भारत और चीन के बीच नौवें दौर की सैन्य-स्तरीय वार्ता बिना किसी सफलता के समाप्त हो गई
रविवार को भारत और चीन के बीच नौवें दौर की सैन्य वार्ता में कुछ भी महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकला, सिवाय संवाद के माध्यम से तनातनी को निपटाने और पीछे हटने तथा शांति बहाली के लिए आगे भी बैठक और पारस्परिक रूप से स्वीकृत समझौतों को खोजने के फैसलों के। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और चीन ने “लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव को कम करने के लिए रविवार को सैन्य स्तर की वार्ता का नौवां दौर आयोजित किया और बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने की अपनी प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की”। उन्होंने कहा कि कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन दोनों पक्षों ने जल्द ही मिलने के लिए सहमति व्यक्त की, ताकि पीछे हटने एवं शांति बहाली पर एक सर्वमान्य फैसला किया जा सके।
दोनों सेनाओं के कोर कमांडरों के बीच सात घण्टों से अधिक समय तक चलने वाली वार्ता सुबह 10 बजे से शुरू हुई, जिसे लद्दाख में एलएसी पर चुशुल-मोडो सीमा बैठक स्थल पर आयोजित किया गया था। भारतीय पक्ष का नेतृत्व 14 कोर प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीके मेनन ने किया और प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव भी शामिल था। परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के तत्वावधान में पहले से ही राजनयिक स्तर की वार्ता के छह दौर हो चुके हैं। क्योंकि, पिछले साल मई में दोनों सेनाओं के बीच आमने-सामने भिडंत की शुरुआत हुई थी। हालांकि, ये हस्तक्षेप भी गतिरोध को समाप्त करने में विफल रहे। अंतिम डब्ल्यूएमसीसी वार्ता 18 दिसंबर को आयोजित की गई थी।
भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना ने अपने अग्रिम पंक्ति के सैनिकों और लड़ाकू जेटों को 4,000 किलोमीटर लंबी एलएसी पर सभी महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिया है।
दोनों कमांडरों के बीच 6 नवंबर को आठवें दौर की वार्ता का आयोजन होने के बाद, कोर कमांडर वार्ता का नवीनतम दौर दो महीने से अधिक समय के बाद हुआ है। रविवार को सूत्रों ने कहा कि ताजा प्रकरण से कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला, लेकिन दोनों पक्षों ने हिंसा वाले बिंदुओं और अंतिम रूप से पीछे हटने के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य रूपरेखा पर जोर दिया। अंतिम दौर की बातचीत के बाद जारी एक संयुक्त बयान में, दोनों देशों ने “दोनों देशों के नेताओं द्वारा महत्वपूर्ण आम सहमति, अपने सीमावर्ती सैनिकों को संयम बरतने और गलतफहमी और गलत गणनाओं से बचाव को सुनिश्चित करने सहमति व्यक्त की।” अधिकारियों ने कहा कि दोनों कमांडरों ने रविवार को इस समझौते का जायजा लिया और सौहार्दपूर्ण समाधान मिलने तक इसे बनाए रखने का फैसला किया।
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भारत और चीन के बीच अप्रैल 2020 से चल रहे तनाव की स्थिति का विश्लेषण करते हुए रक्षा विशेषज्ञों ने कहा – “हालांकि बातचीत के माध्यम से रास्ता निकालने पर अपने रुख को दोहराते हुए, भारत कोई मौका नहीं ले रहा था। इस पृष्ठभूमि में, उसने अब तक पैंगोंग त्सो (झील) के दक्षिण और उत्तरी तट पर अपने सैनिकों को रणनीतिक ऊंचाइयों से वापस बुलाने के चीनी आग्रह को ठुकरा दिया था। इसके बजाय, भारत अब तक आयोजित सभी दौर में अपने रुख पर अड़ा हुआ है कि, चीन को पहले एक ही समय में फिंगर 4 से 8 सहित तनाव वाले सभी स्थानों से अपने सैनिकों को वापस बुलाना पड़ेगा। चीनियों ने पैंगोंग त्सो झील के पास इस क्षेत्र में चार किमी से अधिक की घुसपैठ की है। इसके अलावा, भारत इस बात पर अडिग रहा कि गहराई वाले इलाके में चीन को टैंक और आर्टिलरी गन के अलावा अपनी सैन्य ताकत भी कम करनी होगी।”
वर्तमान में, लद्दाख में 1,700 किमी लंबी एलएसी पर दोनों पक्षों के एक लाख से अधिक सैनिक एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। इसके अलावा, पश्चिम में लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक की पूरी एलएसी हाई अलर्ट पर है। भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना ने अपने अग्रिम पंक्ति के सैनिकों और लड़ाकू जेटों को 4,000 किलोमीटर लंबी एलएसी पर सभी महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिया है।
भारतीय वायु सेना (आईएएफ) प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने शनिवार को कहा कि अगर चीन ने पूर्वी लद्दाख में आक्रामक रुख अपनाया, तो “हम भी आक्रामक हो सकते हैं”। भारतीय सेना लद्दाख में शून्य से 30 डिग्री कम तापमान वाली शरीर को गला देने वाली सर्दियों में बहादुरी से खड़ी है। उन्हें स्थिर रखने और उन्हें परिचालन हेतु तैयार रखने के लिए, सेना के पास पर्याप्त संख्या में सर्दियों के कपड़े और पूर्वनिर्मित गर्म तम्बू हैं। इसके अलावा, स्थानीय कमांडर नियमित रूप से लॉजिस्टिक (रसद) स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।
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