पीगुरूज ने लंदन में स्थित हमारे शुभचिंतकों से भारत में रक्षा सौदों में बड़े फर्जीवाड़े और टाट्रा ट्रक्स घोटालेबाजों और स्वर्गीय रवि ऋषि (जिनका 2016 मध्य में निधन हो गया) से जुड़े होने से सम्बंधित बहुत सी सामग्रियों को प्राप्त किया है। यह जानकर हैरानी होती है कि उनकी कंपनियां, जो अब उनके परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित हैं, अभी भी भारत के रक्षा मंत्रालय के साथ कई सौदों में लिप्त हैं, राजनीतिक सीमाओं से परे राजनेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों की मदद से। आज हम भारत के सरकारी खजाने को लूटने वाले लंदन स्थित ऑपरेटरों को बेनकाब करने के लिए – तुच्छ रक्षा सौदे के नाम से एक श्रृंखला चला रहे हैं।
तुच्छ रक्षा सौदे – भाग 1
टाट्रा ट्रक घोटाला 2012 सुर्खियों में रहा जब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने खुलासा किया कि एक लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह ने खरीद को मंजूरी देने के लिए रिश्वत की पेशकश की थी। चेकोस्लोवाकिया के विघटन के बाद, टाट्रा ट्रक्स की आपूर्ति को लंदन निवासी, दिल्ली के मूलनिवासी रवि ऋषि (पूरा नाम रविंद्र कुमार ऋषि) द्वारा नियंत्रित किया गया और इस मामले में, रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भी रिश्वत के प्रयास के बारे में बताया। रवि ऋषि अपनी फर्म वेक्ट्रा ग्रुप के माध्यम से सौदे कर रहा था, जहाँ उसका साथी कोई और नहीं बल्कि भगोड़ा हथियार व्यापारी संजय भंडारी था, जिसे सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति के कुछ हिस्से से संबंधित माना जाता है।
पीगुरूज के लंदन स्थित शोधकर्ताओं (कुछ निजी अन्वेषक भी हैं) द्वारा दिवंगत रवि ऋषि की डायरियों / ईमेलों से पता चलता है कि रवि ऋषि जब भी दिल्ली में उतरते थे, चाणक्यपुरी के एक चैपल में सुबह सोनिया गांधी से मिलते थे। हमने कई वीआईपी (राजनेता, नौकरशाह, पत्रकार – ऐसे ही एक जालसाज पत्रकार हाल ही में जेल में थे) की कई तस्वीरें देखीं, जिनमें वो रवि ऋषि के साथ लंदन में जीवन का आनंद ले रहे थे, जिनके पास दिल्ली की पॉश कैलाश कॉलोनी में घर भी है ।
आइए हम टाट्रा घोटाले पर वापस लौटते हैं – 2011- 2012 में भारत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का सामना कर रहा था और घोटालों की बहुतायत ने कांग्रेस सरकार के कार्यकाल को प्रभावित किया और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने टाट्रा ट्रक घोटाले में दो मामले दर्ज किए। एक रिश्वत की पेशकश के बारे में जनरल वीके सिंह की शिकायत पर आधारित था और हाल ही में अगस्त 2019 के मध्य में सुनवाई अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह के खिलाफ आरोप तय किए हैंh[1] ।
अब हम देखते हैं कि भ्रष्ट राजनेता और नौकरशाह देश में जिसके हाथ सत्ता होती है उसके साथ मिलकर कैसे काम करते हैं। सीबीआई ने टाट्रा घोटाले में एक दूसरा मामला भी दर्ज किया, जो कि रवि ऋषि की अगुआई में लंदन मंडली के माध्यम से भारतीय सेना के लिए ट्रकों की खरीद में दशकों से चली आ रही रिश्वत का मामला है। 2012 में सीबीआई की पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के बाद, रवि ऋषि के वेक्ट्रा ग्रुप और उनके और उनके निदेशकों सहित सभी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था और उनके सभी व्यवसाय रक्षा, गृह मंत्रालय और अन्य विभागों के साथ बंद कर दिए गए थे। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) फर्म बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) पूरी तरह से टाट्रा ट्रकों की आपूर्ति में रवि ऋषि की लूट का हिस्सा था [2]।
लेकिन अगस्त 2014 में, सीबीआई ने इस मुख्य मामले में एक अंतिम (क्लोजर) रिपोर्ट दायर की जिसमें कहा गया कि कुछ भी ठोस नहीं पाया गया। लेकिन आज तक, अदालत ने सीबीआई द्वारा इस संदिग्ध अंतिम रिपोर्ट को मंजूरी नहीं दी है और सुनवाई की अगली तारीख 9 सितंबर, 2019 के लिए आगे बढ़ाई गई है। सीबीआई ने पिछले पांच वर्षों से न्यायाधीश को बताया है कि दशकों से लंबित टाट्रा ट्रकों की खरीद में मामले को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें रक्षा मंत्रालय से कोई दस्तावेज नहीं मिल रहा है। यह रक्षा मंत्री के रूप में अरुण जेटली थे जिन्होंने अगस्त 2014 में सीबीआई को मामले को बंद करने के लिए कहा था। यह सर्वविदित है कि कैलाश कॉलोनी में जेटली और रवि ऋषि अच्छे दोस्त और पड़ोसी हैं। जेटली का घर A-44 है और कैलाश कॉलोनी में रवि ऋषि का घर A-54 है। खैर दोनों अब इस संसार में नहीं हैं।
इस सीबीआई अंतिम रिपोर्ट का उपयोग करते हुए, रवि ऋषि ने कुछ ऑफसेट अनुबंधों के साथ कैलाश कॉलोनी पड़ोसी अरुण जेटली के रक्षा मंत्री बनने के तुरंत बाद रक्षा सौदों में प्रवेश करना शुरू कर दिया। कैंसर से पीड़ित रवि ऋषि का बाद में 2016 के मध्य में निधन हो गया । पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी सीबीआई के खिलाफ रवि ऋषि के वकील थे [3]। सीबीआई समापन रिपोर्ट, जिसे अभी तक ट्रायल कोर्ट द्वारा मंजूर नहीं किया गया, का उपयोग नकली क्लीन चिट के रूप में कैसे किया गया और उसकी कंपनियों को रक्षा सौदों में प्रवेश करने की अनुमति कैसे दी गई? यह अति महत्वपूर्ण प्रश्न है।
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दिल्ली ट्रायल कोर्ट के लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश के बाद अब सीबीआई और रक्षा मंत्रालय में खलबली मच गई है। क्यों? क्योंकि सीबीआई और रक्षा मंत्रालय को अब जवाब देना है कि उन्होंने अगस्त 2014 में लंदन स्थित हथियार डीलर रवि ऋषि से जुड़े मुख्य मामले को क्यों बंद कर दिया था। 2010 में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने रवि को रूसी जासूसी से सम्बंधित होने के मामले में पकड़ा और तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने उसे बचाया था।
राजनेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों की मदद से, स्वर्गीय रवि ऋषि की फर्म, जो एक फर्जी खोल कंपनी से ज्यादा कुछ भी नहीं, ने दिसंबर 2018 में पनडुब्बी बचाव सिस्टम्स की दो पूर्ण इकाइयों की आपूर्ति के लिए भारतीय नौसेना के साथ प्रतिष्ठित फर्म जेम्स फिशर एंड सन्स के सौदे के लिए 193 मिलियन ब्रिटिश पाउंड (लगभग 1800 करोड़ रुपये) का ऑफसेट अनुबंध हासिल किया। स्वर्गीय रवि ऋषि की बेनामी फर्म एमआईएल व्हीकल्स एंड टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने इस बड़े भारतीय नौसेना सौदे का ऑफसेट अनुबंध प्राप्त किया था। इस फर्जी खोल कम्पनी के पास प्रदत्त (पेड-अप) पूंजी के रूप में केवल 3 लाख रुपये है और सरकारी रिकॉर्ड में इस खोल फर्म का पहला पता ए -54, कैलाश कॉलोनी, नई दिल्ली – 110048 है – जो स्वर्गीय रवि ऋषि का घर का पता भी है।
कल जारी रहेगा – रक्षा में कौन से अन्य सौदे हैं और वे कौन हैं जो लंदन स्थित रक्षा व्यापारियों को समर्थन दे रहे हैं …
संदर्भ:
[1] Court frames charges against Tejinder Singh – Aug 17, 2019, The Hindu
[2] Tatra deals: CBI questions Ravi Rishi – Jul 16, 2016, The Hindu
[3] Tatra scam: CBI opposes Ravinder Rishi’s plan to travel abroad – Aug 7, 2012, India Today
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