्नर-जनरल और वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग को “भगवान” कहते थे और जम्मू से डोगरा शासन समाप्त करने और कश्मीर को मुक्त करने के लिए लंबी याचिकाओं और स्मारकों के माध्यम से उनसे आग्रह करते थे या स्वयं जम्मू-कश्मीर प्रशासन का पदभार संभालने के लिए मिन्नतें करते थे (जेके. जन. विभाग. फाइल नम्बर 524/ एफ-60, 1924, जे एंड के आर्काइव, जम्मू)।
- कश्मीरी नेता, राजनीतिक और धार्मिक दोनों, लगातार मांग करते रहे कि सरकार में सभी पद – राज्यपाल से लेकर साधारण – एक विशेष समुदाय से संबंधित कश्मीर के लोगों के लिए ही संरक्षित रखे जाएं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि “यदि अपेक्षित योग्यता वाले व्यक्ति कश्मीर में उपलब्ध नहीं हैं, तो उनके ही मजहब वाले योग्य सदस्यों को ब्रिटिश भारत से आयात किया जाना चाहिए, जिसमें पड़ोसी राज्य पंजाब भी शामिल है” (जेके. जन. विभाग. फाइल नम्बर 529/ एफ-62, 1924; समिति की कार्यवाही और आदेश संख्या 96-सी, जेके. जनरल विभाग की फाइल नंबर 524/ एफ -62, 1924; द मुस्लिम आउटलुक, लाहौर, 20 अगस्त, 1925)।
- उन्होंने इस तथ्य को दबाया कि ये और अन्य कश्मीरी नेता, जिनमें मौलवी और नवाब भी शामिल हैं, ने महाराजा हरि सिंह द्वारा 1927 में कश्मीर में उन लोगों की मांग को खारिज करने के लिए पेश किए गए राज्य हेतु कानून (स्टेट सब्जेक्ट लॉ) का लगातार विरोध किया था, क्योंकि इन लोगों की मंशा थी कि “शिक्षित मुस्लिमों को ब्रिटिश भारत से आयात किया जाए ताकि वे सरकार में सभी पदों पर आसीन हो सकें।”
राज्य विषय परिभाषा की उत्पत्ति की सच्ची कहानी बताने के बजाय, उन्होंने महाराजा हरि सिंह के नाम से बातें बनाकर डोगरों को गुमराह किया और एक सफेद झूठ बोला कि “महाराजा हरि सिंह ने डोगरों की पहचान की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए राज्य विषय कानून पेश किया” और “यह सुनिश्चित किया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति जम्मू में जमीन खरीद न सके और राज्य सरकार के अधीन नौकरी प्राप्त कर सके।” - वे 1946 के “कश्मीर छोड़ो आंदोलन” के बारे में नहीं बोलते और इसके स्पष्ट कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह डर है कि जम्मू में कश्मीर छोड़ो आंदोलन की बात करना उन लोगों के खिलाफ लोकप्रिय विस्फोट को बढ़ावा देगा जो डोगरों को उपदेश देते हैं।
- वे जनसांख्यिकी और धार्मिक परिदृश्य के बीच अंतर के बारे में नहीं बोलते हैं क्योंकि वे 1996 से पहले जम्मू शहर और उसके आसपास मौजूद थे और 1996 और 14 फरवरी, 2018 के बीच जम्मू में बदलाव देखा गया। साथ ही, उन्होंने डोगरों को यह कहते हुए डरा दिया कि अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 का निरस्तिकरण केवल “बाहरी लोगों” को उनकी जमीन और नौकरी हड़पने में मदद करेगा। और, वे जम्मू प्रांत में उपलब्ध सरकारी और अर्ध-सरकारी नौकरियों में कश्मीरियों और डोगरों के मौजूदा अनुपात पर प्रकाश डाले बिना उन्हें डराते हैं। वे यह कहने के लिए भी मुंह नहीं खोलते कि कश्मीर के लोगों को कानूनी और अन्य माध्यमों से जम्मू में कितनी जमीन मिली है, जम्मू प्रांत में कश्मीरी युवाओं ने कितनी नौकरियां कब्जा कर रखी हैं और जम्मू में व्यापार और उद्योग में कश्मीर की उनकी भूमिका और स्थिति क्या है।
- वे उन परिस्थितियों के बारे में सच्चाई बताने से इंकार करते हैं, जिनके तहत 1990 में सभी कश्मीरी हिंदुओं ने कश्मीर छोड़ दिया था। हालांकि, जम्मू में डोगरों को यह बताने की धृष्टता उनमें है कि कश्मीर धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, विविधता, बहुलवाद, सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सहयोगी माहौल का प्रतीक है।
- उन्होंने लगातार भारतीय संविधान, भारतीय कानून, भारतीय संस्थानों का विरोध किया है, जिसमें भारतीय सेना भी शामिल है। उनकी सुई चार चीजों पर ही अटकी है: जम्मू और कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है, स्वायत्तता/ स्वशासन या अर्ध-स्वतंत्रता, कश्मीर का मुख्यमंत्री एक विशेष समुदाय से होगा और पाकिस्तान के साथ बातचीत।
- उन्होंने 1952 में शिनजियांग से उइगर मुसलमानों को और 1959-60 में तिब्बती मुसलमानों को नागरिकता के अधिकार दिए और उन्हें श्रीनगर के जामिया मस्जिद इलाके में बसाया। इसी समय, उन्होंने 1947 से जम्मू में रह रहे पाकिस्तान के हिंदू और सिख शरणार्थियों के समान अधिकारों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि “वे बाहरी हैं” और “उन्हें नागरिकता प्रदान करने से जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी बदल जाएगी।”
- उन्होंने धर्मनिरपेक्षता पर बिल को खारिज कर दिया। 2007 में समाजवाद और राष्ट्रीय ध्वज भी।
- उन्होंने भारत के खिलाफ तैयारी के लिए शस्त्र प्रशिक्षण हेतु अपने व्यक्तियों को पाकिस्तान भेजा।
- उन्होंने अपने अनुयायियों को हुर्रियत सम्मेलनो द्वारा चलाए गए “आज़ादी” आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा और कहा कि “वे इसके साथ थे, न कि इसके खिलाफ।”
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ये कई ऐसे उदाहरणों में से केवल 15 हैं, जो विध्वंसक के झांसे को दर्शाते हैं और चीजों को परिप्रेक्ष्य में प्रकट करते हैं। यदि वे मानते हैं कि डोगरा फिर से उनके नापाक जाल में फंस जाएंगे, तो वे स्पष्ट रूप से मूर्ख हैं या अतीत की दुनिया में रह रहे हैं।
ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।
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