मुंबई पुलिस द्वारा गुरुवार को टीआरपी घोटाले पर मामला दर्ज करने के साथ, दर्शकों के डेटा में हेरफेर करने का भारतीय टीवी चैनलों का गुप्त रहस्य अब एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के साथ सार्वजनिक रूप से उजागर हो गया है। विवादास्पद मुंबई पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी चैनल पर आरोप लगाया है, जो 70,000 करोड़ रुपये के विज्ञापन वाले भारतीय टीवी चैनल उद्योग में ऊँट के मुँह में जीरे के समान है। सुनने में आया कि मुंबई पुलिस की एफआईआर में दर्शकों की संख्या में हेराफेरी करने में इंडिया टुडे ग्रुप की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है।
अप्रैल 2018 में, पीगुरूज ने इस टीआरपी (टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स) घोटाले और डेटा की हेराफेरी में बीएआरसी (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) नामक एक निजी एजेंसी की भूमिका को दो रिपोर्टों में विस्तार से प्रकाशित किया है। पहली रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे स्टार टीवी इंडिया के नियंत्रण वाले बीएआरसी को सरकार द्वारा सूचना और प्रसारण मंत्रालय और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके इस रेटिंग व्यवसाय को चलाने की अनुमति दी गई[1]। इस रिपोर्ट ने खुलासा किया कि किस तरह मीडिया घरानों ने बीएआरसी को नियंत्रित किया और कैसे वे भारत के विज्ञापनदाताओं और दर्शकों के डेटा को ठग रहे थे। दूसरी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि विदेशी कंपनियां कैसे अप्रत्यक्ष रूप से बीएआरसी को नियंत्रित करती हैं और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और टीआरएआई (ट्राई) के कई मानदंडों का उल्लंघन करती हैं[2]।
डिश टीवी कंपनियां जैसे टाटा स्काई और एयरटेल अपने केंद्रीय नियंत्रण कक्ष से सीधे दर्शकों की संख्या का डेटा ले सकते हैं। सरकार को कानून के माध्यम से डेटा एकत्र करने के लिए इन कंपनियों को अधिकृत करना चाहिए और कुछेक टीवी सेटों से जुड़े नकली पर्पल मीटर को बंद कर देना चाहिए।
टीआरपी घोटाला क्या है?
अब मुंबई पुलिस ने निचले स्तर पर टीवी रेटिंग में हेरफेर का मामला दर्ज किया है। भारत में, लगभग 40,000 मीटर जिन्हें पर्पल मीटर की तरह जाना जाता है, को टीवी सेटों से जोड़ा गया है। ये दर्शकों के पैटर्न और व्यवहार पर डेटा देते हैं। भारत जैसे देश का केवल 40,000 मीटर आधारित डेटा प्रोफ़ाइल कैसे हो सकता है? बीएआरसी के अनुसार, एक अन्य एजेंसी हंसा रिसर्च ग्रुप देश भर के इन 40,000 घरों से डेटा एकत्र कर रहा है और संभाल रहा है। मुंबई पुलिस के अनुसार, हंसा के एक पूर्व कर्मचारी ने खुलासा किया कि कैसे घरों से जुटाए गए डेटा में हेराफेरी करने के लिए टीवी चैनलों द्वारा रिश्वत दी जाती है।
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कार्यप्रणाली इस तरह है। जिन घरों में मीटर लगाए जाते हैं, वे गुप्त होते हैं। लेकिन जिन घरों में मीटर लगाए गए हैं, उनकी पहचान करने के लिए कर्मचारियों को रिश्वत दी गई। इसी तरह टीवी चैनल के साथ-साथ निजी धारावाहिक कार्यक्रम निर्माता इन घरों से संपर्क करते हैं और उन्हें चैनलों या कार्यक्रमों को देखने के लिए रिश्वत देते हैं। यह एक ज्ञात रहस्य है कि इन घरों को प्रोग्राम देखने के लिए इन घूसखोरों द्वारा एक और टीवी सेट दिया जाता है और वह भी इस शर्त पर कि उन्हें हमेशा टीवी चालू रखना होगा और तकनीकी रूप से रिश्वत वाले चैनलों या कार्यक्रमों को देखना होगा, जिस टीवी सेट से मीटर जुड़ा हुआ है। तो इस तरह, इन घरों में, मीटर से जुड़े टीवी सेट को चालू रखने के लिए मासिक रिश्वत के अलावा एक और टीवी मुफ्त मिलता है। दर्शकों के डेटा में हेरफेर करने में मदद करने के लिए इन घरों को 5,000 रुपये से 10,000 रुपये तक के खरीदारी कूपन भी दिए जाते हैं।
उपर्युक्त उदाहरण केवल एक जमीनी स्तर की धोखाधड़ी है। तो फिर, मुख्य एजेंसी स्तर पर दर्शकों के डेटा में बड़े हेरफेर के बारे में सोचें।
इस धोखाधड़ी को कैसे रोका जाए
डिश टीवी कंपनियां जैसे टाटा स्काई और एयरटेल अपने केंद्रीय नियंत्रण कक्ष से सीधे दर्शकों की संख्या का डेटा ले सकते हैं। सरकार को कानून के माध्यम से डेटा एकत्र करने के लिए इन कंपनियों को अधिकृत करना चाहिए और कुछेक टीवी सेटों से जुड़े नकली पर्पल मीटर को बंद कर देना चाहिए। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और टीआरएआई को एक नई वैज्ञानिक प्रणाली विकसित करने के लिए एक साथ काम करना चाहिए।
संदर्भ:
[1] TRAI Scam: How UPA Government manipulated rules to favour BARC to mint money of Rs.70,000 crore businesses annually – Apr 20, 2018, PGurus.com
[2] TRP Scam: Data fudging or leakages by totally foreign companies-controlled TRP rating agency BARC? Apr 22, 2018, PGurus.com
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