केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद को क्या सच बोलने की सजा मिली है!
केरल के तिरुअनंतपुरम में भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई से बचने के लिए सरकार ने राज्यपाल की शक्तियां कम कर दी हैं। इस बारे में विधानसभा की विचार समिति ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक को पारित कर दिया है। संशोधन के तहत मुख्यमंत्री के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत होने पर राज्यपाल के पास फैसला लेने का अधिकार नहीं होगा। यह अधिकार अब विधानसभा को दे दिया गया है। जबकि मंत्रियों के खिलाफ रिपोर्ट आने पर मुख्यमंत्री फैसला लेंगे और विधायकों के खिलाफ शिकायत का फैसला विधानसभा अध्यक्ष लेंगे।
हालांकि, जनसेवक के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत होने पर अपीलीय अधिकारी कौन होगा, इसका फैसला नहीं हुआ है।
संशोधन विधेयक पर 29 अगस्त को विधानसभा में भी चर्चा होनी है। बता दें कि ये फैसला उस समय हुआ, जब खुद मुख्यमंत्री विजयन पर राज्य के फंड के दुरुपयोग का आरोप लगा। उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू के खिलाफ भी आरोपों सहित लोकायुक्त के समक्ष सरकारी अनियमितताओं के बारे में कई शिकायतें हैं। ऐसे में सरकार राहत खोजने में जुटी हुई थी। विश्लेषकों का मानना है कि विजयन को अपनी सदस्यता जाने का डर था, इसी कारण संशोधन लाए।
राज्य के कानून मंत्री पी राजीव ने इस कदम को सही ठहराते हुए मीडिया से कहा कि सरकार लोकायुक्त को न्यायिक प्रणाली के बजाय एक जांच तंत्र के रूप में देखती है। कोई भी जांच एजेंसी सजा तय नहीं कर सकती है। वहीं, विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा कि यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ है। ये संविधान का उल्लंघन है। साथ ही न्यायपालिका का भी।
विधेयक पास होने के बाद सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव बढ़ सकता है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद इस बारे में पहले ही वाम सरकार को चेतावनी दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि वह विधानसभा द्वारा पारित उन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जो संविधान की भावना और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ जाते हैं।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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