उच्चतम न्यायालय ने ईडी को घर खरीदारों के पैसे की हेराफेरी और आम्रपाली मामले में फेमा के उल्लंघन के लिए जेपी मॉर्गन की व्यापारिक सम्पत्ति जब्त करने का आदेश दिया

भारत की शीर्ष अदालत का आदेश है कि अमेरिका स्थित कंपनी जेपी मॉर्गन ने घर खरीदारों के साथ पैसों की हेराफेरी की और उसकी संपत्ति कुर्क करने का भी आदेश दिया

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अंतरराष्ट्रीय परामर्श (कंसल्टिंग) एजेंसी जेपी मॉर्गन को रंगे हाथों पकड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को निर्देश दिया कि वह जेपी मॉर्गन की भारतीय संपत्तियों को कुर्क करे, जेपी मॉर्गन कम्पनी, आम्रपाली समूह (अब मृत) के साथ लेन-देन में लगी हुई थी और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) मानदंडों के उल्लंघन में घर खरीदारों के पैसे की हेराफेरी में भी मददगार थी। ईडी ने कहा कि इसमें प्रथम दृष्टया अमेरिका के जेपी मॉर्गन द्वारा फेमा मानदंडों का उल्लंघन पाया गया और इस संबंध में एक शिकायत दर्ज की गई थी।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति यूयू ललित भी शामिल थे, ने ईडी को दोषपूर्ण समूह के सीएमडी, अनिल कुमार शर्मा और दो अन्य निदेशकों, शिव प्रिया और अजय कुमार को हिरासत में लेने की अनुमति दी थी, कथित धन शोधन अपराधों के सम्बंध में पूछताछ के लिए जो शीर्ष अदालत के सलाखों के पीछे हैं। न्यायाधीशों ने यह भी आदेश दिया कि ईडी उन्हें तुरंत हिरासत में ले सकती है और एक बार उनकी पूछताछ समाप्त हो जाने के बाद, उन्हें वापस जेल भेजा जा सकता है।

जेपी मॉर्गन और आम्रपाली समूह के बीच हिस्सेदारी समझौते के अनुसार, यूएस-आधारित फर्म ने 20 अक्टूबर, 2010 को 85 करोड़ रुपये का निवेश किया था, जिसमें जेपी मॉर्गन के 75 प्रतिशत के अनुपात में मुनाफे पर अधिमान्य दावा किया गया था और 25 प्रतिशत आम्रपाली होम्स प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड और अल्ट्रा होम के संचालकों के लिए। बाद में, जेपी मॉर्गन से दो कंपनियों – मेसर्स नीलकंठ और मेसर्स रुद्राक्ष – के एक चपरासी और आम्रपाली के वैधानिक संचालक अनिल मित्तल के ऑफिस बॉय के स्वामित्व वाले शेयरों की संख्या को 140 करोड़ रुपये में वापस खरीद लिया गया।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और यूयू ललित की खंडपीठ ने ईडी के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह, जो जेपी मॉर्गन के खिलाफ जांच की निगरानी कर रहे थे, को बताया कि एमएनसी ने पैसे वापस अमेरिका भेज दिए।

पीठ ने कहा, “उनके (जेपी मॉर्गन) पास भारत में बहुत सारी संपत्तियां हैं। हम चाहते हैं कि आप उनके कार्यालय या कॉरपोरेट संपत्तियों को एक राशि के रूप में जब्त करें। तब वे हमारे पास भागते आएंगे और हम इसे देखेंगे।”
राजेश्वर सिंह ( 2 जी और एयरसेल-मैक्सिस मामलों में ईडी के मुख्य जांच अधिकारी) ने कहा कि कम्पनी के खिलाफ न्यायादेश प्रक्रिया कानून के अनुसार शुरू हो गई थी। पिछले साल 2 दिसंबर को ईडी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसके पास मल्टी-नेशनल कम्पनी द्वारा फेमा के उल्लंघन के सबूत मिले हैं और आम्रपाली समूह के साथ समझौते के बारे में कंपनी के देश के प्रमुख (कंट्री हेड) के बयान दर्ज किए।

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हालांकि यह कहा गया था कि जांच चल रही है, प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों का भी उल्लंघन किया गया था और उचित कार्रवाई की जा रही थी। शीर्ष अदालत ने तब ईडी को निर्देश दिया था कि जांच तीन महीने की अवधि के भीतर निष्पक्ष और उचित तरीके से की जानी चाहिए।

पिछले साल 23 जुलाई को, सर्वोच्च न्यायालय ने घर खरीदारों के विश्वास को तोड़ने के लिए अनियमित बिल्डरों पर सख्त कार्यवाही की, रियल एस्टेट कानून रेरा (RERA) के तहत आम्रपाली ग्रुप के पंजीकरण को रद्द करने का आदेश दिया और और उसे उसके एनसीआर के प्रमुख स्थानों से भूमि-पट्‍टा रद्द कर बाहर निकाला। न्यायालय ने ईडी द्वारा धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के आरोपों की जांच और जेपी मॉर्गन द्वारा फेमा उल्लंघन के आरोप की जांच करने का आदेश दिया था।

शीर्ष न्यायालय ने कहा “घर खरीदारों का पैसा दूसरी जगह लगा (डायवर्ट कर) दिया गया है। संचालकों ने फर्जी (डमी) कंपनियों के निर्माण, प्रोफेशनल फीस वसूलने, फर्जी बिल बनाने, कम मूल्यांकन राशि पर फ्लैट बेचने, अत्यधिक दलाली के भुगतान आदि से पैसा डाइवर्ट किया। उन्होंने जेपी मॉर्गन से फेमा और एफडीआई मानदंडों का उल्लंघन करते हुए निवेश प्राप्त किया,”। इसने कहा कि समूह के इक्विटी शेयरों को जेपी मॉर्गन की आवश्यकताओं के अनुरूप अत्यधिक कीमत पर खरीदा गया था और आम्रपाली जोडिएक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने घर खरीदारों के पैसे को डायवर्ट किया था।

शीर्ष अदालत ने न्यायिक लेखापरीक्षक की रिपोर्टों को स्वीकार करते हुए कहा, “जेपी मॉर्गन को भुगतान करने के लिए शेयरों को अधिक मूल्यांकन किया गया था। इसे घर खरीदारों के पैसे को हेराफेरी कर विदेशों में भेजने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया गया था।” यह भी उल्लेख किया गया था कि जेपी मॉर्गन से आम्रपाली जोडिएक के शेयरों को एक चपरासी और एक कार्यालय के कर्मचारी के स्वामित्व वाली शेल कंपनियों, क्रमशः मैसर्स नीलकंठ और मैसर्स रुद्राक्ष द्वारा 140 करोड़ रुपये में खरीदा गया था।

न्यायालय ने कहा “जेपी मॉर्गन के साथ आम्रपाली जोडिएक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड का लेनदेन स्पष्ट रूप से कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों से बचने के लिए हुआ था,”। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह स्पष्ट था कि मैसर्स रुद्राक्ष मनी लॉन्ड्रिंग के लिए बनाया गया था क्योंकि इसके दो निदेशकों और शेयरधारकों की कोई आय नहीं थी।

[पीटीआई इनपुट के साथ]

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