
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के उन अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जो आरबीआई अधिकारी बैंकों के उच्च मात्रा ऋणों का हिस्सा थे, और यही ऋण बाद में ऋण धोखाधड़ी या घपलेबाजी सिद्ध हुए। अपनी याचिका में स्वामी ने बताया कि आरबीआई अधिकारियों के अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल होने की भूमिका और बैंक धोखाधड़ी में उनकी मिलीभगत की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच की जानी चाहिए। उनकी याचिका को, वकीलों एमआर वेंकटेश और सत्य पॉल सभरवाल द्वारा पेश किया गया, इस याचिका में ऋण धोखाधड़ी और ऐसे लंबित कई मामलों की एक श्रृंखला को सूचीबद्ध किया गया है। याचिका में दोहराया गया कि ऐसे सभी ऋण बैंकों के बोर्डों में शामिल आरबीआई अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं और इसलिए इन उच्च-मात्रा वाले ऋणों को स्वीकृति देने में आरबीआई अधिकारियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए।
यह बैंकिंग मामलों पर सुब्रमण्यम स्वामी का दूसरा मामला है। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उनकी पहली याचिका उच्च मात्रा ऋण संवितरण के लिए दिशानिर्देश बनाने के बारे में थी। क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट – हाउस ऑफ डेट्स का हवाला देते हुए, स्वामी ने बताया कि भारत के शीर्ष 10 कॉर्पोरेट घरानों ने 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक का एनपीए (निष्क्रिय संपत्ति) किया है और 100 करोड़ से ऊपर के ऋणों की निगरानी के लिए एक एकल निकाय होना चाहिए। भाजपा सांसद ने इस मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि आरबीआई ने उन आरटीआई याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक के धोखाधड़ी वाले मामलों और उनमें शामिल बैंकों की सूची की मांग, जो एक जनवरी 2015 से आज तक आरबीआई सेंट्रल फ्रॉड रजिस्ट्री में दर्ज किये गए हैं, की गयी थी।
वर्तमान – दूसरे मामले की याचिका में, स्वामी ने सुझाव दिया कि आरबीआई अधिकारियों की भूमिका की सीबीआई जांच की जानी चाहिए और कहा कि इन अधिकारियों की मंजूरी के बिना, बैंक इस तरह के उच्च-मात्रा वाले ऋणों को स्वीकृति नहीं दे सकते। याचिका में, स्वामी ने कहा कि आरबीआई के अधिकारियों ने सक्रिय मौन समर्थन दिया और अपने वैधानिक कर्तव्यों का गंभीर उल्लंघन किया है।
पीआईएल में कहा गया – “… किसी भी बैंक द्वारा रिपोर्ट की गई धोखाधड़ी के मामले में आरबीआई के किसी भी अधिकारी को कर्तव्यों के उल्लंघन के लिए कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। यह भारत के बैंकिंग क्षेत्र में हुए कुल तीन लाख करोड़ के घोटालों की मात्रा देखते हुए बहुत ही बेढंगा लगता है।”
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न बैंकों ने एक के बाद एक घोटालों की रिपोर्ट की है जिसमें बैंक अधिकारियों की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से आरबीआई के एक भी अधिकारी को न्याय का सामना नहीं करना पड़ा, बावजूद इसके कि आरबीआई भारत में सभी बैंकिंग कंपनियों के कामकाज की निगरानी, विनियमन, पर्यवेक्षण, लेखा परीक्षा और निर्देशन करने की शक्ति रखता है।
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डॉ स्वामी ने याचिका में कहा – “मुद्दे की बात, बैंकिंग विनियमन अधिनियम की योजना भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंक प्रबंधन का अंतरंग बनाती है, ऐसा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में अधिक है। फिर भी, किसी भी हाई-प्रोफाइल बैंकिंग घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की जांच नहीं की जा रही है। इन घोटालों में आरबीआई के अधिकारियों की भूमिका को भी एक सरसरी स्तर पर जांचने की कोशिश नहीं की गई है।”
याचिकाकर्ता ने किंगफिशर, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश- प्राइवेट शुगर ऑर्गनाइजेशन, नीरव मोदी / पंजाब नेशनल बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक, आईएलएफएस, पीएमसी बैंक, यस बैंक, फर्स्ट लीजिंग सहित कई घोटाले बताए हैं।
स्वामी ने याचिका में कहा कि आरबीआई के अधिकारियों की सक्रिय मिलीभगत के कारण यह घोटाला हुआ है, जो विभिन्न विधानों के तहत पर्याप्त शक्तियों के साथ इन घोटालों को रोकने में विफल रहे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि आरबीआई ने उन आरटीआई याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक के धोखाधड़ी वाले मामलों और उनमें शामिल बैंकों की सूची की मांग, जो एक जनवरी 2015 से आज तक आरबीआई सेंट्रल फ्रॉड रजिस्ट्री में दर्ज किये गए हैं, की गयी थी। उन व्यक्तियों का विवरण जिनके खिलाफ आरबीआई द्वारा 01-01-2015 से अब तक प्रत्येक मामले में 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक की धोखाधड़ी के संबंध में कार्रवाई शुरू की गई है। हालांकि, दायर आरटीआई दायर पर आरबीआई की प्रतिक्रिया संतोषजनक नहीं थी, सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी जनहित याचिका में कहा।
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