समय है “गुस्सा थूक दो और भूल जाओ” प्रकार के मानहानि के मुद्दों को खत्म करने का!

अब हमें केवल "गुस्सा थूक दो और भूल जाओ" वाले मानहानि मुकदमे नहीं चाहिए। हमें ऐसे मुकदमे चाहिए जिनसे आरोपियों को सीख मिले।

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दिल्ली के मुख्यमंत्री आज कल उन लोगों से माफी मांगने में व्यस्त हैं जिन्होंने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है।

यदि मैं वर्ग-पहेली संपादक होता तो यह सुराग रखता “विप्लववादी क्षमाप्रार्थी (6,8)”

जो पाठक दिल्ली में चल रही घटनाओं की जानकारी रखते हैं वह आसानी से इस वर्ग-पहेली को सुलझा लेंगे। परंतु बाकी पाठकों को बता दें कि इसका सटीक जवाब है “अरविंद केजरीवाल”। जी हाँ, वह एक आत्मघोषित विप्लववादी हैं जो मुख्यमंत्री के रूप में तीन साल के कुशासन के बाद, आज कल वह माफी मांगने की कगार पर हैं, उन पर मानहानि के मामले दर्ज कराए गए हैं, लोगों से आपराधिक मानहानि के मामलों में माफी मांगने में व्यस्त हैं।

आप की जानकारी के लिए बता दें कि ब्लैक की कानूनी शब्दावली के हिसाब से मानहानि का अर्थ है किसी व्यक्ति के चाल, चरित्र या प्रतिष्ठा को झूठे एवं द्वेषपूर्ण वाक्यों से हानी पहुंचाना।

भारत में अपराधिक मानहानि कानून, भारतीय दंड संहिता के अनुभाग 499 में परिभाषित है। इसके तेहत आरोपी को दो साल कैद की सजा दी जाती है, जुर्माना के साथ या बिना जुर्माना।

कुछ आप सदस्यों के मुताबिक उनके नेता ने मामलों को प्रेम पूर्वक सुलझाने का फैसला किया क्यूंकि इनका प्रभाव पार्टी के अभावपूर्ण कोष पर हो रहा है।

केजरीवाल अब तक चार बड़े नेताओं से माफी मांग चुके हैं : नितिन गडकरी ( जिनका नाम केजरीवाल ने “भारत के सबसे भ्रष्ट नेताओं” के सूची में शामिल किया था), कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के पुत्र वकील अमित, अकाली दल के नेता और पंजाब के पूर्व अर्थ मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया। मजीठिया को पंजाब का “ड्रग माफिया” भी कहा था केजरीवाल ने, इन्हीं केजरीवाल को प्रधानमंत्री ने एक बार व्यंग्यात्मक रूप से AK 47 कहा था। हाल ही में, अप्रैल फूल के दिन, केजरीवाल ने देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली से माफी मांगी। दिसम्बर 2015 में केजरीवाल ने जेटली पर दिल्ली क्रिकेट संघ के अध्यक्षता के दौरान भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया।

केजरीवाल अब तक चार विकेट चटका चुके हैं और वो भी बिना गेंदबाजी किए – एक भी रुपये की भरपाई नहीं करनी पड़ी।

नितिन गडकरी और अमित सिब्बल ने केजरीवाल की लिखित माफी को स्वीकार कर लिया। मगर आश्चर्य की बात यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया के 20 मार्च 2018 के एक रिपोर्ट में कहा गया कि “दिल्ली के न्यायालय ने केजरीवाल को दो मानहानि मुकदमों में बरी कर दिया“।

माफ कीजिए, माफी माँगना और बरी होना दो अलग बातें हैं! यदि रिपोर्ट में यह बताने की कोशिश की गई है कि न्यायालय अपराधिक मानहानि कानून के अंतर्गत माफी को किस नज़र से देखता है तो स्पष्ट रूप से न्यायपालिका में गड़बड़ है। इसे सुधारा कैसे जाएं, हम इस पर चर्चा करेंगे।

सिर्फ यह चार क्षमा याचनाओं से केजरीवाल का काम खत्म नहीं होता। लगभग दो दर्जन विकेट और चटकाने हैं उन्हें! उनके खिलाफ कम से कम 30 मानहानि के मुकदमे दर्ज किये गये हैं। परंतु उनके पास विकेट चटकाने के लिए एक जादुई गेंद है : क्षमायाचना– मीठे एवं बड़े विनम्र शब्दों में किंतु आत्म सम्मान रहित वाणी में!

हम केजरीवाल द्वारा वित्तमंत्री अरुण जेटली को लिखे गए माफ़ीनामे पर नजर डालते हैं। अरुण जेटली पर केजरीवाल और उनके आम आदमी पार्टी के 4 मित्रों ने डीडीसीए में उनके लम्बे कार्यकाल के भ्रष्ट होने का आरोप लगाया था।

यह अप्रेल फूल के दिन लिखे गये पत्र के कुछ अंश हैं :

1) मुझे हाल ही में पता चला कि मुझे मिली सूचना और मेरे द्वारा लगाया गया इल्जाम बेबुनियाद व गलत है और मुझे गुमराह किया गया जिसकी वजह से मैंने ये आरोप लगाए,

2) राम जेठमलानी के अपमानास्पद व दुर्भावनापूर्ण बयान के बारे में केजरीवाल को जानकारी नहीं थी। दिलचस्प बात यह है कि जेठमलानी ने कहा कि उन्होंने न्यायालय में वही कहा जो केजरीवाल ने निर्देशित किया था

3) मैं तहेदिल से क्षमाप्रार्थी हूँ और आपको तथा आपके परिवार को क्षति पहुंची है उसके लिए क्षमा माँगता हूँ

क्या आपको लगता है कि केजरीवाल के क्षमायाचना में सच्चाई थी या तहेदिल से किया गया था या यह पत्र उनके पछतावे को व्यक्त करते है?

एक एनडीटीव्ही पत्रकार ने अप्रैल 2, 2018 में लिखा कि कुछ आप सदस्यों के मुताबिक उनके नेता ने मामलों को प्रेम पूर्वक सुलझाने का फैसला किया क्यूंकि इनका प्रभाव पार्टी के अभावपूर्ण कोष पर हो रहा है।

क्षमायाचना से आरोपी को दोषमुक्त नहीं माना जाना चाहिए।

वास्तविकता यह है कि केजरीवाल का क्षमायाचना आर्थिक तनाव की वजह से किया गया ना कि पश्चाताप से! सत्य यह है कि यह क्षमा याचना पैसे बचाने के लिए की गई है और हम सब केजरीवाल की मुश्किलों का सामना ना कर भाग जाने की प्रवृत्ति से भली-भांति अवगत हैं।

यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि हमारे अपराधिक मानहानि कानून को सुधारने की आवश्यकता है। कुछ निम्नलिखित परिवर्तन किए जाने चाहिये :

1) फिलहाल मानहानि के मामलों में शिकायतकर्ता की उपस्थिति आवश्यक है परंतु प्रतिवादी की नहीं। यह अन्यायपूर्ण एवं अबोध्य है,

2) आरोपी को शिकायतकर्ता को मानहानि के अलावा किसी भी विषय पर प्रतिपरीक्षा करने की जरूरत क्यों है? ऐसे बिना रोक टोक प्रतिपरीक्षा से ऐसे विषय पर भी सवाल उठाए जाएँगे जिनका मुद्दे से कोई संबंध नहीं और जिससे शिकायतकर्ता को बेवजह शर्मिंदा होना पड़ेगा। प्रतिपरीक्षा केवल शिकायतकर्ता तक सीमित होनी चाहिए।

3) क्षमायाचना से आरोपी को दोषमुक्त नहीं माना जाना चाहिए। शिकायतकर्ता द्वारा स्वीकार किए गए आरोपों के माफी के मामले में इसे दर्ज किया जाना चाहिए।

4) मुकदमे को सिर्फ तब बन्द किया जाना चाहिए जब आरोपी शिकायतकर्ता को मुकदमे के खर्चों की भरपाई करे। केवल मुकदमे की ही नहीं बल्कि शिकायतकर्ता को हुई मानसिक एवं शारीरिक यातना की भी आर्थिक भरपाई आरोपी से करवानी चाहिए। भरपाई की रकम न्यायाधीश को दोनों पार्टियों से चर्चा करके तय करना चाहिए। इस प्रकार करने से कोई भी व्यक्ति बेबुनियाद आरोप करने से पहले सोचेगा।

अब हमें केवल “गुस्सा थूक दो और भूल जाओ” वाले मानहानि मुकदमे नहीं चाहिए। हमें ऐसे मुकदमे चाहिए जिनसे आरोपियों को सीख मिले। हमारे देश में AK47 जैसे लोग बहुत हैं!!!

Note:
1. Text in Blue points to additional data on the topic.
2. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

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