मोदी, शाह को निशाना बनाने की कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों की योजना विफल हुई!
31 मार्च को, अहमदाबाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के एक विशेष न्यायालय ने इशरत जहां मुठभेड़ मामले में तीन और पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया, एक ऐसा फर्जी मामला जिसका इस्तेमाल कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन ने कुछ बिकाऊ और भ्रष्ट पत्रकारों और मीडिया घरानों की मदद से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के गृहमंत्री अमित शाह को फंसाने के लिए किया था। विशेष सीबीआई न्यायाधीश वीआर रावल ने आज पुलिस अधिकारियों जीएल सिंघल, तरुण बारोट, और अनजू चौधरी को 2004 में हुए इशरत जहां कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में बरी कर दिया।
यह एक सिद्ध तथ्य है कि इशरत जहां और उसके तीन साथी (दो पाकिस्तानी) आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से थे, जो 2004 में मुख्यमंत्री मोदी को खत्म करने के मिशन के साथ अहमदाबाद आये थे। 15 जून, 2004 को अहमदाबाद के पास हुई मुठभेड़ में गुजरात पुलिस ने जावेद शेख (एक धर्मांतरित हिंदू, जिसका नाम पहले प्रनेश पिल्लई था) और दो पाकिस्तानियों अमजदली अकबरली राणा और जीशान जौहर के साथ मुंबई के पास मुंब्रा की रहने वाली 19 वर्षीय महिला इशरत जहां को मार गिराया था। गुजरात पुलिस ने केंद्र सरकार के इंटेलिजेंस (खुफिया) ब्यूरो इनपुट के आधार पर कार्रवाई की थी। यहां पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेताओं और मंत्रियों की गंदी चालें उजागर हुईं, जिसमें उन्होंने 19 साल की “मासूम लड़की” इशरत की मौत पर मानवाधिकार का मुद्दा उठाया। उन दिनों भाजपा में भी कई लोगों ने इस मामले का इस्तेमाल बढ़ते हुए मोदी को निशाना बनाने के लिए किया था और यहां तक कि भाजपा के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री ने इशरत को “बिहार की बेटी” तक कह दिया था।
आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू आतंक के मिथक’ में इन सभी धोखाधड़ी की व्याख्या की है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा को इंटेलिजेंस ब्यूरो के नंबर: 2 विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार को फंसाने के लिए मजबूर किया गया।
तथ्यों का खुलासा एक बार पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई द्वारा किया गया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि छिपे हुए लश्कर आतंकियों को बाहर निकालने के लिए आईबी और गुजरात पुलिस का यह संयुक्त अभियान था। आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल को खत्म कर देश में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस तरह के ऑपरेशनों की जरूरत है। लेकिन भारत के राजनेता अपने विरोधियों पर कीचड़ उछालने के लिए किसी भी स्तर तक जाने में सक्षम हैं। यह एक तथ्य था कि पाकिस्तान से संचालित लश्कर की वेबसाइट ने इशरत को अपनी फिदायीन करार दिया था और अपनी वेबसाइट पर दो साल के लिए उसकी तस्वीर लगाई थी। डेविड हेडली ने भी स्वीकार किया था कि इशरत लश्कर आतंकी थी।
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लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को निशाना बनाने के लिए 2009 से कांग्रेस नेताओं के साथ तहलका, इंडियन एक्सप्रेस, एनडीटीवी जैसे बिकाऊ मीडिया घरानों और राणा अय्यूब, श्रीनिवासन जैन जैसे भ्रष्ट पत्रकारों ने हर तरह की गंदी चाल चली। जैन ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए “काला दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी” (काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी) के रूप में एक नई संख्या इजात की। कई लोगों के लिए तोते की तरह काम करने वाले इस पत्रकार के अनुसार, मोदी और शाह ने इशरत जहां को गोली मारने के आदेश दिए थे।
यहाँ दिलचस्प हिस्सा आता है। किसी ने नहीं पूछा कि मुंबई की 19 वर्षीय लड़की तीन आदमियों (दो पाकिस्तानियों) के साथ अहमदाबाद क्यों गयी? केंद्रीय गृह मंत्रालय के अवर सचिव आरवीएस मणि को सीबीआई ने खुफिया ब्यूरो अधिकारियों को फंसाने के लिए प्रताड़ित किया था। उनका पहला हलफनामा न्यायालय में जबरन बदल दिया गया था। तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम और दिग्विजय सिंह इन गंदी चालों के पीछे थे। आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू आतंक के मिथक’ में इन सभी धोखाधड़ी की व्याख्या की है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा को इंटेलिजेंस ब्यूरो के नंबर: 2 विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार को फंसाने के लिए मजबूर किया गया।
सीबीआई ने सात पुलिस अधिकारियों – पीपी पांडे, डीजी वंजारा, एनके अमीन, सिंघल, बरोट, परमार और चौधरी को 2013 में दायर अपने पहले आरोप-पत्र में आरोपी बनाया था। 2019 में, सीबीआई अदालत ने पूर्व पुलिस अधिकारियों वंजारा और अमीन के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया, क्योंकि राज्य सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया था। इससे पहले, 2018 में पूर्व प्रभारी पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे को मामले से बरी कर दिया गया था।
2004 से 2014 तक नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर निशाना साधने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा की गयी क्रूरता पर, दर्शकों के लिए जल्द ही पीगुरूज आरवीएस मणि के साथ एक साक्षात्कार आयोजित करेगा।
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