क्या चिदंबरम के सेवक को आरबीआई के उप प्राधिकारी बनाये जाने को लेकर सेज सजाई जा रही है?

आरबीआई में उप प्राधिकारी का पद कई महीनों तक खाली पड़ा है

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क्या चिदंबरम के सेवक को आरबीआई के उप प्राधिकारी बनाये जाने को लेकर सेज सजाई जा रही है
क्या चिदंबरम के सेवक को आरबीआई के उप प्राधिकारी बनाये जाने को लेकर सेज सजाई जा रही है

एफएसआरएएससी ने चिदंबरम के एक सेवक को आरबीआई के उप प्राधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया!

कहिये कि यह वास्तिवकता नहीं है, वित्त मंत्रालय। कि वित्तीय क्षेत्र नियामक नियुक्ति खोज समिति (एफएसआरएएससी), मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में, ने डॉ. के पी कृष्णन (केपीके) की सिफारिश नहीं की है। के पी कृष्णन वाणिज्यिक बैंकर नहीं है और इसलिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के उप प्राधिकारी पद के लिए उनका सुझाव नहीं किया जाना चाहिए।

यह आश्चर्यजनक है कि कई बार के पी कृष्णन और पी चिदंबरम के गहरे संबंध के बारे में जानकारी देने के बावजूद एफएसआरएएससी ने के पी कृष्णन [1] की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। क्या वित्त मंत्रालय में कुछ लोग ऐसे हैं जो अपना ग्लूटस मेक्सीमस (थरूर की भाषा में ‘पिछवाड़े’ का शब्द) बचाने के लिए पीसी के करीबी व्यक्ति को इस पद में बिठाना चाहते हैं इसके बावजूद कि ये अत्यधिक श्रेणी सचेत बाबू लोगों के लिए क्रमवार घटाना होगा?

यह पद इतने समय तक रिक्त क्यों रखा गया?

आरबीआई के उप प्राधिकारी का पद 31 जुलाई, 2017 को, एस एस मुंद्रा के तीन साल के अवधि के पश्चात, रिक्त हुआ। मुंद्रा आरबीआई के उप प्राधिकारी के पद के लिए चुने जाने के पहले वाणिज्यिक बैंकर थे – बैंक ऑफ बरोडा के अध्यक्ष। आरबीआई अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय बैंक में चार उप प्राधिकारी होने चाहिए – दो श्रेणी के भीतर से, एक वाणिज्यिक बैंकर और एक अर्थशास्त्री। रिक्तता वाणिज्यिक बैंकर के लिए थी, इसलिए अपेक्षा यही थी की इस पद के लिए वाणिज्यिक बैंकर का ही चयन किया जाएगा।

परंतु ये चयन उन लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं था जो पद को भरने के प्रक्रिया पर नज़र रखे हुए थे। इसके कारण निम्नलिखित हैं :

* उप प्राधिकारी के पद के लिए दूसरी बार विज्ञापन दिया गया, इसके बावजूद कि जुलाई 17, 2017 को भेंटवार्ता लिए    गए और उम्मीदवारों की अल्पसूची पहले भेंटवार्ता के हिसाब से बनायी गयी। इससे ये साफ पता चलता है कि मैच        फ़िक्सिंग हुई थी!
* दूसरे विज्ञापन में जानबूझकर पद के लिए पात्रता मापदंड अस्पष्ट और खुला रखा गया, इसके बावजूद कि केवल           वाणिज्यिक बैंकर ही आवेदन करने के पात्र थे!
* के पी कृष्णन ने पद के लिए आवेदन किया ये जानते हुए कि पद केवल वाणिज्यिक बैंकर के लिए रखा गया था!

यह स्पष्टतः समझ में आता है कि पद की पात्रता को इसलिए बदला गया ताकि कृष्णन को चुना जाए।

यह आश्चर्यजनक क्यों नहीं है? इसके बारे में सोचें – यदि पी चिदंबरम केवल सर्वोच्च न्यायालय के लिए रखे गए रहस्यमय दस्तावेज़ को हथि या सकता हैं, तो उन्हें कृष्णन की सहायता करने के लिए लोग बिठाने में तकलीफ होगी क्या?

यदि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने जाँच समिति की सिफ़ारिश को सहमति दे दी, फिर पी चिदंबरम [2] का चुना हुआ व्यक्ति आरबीआई में होगा, जिसकी कार्यसूची होगी चिदंबरम के व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देना।

परंतु आश्चर्य की बात यह है कि ये जानते हुए भी की कृष्णन पी चिदंबरम का इस सरकार मे आदमी है और संदिग्ध ट्रैक रिकॉर्ड है प्रणाली से छेड़छाड़ करने की ताकि पी चिदंबरम को लाभ पहुँचाया जाए, दक्षिण और उत्तर ब्लॉक में कोई भी उसपे लगाम लगाने की कोशिश नहीं कर रहा है. किसलिए ये प्रश्न उठता है….क्या पीसी को नाराज करने के डर से? केपीके से जुड़े कुछ प्रसिद्ध घटनायें निम्नलिखित हैं :

1. कृष्णन का मुख्यत्व पिछली सरकार में ही कम हो गया जब उनपर पूर्व वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी पर रिकार्डिंग यंत्र के      माध्यम से जासूसी [3] करने का आरोप लगाया गया था। इसीलिए के पी कृष्णन को रातों रात वित्त मंत्रालय से          हटाया गया।
2. कृष्णन पर यह भी आरोप हैं कि उन्होंने सेवा नियमावली का हेरफेर किया। सात साल के केंद्रीय सेवा के बाद हर            कर्मचारी को नए पद पर नियुक्त होने से पहले निष्क्रिय समयावधि पर रहना पड़ता है। परंतु कृष्णन दिल्ली में           कर्नाटक के निवासी कमिश्नर के पद में नियुक्त हुए। फिर वो प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य बने     बुरे शैक्षिक क्रेडेंशियल्स के बावजूद।
3. जब पीसी वित्त मंत्रालय में लौटे तो किसे तेज़ी से मंत्रालय में लाया गया? कृष्णन को! उन्हें महानिदेशक और अपर        सचिव, मुद्रा निदेशालय, आर्थिक कार्य विभाग बनाया गया। ये एक अवधि पूरी हो चुकी पोस्ट थी जिसे उन्होंने अपने     आप के लिए पुनर्जीवित किया और निष्क्रिय समयावधि को भी हटवा दिया।
4. मुद्रा स्याही आयात घोटाला में मुख्य आरोपी कृष्णन थे परंतु उन्होंने अपनी जगह किसी और को फँसा दिया।

यदि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने जाँच समिति की सिफ़ारिश को सहमति दे दी, फिर पी चिदंबरम का चुना हुआ व्यक्ति आरबीआई में होगा, जिसकी कार्यसूची होगी चिदंबरम के व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देना। यदि यह हुआ तो वह प्रणब मुखर्जी के दुभाषी यंत्र का दोहन करने जैसा होगा। एनडीए हो या यूपीए, लगता है चिदंबरम [4]. हमेशा विजेता होंगे!

संदर्भ:

[1] Why the delay in the selection of Deputy Governor? Apr 27, 2018, PGurus.com

[2] The Target: The Decimation of Jignesh Shah’s Global Empire, how he Broke the Market Monpoly and the Price He Paid – Books.Google.com

[3] Dr. Swamy’s letter to the PM – Jul 4, 2011, Janata Party Press Release

[4] Who should be the next Governor of RBI? Apr 23, 2018, PGurus.com

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