इस श्रृंखला के 1-5 भागों को यहाँ पहुँचा जा सकता है । यह समापन हिस्सा है।
कैसे एक गुप्तदल ने भारत को लाभान्वित करने की क्षमता वाले हर नए विचार को विफल किया
एक अव्यवस्थित रूप से निर्मित गुप्तदल है, एक विशेष क्लब जो भारत के ऐसे हर पहलू पर नजर रखता है जो आकार और महत्व में बढ़ सकता है। यह ज्यादातर अपारदर्शी समूह चुपचाप हर बढ़ते हुए व्यापार को देखता है और यह आकलन करता है कि क्या यह घाघ और शोषण पर बनाए गए उनके गहरे निहित हितों के लिए खतरा होगा। यदि इस सुव्यवस्थित क्रम के लिए कोई चुनौती है, तो गुप्तदल उसकीवृद्धि को कम करने के तरीकों की खोज करना शुरू कर देगा या यदि संभव हो तो इसे जड़ों से ही काट देगा। मैं उन्हें न्यू ईस्ट इंडिया कंपनी कह सकता था लेकिन गुप्तदल सरल और याद रखने में आसान है।
इस गुप्तदल के प्रभाव की मात्रा इतनी ज्यादा है कि स्वयं देखे बिना विश्वास करना कठिन है। अगर मोदी सरकार भ्रष्टाचार-विरोधी कार्य करने में सक्षम नहीं है, तो केवल गुप्तदल के प्रभाव को ही देखें। यह ज्यादातर परिणामों की गारंटी देगा (2जी फैसला एक विपथन था), और यह सुनिश्चित करेगा कि उनका कथन सत्य बन जाए। अपने आप से निम्नलिखित प्रश्न पूछें:
1. यह कैसे होता है कि केवल कुछ समूह की कंपनियां ही हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में कदम रखती हैं? (दूरसंचार, आधारभूत संरचना निर्माण, शोधन, वित्त आदि)
2. क्या होता है जब एक नवोदय उनके द्वारा खड़े किए गए दीवारों को तोड़ने की कोशिश करता है और यथास्थिति को चुनौती देने लगता हैं?
3. समूह की अधिकांश कंपनियां अभी तक घाटे में चल रही थीं (कम से कम संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दौर में) फिर भी बैंक हमेशा अधिक उधार देने को तैयार रहते थे। ऐसा क्यों हुआ?
गुप्तदल के नियंत्रण में बाबूलोग
यह आरोप लगाया जाता है कि जैसे ही एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी संयुक्त सचिव/अपर सचिव के स्तर तक पहुँचता है, उसे तैयार और चिन्हित किया जाता है। एक निश्चित समूह का पक्ष लेने के लिए नीति में छोटे बदलाव, दूसरे पर अंकुश – आप समझ गए होंगे। इस नियम के अपवाद हैं और येही अपवाद हैं, जिन पर राष्ट्र न्याय के लिए निर्भर करता है। भाग्य, कड़ी मेहनत और संबंधों के साथ, कुछ सचिव के स्तर तक पहुंच जाते हैं, जो उस विभाग के सर्वोच्च पदों में से एक है। ज्यादातर, पैंतरेबाज़ी राजनेताओं के एक गुट के माध्यम से की जाती है, जो जादुई रूप से उसी मंत्रालय को प्राप्त करते हैं, भले ही उनकी बुद्धि या क्षमता पर्याप्त ना हो। यदि आप में से किसी ने द एक्सीडेंटल पीएम देखा है, तो आप जानेंगे कि श्री पी चिदंबरम (पीसी) को वित्त मंत्रालय कैसे मिलता है, व्यावहारिक रूप से प्रकल्पित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इसे छीन लेते हैं। वीवीआईपी भ्रष्टाचारीयों को जेल भेजने पर, डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने जो 2016 में कहा था उसे याद कीजिए ।
My next project is to expose 27 bureaucrats who are in various Ministries and loyal to TDK. They were handpicked and positioned by PC.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 19, 2016
तार्किक प्रश्न यह है कि ऊपर उल्लिखित 27 में से कितने स्थानांतरित किए गए या निकाल दिए गए थे? 2016 से पीगुरुस की पोस्टों पर जाकर आप यह गणित कर सकते हैं और इस पोस्ट पर टिप्पणियों के रूप में इसका उल्लेख कर सकते हैं। कुछ वर्षों के बाद, डॉ स्वामी ने चार के गिरोहपर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए उन्हें मोदी और राष्ट्र को उन्हें उजागर करते हुए कहा कि जब तक ये चारों पद से नहीं हटा दिए जाएँगे, चिदंबरम (और संप्रग यूपीए का भ्रष्ट गिरोह का तिहाड़ जेल नहीं देखेंगे)। जैसा कि पाया गया, गिरोह में से केवल दो बेदखल हुए (और प्रतीत होता है कि एक ही पुनर्वास किया गया है) और अन्य दो अभी भी मजबूती से बैठे हुए हैं। और चिदंबरम परिवार स्वतंत्र घूम रहा है।
Unless PM dismantles the Gang of Four, our actions on corruption will fail.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 25, 2018
दुर्देव के पास एक अच्छी पैसा बनाने वाली प्रणाली थी जब तक…
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) को केंद्रबिंदू बनाके तैयार की गई सुलभ पैसा वाहन कुछ चहेतों के लिए काफी लाभ कमा रहा था। चूंकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और क्षेत्रीय एक्सचेंजों को समाप्त कर दिया गया था, एनएसई एकमात्र ऐसी इकाई थी जो अभी भी बची हुई थी। फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआयएल) समूह के एक्सचेंजों की एक श्रृंखला के साथ वित्तीय बाजारों पर कब्जा करने तक, जहाँ प्रत्येक एनएसई के समकक्ष प्रस्ताव को समीप से हराता हुआ। चिदंबरम ने एफटीआईएल को विफल करने के लिए अन्य साधनों के मध्यम से कोशिश की थी, लेकिन जिग्नेश शाह एक मिशन पर थे और एनएसई को टक्कर देने के लिए एक संपूर्ण स्टॉक एक्सचेंज तैयार करना चाहते थे और यही वजह थी पीसी के क्रोधित होने की। ध्यान से करवाए गए चालों से, नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) में एक संकट निर्माण किया गया और इसके द्वारा शाह को बरबाद किया गया था। एक बार इस उद्देश्य के पूरे हो जाने के बाद, गुप्तदल यथास्थिति बहाल करने में कामयाब रही।
सरकार को बाजार में पक्षपात नहीं करना चाहिए। केवल इसके लिए ही पीसी और उसकी सी-कंपनी के नौकरों को दंडित किया जाना चाहिए। उनमें से कुछ ने विशेष प्रयास किया जो इस प्रकार है:
रमेश अभिषेक और नियामक शक्तियों का दुरुपयोग | |
संबंधित अनुबंध को अभी भी अवैध प्रमाणित करना शेष है | एनएसईएल में एक विशेष अनुबंध का व्यापार, जिस पर उसने आपत्ति उठाई और जिसके लिए उसने एक्सचेंज के कामकाज को इस आरोप पर रोक दिया कि यह गैरकानूनी है उसे अब भी सिद्ध नहीं किया गया है। |
एक महत्वपूर्ण बैठक के कार्यवृत्त का लापता होना या उसे खोना | प्रतीत होता है कि, भुगतान चूक के तुरंत बाद सभी हितधारकों के साथ, 4 अगस्त, 2013 को आयोजित किए गए बैठक, जहाँ ऐसा लगा कि समस्या सभी पक्षों की संतुष्टि से हल की गई, के कार्यवृत्त गायब हो गए हैं या मिल नहीं रहे है। |
एक महत्वपूर्ण आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) जाँच रिपोर्ट को दबाना | श्री राजवर्धन सिन्हा, अपर आयुक्त, आर्थिक अपराध शाखा, मुंबई ने दलालों द्वारा बाजार के दुरूपयोग पर एक विस्तृत पत्र भेजा, उस पर कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि उसे दबा दिया गया। अभी भी स्पष्ट नहीं है कि किसके इशारे पर और किस उद्देश्य से। |
एनएसईएल के प्रतिद्वंद्वी एक्सचेंज के लिए निर्धारित सिद्धांत का अनुसरण ना करना | सरकार ने 2008 में, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की सहायक कंपनी, एनसीडीईएक्स द्वारा प्रवर्तित, एनएसपीओटी को छूट दी और इन दोनों को अलग और स्वतंत्र बनाकर सहायक के सभी कार्यों से एनसीडीईएक्स को अछूता किया। 8 अगस्त 2011 को डीसीए ने एमओएफ को सलाह दी कि यह सिद्धांत सभी स्पॉट एक्सचेंजों के लिए लागू होगा। फिर भी रमेश अभिषेक ने एनएसईएल में भुगतान की समस्या के लिए एफटीआईएल पर हमला करते हुए इस सिद्धांत की धज्जियां उड़ा दीं, जो वास्तव में उसके ही अविवेकी कार्रवाई की वजह से शुरू हुआ था। |
नियामक सारपत्र और संलेख का उल्लंघन | बिना किसी वैध साक्ष्य के और अपने नियामक ब्योरे का उल्लंघन करते हुए, उन्होंने दलालों और अपराधीयों जैसे प्रमुख खिलाड़ियों पर समान कार्रवाई के बिना एफटीआईएल और उसके प्रमोटर को “अयोग्य और अनुचित” घोषित कर दिया और एफटीआईएल के साथ एनएसईएल के विलय की सिफारिश की जो एक भयावह और साथ ही असंवैधानिक मुद्दा भी बन गया है। |
बाजार को गुमराह करना | एनएसईएल संकट स्वयं के अलावा किसी और के द्वारा नहीं बनाए जाने के कारण, उसने विभिन्न पहलुओं पर जनता, एजेंसियों और मीडिया को गुमराह किया और आसानी से हल करने योग्य समस्या का समाधान नहीं किया |
सरकार एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी द्वारा इस तरह के विनियामक हस्तांतरण को कैसे अनदेखा कर सकती है?
मुख्यधारा मीडिया का क्या?
मीडिया जो बाजार के घटनाक्रम के बारे में सूक्ष्मता से चर्चा करता है – ने कैसे इस तरह के गंभीर खामियों को बिना किसी जांच या चर्चा के जाने दिया? एनएसईएल द्वारा अनुचित और अयोग्य घोषित किए जाने के बाद एफटीआईएल और शाह के खिलाफ जानबूझकर करवायी करने किसने उकसाया? अब जब सच्चाई सामने आ रही है, क्या वही मीडिया अपनी गलतियों को मानेगी?
सेबी: सभी कानून के समक्ष समान हैं
दलालों के खिलाफ पिछले पांच वर्षों में स्थापित किए गए इतने सारे सबूतों के बाद, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) शीर्ष पांच दलालों के बंद किए गए संस्थानों को अयोग्य और अनुचित घोषित करने जैसे असन्तोषजनक जिससे उनके वर्तमान व्यवसाय या भविष्य के विकास किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होंगे? जब एक ही मामले में एक जैसे खिलाड़ियों के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है तो क्या संदेश दिया जा रहा है? एक के साथ सक्ति और दूसरे के साथ नर्मि से पेश आ रहे हैं।
कैसे मुख्य आरोपीयों को हल्की करवायी करके छोड़ दिया गया जबकि एक्सचेंज और उसके प्रवर्तकों को कड़ी सजा दी गयी?
कमोडिटीज उत्पादक संघ दालों की मूल्य तय करता है
एफएमसी की कार्रवाई से बाजार को क्या फायदा हुआ? लगभग कुछ नहीं। जैसा कि 2016 में ग्लेनकोर, एक्सपोर्ट ट्रेडिंग ग्रुप और एडलवाइस जैसे प्रमुख कमोडिटी खिलाडियों के बीच मिलीभगत द्वारा दालों की कीमतों में हेराफेरी के रायटर्स द्वारा हाल ही में अनावरण से देखा जा सकता है। एएसईएल कमोडिटी खिलाड़ियों की व्यापक भागीदारी द्वारा कुशल मूल्य खोज प्रक्रिया में एक उपयोगी साधन हो सकता था इसके बजाय के कुछ लोगों द्वारा तय करना और बिना पारदर्शिता के चयन करना। एनएसईएल ने 2013 में जो व्यवसाय किया था, पांच साल बाद भी कोई अन्य खिलाड़ी उस तक नहीं पहुंच पाया यह बताता है कि विनिमय के कठिन काम को कैसे अपने स्वामी की सेवा करने के लिए उत्सुक एक लालची नौकरशाह ने स्वयं के हित के एकमात्र उद्देश्य से नष्ट कर दिया था।
भारत को ऐसे मूल्य विध्वंसक से सतर्क रहना चाहिए! उन्हें अदंडित नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें अत्यधिक दंड और जुर्माना के अधीन करना महत्वपूर्ण है ताकि अन्य अधिकारी इस तरह के बेईमान और बुरे काम करने से पहले दो बार सोचेंगे। किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को इस तरह के लूटनेवाले दफ़्तरशाहों से मुक्त बनाना होगा जो बाजारों के विकास को निर्दयी तरीके से रोक देते हैं। क्या सरकार ऐसा करेगी? केवल समय ही बताएगा।
सन्दर्भ:
[1] Swamy accuses Hasmukh Adhia-led Gang of Four of trying to save Chidambaram by intimidating ED officer Rajeshwar Singh – Jun 28, 2018, PGurus.com
[2] Indian antitrust watchdog raids Glencore business, others over pulse prices – sources Mar 16, 2019, Reuters.com
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