
पेगासस विवाद: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को जारी किया नोटिस
सर्वोच्च न्यायालय ने नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करते हुए मंगलवार को विवादास्पद पेगासस जासूसी मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि वह नहीं चाहती कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने वाली किसी भी चीज का खुलासा करे। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि यदि सक्षम प्राधिकारी इस मुद्दे पर उसके सामने एक हलफनामा दायर करता है तो “समस्या” क्या है, न्यायालय ने कहा कि वह सरकार से किसी भी ऐसी जानकारी का खुलासा करने के लिए नहीं कह रहा है जो राष्ट्र की सुरक्षा और रक्षा से संबंधित है क्योंकि ये चीजें “गोपनीय और गुप्त” होना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र से 10 दिन में जवाब देने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह तब कहा जब केंद्र की ओर से प्रस्तुत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा बार-बार कहा गया कि इजरायल की फर्म एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था या नहीं, इस मुद्दे पर हलफनामे पर जानकारी देने से राष्ट्रीय सुरक्षा का पहलू शामिल होगा। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता, जो नागरिक हैं और उनमें से कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, ने इजरायली स्पाइवेयर के माध्यम से उनके फोन पर जासूसी किये जाने का आरोप लगाया है।
सिब्बल ने कहा कि सरकार को इस तथ्य का जवाब देना चाहिए कि क्या पेगासस को एक तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया गया था या नहीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की मौजूदगी वाली पीठ ने मेहता से कहा – “वे जासूसी या हैकिंग या जो कुछ भी आप उनके फोन को इंटरसेप्शन (अवरोधन) करने को कहते हैं, उस का आरोप लगा रहे हैं। अब, यह नागरिकों के मामले में भी किया जा सकता है और नियम इसकी अनुमति देते हैं। लेकिन यह केवल सक्षम प्राधिकारी की अनुमति से ही किया जा सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। क्या समस्या है अगर वह सक्षम प्राधिकारी हमारे सामने एक हलफनामा दायर कर दे तो।” पीठ ने कहा कि वह देश की रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में हलफनामे में एक शब्द भी नहीं चाहती है।
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पीठ ने कहा – “यह मुद्दा इन कार्यवाही के दायरे से बिल्कुल बाहर है और आप की तरह, हम इसके बारे में कुछ भी जानने के लिए पूरी तरह अनिच्छुक हैं। यह कुछ ऐसा है जो गोपनीय और गुप्त होना चाहिए। उस पर कोई मुद्दा नहीं है।” राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलू का जिक्र करते हुए मेहता ने कहा कि सरकार यह नहीं कह रही है कि वह यह किसी को नहीं बताएगी। 10 दिनों के बाद मामले की सुनवाई की तारीख तय करने वाली पीठ से उन्होंने कहा – “मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि मैं इसे सार्वजनिक रूप से नहीं बताना चाहता।”
उन्होंने कहा कि सरकार ने सोमवार को दायर हलफनामे में अपना रुख स्पष्ट किया है। मेहता ने पीठ से कहा – “हमारी सुविचारित प्रतिक्रिया वही है जो हमने अपने पिछले हलफनामे में सम्मानपूर्वक कही है। कृपया हमारे दृष्टिकोण से इस मुद्दे की जांच करें क्योंकि हमारा हलफनामा पर्याप्त है।” आगे कहा कि “भारत सरकार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष है।“
उन्होंने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि वह सभी पहलुओं की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगा और समिति शीर्ष न्यायालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। उन्होंने कहा कि अगर किसी देश की सरकार इस बात की जानकारी देगी कि किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है और किसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोग पहले से खुद को तैयार कर सकते हैं। उन्होंने कहा – “हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होगा। ये राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे हैं। कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाता है या कौन सा नहीं किया जाता है, यह अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है जिसे हम न्यायालय से छिपा नहीं सकते।”
मेहता ने तर्क दिया कि सरकार समिति के समक्ष सभी सामग्री रखेगी, जिसमें तटस्थ विशेषज्ञ शामिल होंगे और सरकारी अधिकारी नहीं होंगे, और समिति इसकी जांच करेगी और शीर्ष न्यायालय को रिपोर्ट सौंपेगी। उन्होंने कहा – “यह हलफनामे और सार्वजनिक बहस का विषय नहीं हो सकता है, यह एक संवेदनशील मामला है और इससे संवेदनशीलता से निपटा जाना चाहिए।”
मेहता ने जब राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलू का जिक्र किया तो पीठ ने कहा कि वह सरकार से ऐसी किसी बात का खुलासा करने के लिए नहीं कह रही है। पीठ ने कहा – “हम एक न्यायालय के रूप में, आप सॉलिसिटर जनरल के रूप में और इस न्यायालय के अधिकारियों के रूप में सभी वकील, हम में से कोई भी राष्ट्र की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं करना चाहेगा। कोई सवाल ही नहीं उठता है।”
आगे कहा गया – “हम इन याचिकाओं पर एक साधारण नोटिस जारी करेंगे। नियमों के तहत सक्षम प्राधिकारी को यह निर्णय लेने दें कि किस हद तक और किस जानकारी का खुलासा किया जाना है और फिर आगे की कार्रवाई की जा सकती है।” पीठ ने मेहता से कहा कि वह सरकार को ऐसी कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं कर रही है जो वह नहीं चाहती है।
इस मामले में याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वे नहीं चाहते कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर डालने वाली किसी भी जानकारी का खुलासा करे। उन्होंने कहा – “याचिकाकर्ताओं की ओर से, मैं कहता हूं कि देश की सुरक्षा इस देश के नागरिकों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि सरकार के लिए। हम नहीं चाहते कि सरकार हमें किसी भी उपकरण के उपयोग के संबंध में किसी भी सुरक्षा पहलू के बारे में कोई जानकारी दे। यह हमारा इरादा नहीं है और यह याचिका भी नहीं है।” न्यायालय मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाले पत्रकार जैसे परंजॉय गुहा ठाकुरता और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
सिब्बल ने कहा कि सरकार को इस तथ्य का जवाब देना चाहिए कि क्या पेगासस को एक तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया गया था या नहीं। मेहता ने कहा कि न्यायालय केंद्र को एक समिति गठित करने की अनुमति देने पर विचार कर सकती है जो पीठ के समक्ष रिपोर्ट रखेगी। पीठ ने कहा – “यह सब (याचिकाओं के) दायर करने के चरण में है। हमने सोचा था कि एक व्यापक उत्तर या कुछ और आएगा लेकिन अब आपने केवल एक सीमित उत्तर दायर किया है, देखते हैं। इस बीच, हम इस बारे में सोचेंगे कि इस मामले को कैसे आगे बढ़ाया जाए।”
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