एम आर मिश्रा के हस्ताक्षर किये हुए इस परिपत्र में कहा गया है कि पीटीआई के नयी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद कार्यालयों के कर्मचारी इस नई निगरानी प्रणाली का हिस्सा होंगे।
पत्रकारों को लोकशाही का प्रहरी माना जाता है। क्या भारत की प्रधान समाचार संस्था प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) ने इस कहावत को मूल्य पर लेते हुए अपने पहरेदारों (पत्रकारों) पर, उनके पहचान पत्रों में जीपीआरएस लगाकर, नज़र रखने का निर्णय लिया? सोमवार को सारे पीटीआई कर्मचारियों को जारी किए गए परिपत्र ने उनमें आक्रोश पैदा किया और वामपंथी श्रमिकसंघों ने पीटीआई प्रबंधन के इस निर्णय के खिलाफ लड़ने का फैसला किया है।
पिछले कुछ वर्षो से पीटीआई झूठे समाचार प्रकाशित करने एवं गलत जनशक्ति आवंटन के लिए विवादों में घिर गया है।
चौथे स्तंभ का कर्तव्य है कि वह तीन अन्य स्तंभों की ओर से आवाज़ उठाएं एवँ सुनिश्चित करें कि कार्यकारी सचेत रहते हैं। लगता है बड़े भाई (प्रबंधन), पत्रकार चौबीसों घंटे और सातों दिन कहाँ रहते हैं इसकी जानकारी रखना चाहते हैं। पत्रकारों की निगरानी लोकशाही में नया पतन है।
एम आर मिश्रा के हस्ताक्षर किये हुए इस परिपत्र में कहा गया है कि पीटीआई के नयी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद कार्यालयों के कर्मचारी इस नई निगरानी प्रणाली का हिस्सा होंगे। उनके पहचान पत्रों में जीपीआरएस (पैकेट उन्मुख मोबाइल डेटा सेवा) सक्षम प्रणाली होगी जो केन्द्रीकृत ईआरपी प्रणाली से जुड़ी होगी। परिपत्र में कहा गया है कि सभी को मई 25 से इसका पालन करना चाहिए।
परिपत्र में कहा गया कि “हम पीटीआई के सारे कार्यालयों में एक नई केन्द्रीकृत उपस्थिति प्रबंधन प्रणाली आरंभ कर रहे हैं। यह एक जीपीआरएस सक्षम प्रणाली होगी और हमारे केन्द्रीकृत ईआरपी प्रणाली से जुड़ी होगी। इस नई प्रणाली में दोहरा उपस्थिति तंत्र होगा जिसमें कर्मचारियों के पास आरएफआईडी और बॉयोमीट्रिक आईडी दोनों होंगे। हम छह जगहों से शुरुआत करेंगे – नयी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद”। इस परिपत्र ने कर्मचारियों में तहलका मचा दिया। कई संघों के नेताओं ने कहा कि वे पीटीआई के इस निगरानी रखने के असभ्य निर्णय का विरोध करेंगे।
इस विवादास्पद परिपत्र में, जिसमें कर्मचारियों के पहचान पत्रों में निगरानी उपकरणों को स्थापित करने पर जोर दिया गया है, कहा है कि “सारे कर्मचारियों से निवेदन किया जाता है कि वे दिए गए एक्सेल शीट पर अपनी जानकारी भरें, डिजिटल फोटो अपलोड करें, इलेक्ट्रॉनिक रूप से हस्ताक्षर स्कैन करें और idcard@pti.in इस ईमेल अड्रेस पर 25 मई, 2018 से पहले भेज दें। जिन कर्मचारियों के पास ईमेल आईडी नहीं है या जिन्हें कंप्यूटर की जानकारी नहीं है वे अपने विभाग प्रमुख से फॉर्म के हार्ड कॉपी प्राप्त कर सकते हैं। अपने कर्मचारियों से भरे हुए फ़ॉर्म मिलने के बाद एचओडी उन्हें सीएओ कार्यालय में जमा करेंगे। फार्म और आधार-सामग्री के नमूने आप के उद्धरण के लिए जोड़े गए हैं”।
कई कर्मचारी संघों के नेताओं के अनुसार यह नृशंस निर्णय पीटीआई के मुख्य संपादक विजय जोशी के कहने पर लिया गया। नेताओं ने कहा कि वे पीटीआई के मंडल, जिसके सदस्य मीडिया कंपनियों के मालिक हैं, के समक्ष अपना विरोध दर्ज करेंगे। पीटीआई के वर्तमान अध्यक्ष इंडियन एक्सप्रेस के मालिक विवेक गोएंका हैं और उपाध्यक्ष हिंदू समाचार पत्र के पूर्व संपादक और मुख्य अंशधारक एन रवि हैं।
पिछले कुछ वर्षो से पीटीआई झूठे समाचार प्रकाशित करने एवं गलत जनशक्ति आवंटन के लिए विवादों में घिर गया है। पिछले दो दशकों से अधिक समय तक एम के राजदान पीटीआई के मुखिया रहे हैं और कई सेवा विस्तारों ने लंबे समय से सेवा ने संगठन के वरिष्ठता और पदानुक्रम को बिगाड़ दिया है[1]। राजदान के विस्तारों को मंडल के अधिकांश सदस्यों एवँ सभी दलों के राजनेताओं का समर्थन मिला। हाल ही में राजदान ने विजय जोशी, जिन्होंने ज्यादातर दक्षिण एशियाई देशों में कई दशकों तक काम किया, को कार्यकारी संपादक वी के चंद्रशेखर की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ करते हुए संपादक बनाया। ये किसी के लिए संक्षिप्त विवरण नहीं है। ये केवल तथ्य विवरण है। संसद की मीडिया मान्यता समिति ने विजय जोशी को अपने संसद कवरेज अनुभव के बारे में झूठ बोलते हुए पकड़ा[2]।
कई कर्मचारियों का कहना है कि समाचार वितरण की गुणवत्ता बिगड़ रही है। इसका मुख्य कारण है अनुभवहीन जोशी की कार्यशैली, जो अब भी सेवानिवृत्त राजदान से आदेश लेते हैं। हाल ही में राजदान के प्रिय प्रियंका टिकू को, कई वरिष्ठ पत्रकारों को दरकिनार करके, उप कार्यकारी संपादक बनाया गया। कई दीर्घानुभवियों का कहना है कि जोशी सिर्फ अंतःकालीन व्यवस्था के लिए रखा गए हैं और जब प्रियंका टिकू मुख्य संपादक बनने के लिए तैयार हो जाएगी तब जोशी को जाना पड़ेगा। उन्होंने ये भी कहा कि अकुशल समाचार वितरण के कारण पीटीआई ने पहले से ही कई ग्राहकों को खो दिया है।
एक दीर्घानुभवी पीटीआई कर्मचारी ने बताया कि “जीपीआरएस सक्षम प्रणाली देश में फैले हुए पत्रकारों एवँ अन्य कर्मचारियों को ट्रैक करने के लिए प्रस्तावित किया गया है। यह कर्मचारियों को बाँधने के समान है जैसे वे किसी कारागार में है। यह नया फतवा तब जारी किया जा रहा है जब गुणवत्ता और सेवा की मात्रा बिगड़ती जा रही है। सदस्य समाप्त हो रहे हैं। 70 सदस्य चले गए हैं, इनमें दो बड़े समूह, जिनकी सालाना आमदनी 2 करोड़ रुपये है, भी शामिल हैं। जोशी स्थिति का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं और अब वह ये संदिग्ध जीपीआरएस स्थापना लेकर आये हैं जो संगठन के बितर बड़े पैमाने पर क्रोध उत्पन कर रहे हैं”।
संदर्भ
[1] Mess in Press Trust of India. Who is the next editor at PTI? Jul 23, 2016, PGurus.com
[2] PTI Editor Vijay Joshi caught for making false claims by Lok Sabha. Permanent pass withheld – Nov 2, 2016, PGurus.com
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