इस पुस्तक का मूल विषय नवाचार है, जिसे “इक्कीसवीं शताब्दी में परिवर्तन के मुख्य चालक” के रूप में वर्णित किया गया है।
इस महीने की 25 तारीख को हमारे प्रधानमंत्री एवँ उनके कुछ साथियों ने एनडीए सरकार के कार्यालय में चार साल की उपलब्धियों को लेकर काफी सारे आंकड़े पेश किए। और अब उसके कुछ ही दिनों बाद एक 175 पन्नो की पुस्तक में इन उपलब्धियों का अनोखा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। यह पूरी तरह से नया दृष्टिकोण है जिसमें, कर्मठ प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, एनडीए मंडली द्वारा शासन प्रणाली में लाए गए 17 मुख्य नई खोजों के बारे में बताया गया है। कदाचित पहले कभी भी किसी भी सरकार द्वा्रा ऐसा नहीं किया गया है।
मुझे भारत के दलितों के बारे में दिए गए विषय दिलचस्प एवँ जानकारीपूर्ण लगे। मोदी सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया अनुसूचित जाति के लोगों के लिए उद्यम पूंजी दलितों को नौकरी खोजनेवालों से नौकरी देनेवाले बनने को प्रोत्साहित करता है।
यह पुस्तक, जिसका शीर्षक है “अभिनव गणतंत्र”, अपने शीर्षक के साथ पूर्णतः न्याय करती है। इसके सभी 17 अध्याय वाचनीय है और कभी कभी इसमें ऐसे खुलासे हैं जो आश्चर्यचकित कर देते हैं। आरंभ में प्रधानमंत्री द्वारा लिखा गया “सुशासन की राह” नामक लेख भी है। इस पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि इसमें शुद्धिपत्र पन्ना भी नहीं है! अपितु सूची के पाँच पन्ने हैं! ना ही इन शब्दों के वर्तनी के मतांध को एक भी तथाकथित टाइपो त्रुटि मिली और ना ही व्याकरण में कोई गलती दिखायी दी।
इस दुर्लभ पुस्तक की कल्पना विनय सहस्त्रबुद्धे (अमेरिकी विश्वविद्यालय से पीएचडी) और वरिष्ठ एवँ समाचार पत्र/समाचार वेबसाइट में कई पदों पर रहे धीरज नय्यर ने की है। एक और दुर्लभता यह है कि दोनों ही भारतीय सरकार के संरक्षण में हैं। सहस्त्रबुद्धे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवँ राज्यसभा सदस्य हैं, जो पूर्व काल में स्वर्गीय भाजपा सांसद रामभाऊ म्हाळगी के नाम से चल रहे अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के महानिदेशक रहे हैं और एक दशक तक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी। नय्यर विशेष कार्य अधिकारी और भारतीय सरकार के नीति के अर्थशास्त्र, वित्त और वाणिज्य प्रकोष्ठ के मुखिया हैं; इससे पहले वे दिल्ली, ऑक्सफोर्ड एवँ कैंब्रिज से अर्थशास्त्र में प्रशिक्षित हुए।
इस जोड़ी की पुस्तक का मुख्य विषय है नवोन्मेष जो “इक्कीसवीं सदी में परिवर्तन का मुख्य संचालक माना गया है”। इसमें कहा गया है कि “सरकारें, जिन्हें अधिकतर रचनात्मकता, कुशलता एवँ जोखिम उठाने की क्षमता के लिए नहीं जाना जाता, को नई खोज करने की आवश्यकता है”। इसके पश्चात वे, बड़े ही रोचक तरीके से, बताते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार के 17 नवाचारों से प्रत्येक ने किस प्रकार बदलते माहौल के पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित किया है।
शुरुआत में, कैसे प्रधानमंत्री ने, मार्च 2015 से, राष्ट्रीय एवँ राज्य सरकारों के कई उच्च अधिकारियों से लगातार तीव्र विचार विमर्श किया, के बारे में जानकारी दी गई है। इसी विचार विमर्श की वजह से उन्होंने प्रगति, यानी सक्रिय शासन एवँ समय पर कार्यान्वयन, कि रचना की। इसके बाद इस जोड़ी ने 16 अन्य नवाचारों के बारे में, एक के बाद एक, तथ्य प्रस्तुत किया है जो देशवासियों को पता नहीं था।
मुझे भारत के दलितों के बारे में दिए गए विषय दिलचस्प एवँ जानकारीपूर्ण लगे। मोदी सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया अनुसूचित जाति के लोगों के लिए उद्यम पूंजी दलितों को नौकरी खोजनेवालों से नौकरी देनेवाले बनने को प्रोत्साहित करता है। दलित वाणिज्य और उद्योग भारतीय कक्ष के सलाहकार ने टीवी चैनल को बताया कि “समाज में परिवर्तन दिखाई दे रहा है जिसमें कई आर्थिक क्षेत्रों में दलितों की बढ़ती भागीदारी और युवा ही असली ताकत है”। वास्तव में, एक दलित उद्यमकर्त्ता ने “दलित फूड्स” नामक ई-वाणिज्य उद्यम स्थापित किया है।
पुस्तक के निष्कर्ष को सारे पाठशालाओं एवँ विद्यालयों के विद्यार्थियों को बिना मूल्य बाँटना चाहिए और यह भी देश के सभी भाषाओं में होना चाहिए।
यदि आप राहुल भक्त नहीं है तो “अभिनव गणतंत्र” से शासन के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। और मुझे इस बात का जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ कि विज्ञापन में राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफेसर एवँ राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन के अध्यक्ष रघुराम माशेलकर का प्रशंसा लेख है। सीएसआईआर के माशेलकर वह व्यक्ति हैं जिन्होंने कुछ महीनों पहले मुझे कृषि नवाचार पर एक लंबा लेख एक ही ईमेल द्वारा भेजा। इस पुस्तक के लेखकों को देश में व्याप्त कृषि संकट को सुलझाने के लिए शामिल हो जाना चाहिए।
सरकार द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की एक और विशिष्टता है उसकी लिखित शैली। सारे 178 पन्नों में उच्च व्यावसायिकता और रचनात्मक दिमाग की स्पष्टता की मोहर है। इसका एक उदाहरण निम्नलिखित हैं.
“सरकार-नवोत्थान ने पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दिया है”। पुस्तक के अन्दरूनी कवर पर यह प्रकाशित किया गया है।
शासन पर निम्नलिखित परिप्रेक्ष्य पुस्तक के प्रस्तावना में दिया गया है :
“नवाचार की कोई सीमा नहीं! वास्तव में मानव सभ्यता इतिहास ही नवाचारों के बारे में है। ठीक ही कहा गया है कि अंधेरे का मतलब केवल प्रकाश की अनुपस्थिति नहीं है, यह अँधेरे को लेकर अर्थोपाय की जड़ता के बारे में है। उसी प्रकार समस्या यांनी समाधान का अभाव नहीं है। इसका मतलब है विचारों की अपर्याप्त मात्रा। विचारावर्धन आविष्कार की जननी है इसलिए उसे उसके लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण द्वारा मनाया जाना चाहिए”।
लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक के प्रोफ़ेसर एमेरिटस मेघनाद देसाई ने पुस्तक के विज्ञापन में एकदम सही कहा है कि दोनों लेखकों ने हमें एक बहुमूल्य पुस्तक दी है।
यदि इस पुस्तक को देश के हर कोने में पहुँचाना है तो अवश्य ही इसे संविधान में दिए गए सभी भाषाओं में अनुवादित करना होगा और एक रुपये के भाव से जनता को बेचना होगा। साथ ही, पुस्तक के निष्कर्ष को सारे पाठशालाओं एवँ विद्यालयों के विद्यार्थियों को बिना मूल्य बाँटना चाहिए और यह भी देश के सभी भाषाओं में होना चाहिए।
और क्योंकि वह बौद्धिक मुद्दों पर अपनी संपत्ति नहीं खर्च करना चाहेंगे, एक प्रतिलिपि राहुल को भेंट किया जाना चाहिए – इतालवी अनुवाद में। तब जाकर, कदाचित, वह राजनीतिक शासन में ज्ञान और परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता, जो पुस्तक के ऊपर उद्धृत प्रस्तावना भाग में दिया गया है, समझ पाएंगे।
Note:
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