भारत के इतिहास में जुलाई 19, 2018 को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक स्वर्णिम दिन माना जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शुरू करके सत्ता में आई थी। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) ने जुलाई 19 को पूर्व दागी वित्त मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ एयरसेल मैक्सिस घोटाले में आरोप-पत्र दाखिल किया है। सीबीआई इस मामले में काफी वर्षों से जाँच कर रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि इस प्रधान संस्था को आरोप-पत्र दाखिल करने में इतना समय क्यों लगा? एयरसेल मैक्सिस घोटाला जाँच के नायक और खलनायक कौन है? भारतीय नागरिकों को सत्य से अवगत कराना चाहिए।
खलनायक
राकेश अस्थाना, सीबीआई विशेष निदेशक
अप्रैल 2016 को राकेश अस्थाना को सीबीआई का अपर निदेशक बनाया गया। तब से लेकर अब तक, उन्होनें अपर निदेशक, अनिल सिंहा के दिसम्बर 2, 2016 को सीबीआई से सेवा निवृत्त होने के बाद कुछ समय तक अंतरिम निदेशक और फिर विशेष निदेशक के पद पर कार्यरत रहे हैं। उनकी नियुक्ति के बाद से ही अस्थाना ने सारे उच्च स्तरीय मामलों की जांच की है जिसमें पी चिदंबरम और विजय माल्या के मामले भी शामिल हैं।
अक्टूबर 2017 में, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) की अध्यक्षता की चयन बैठक में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना की सीबीआई विशेष निदेशक के रूप में नियुक्ति का विरोध इस आधार पर किया था कि सीबीआई राकेश अस्थाना द्वारा संदीसर समूह और उसकी सहयोगी संस्था गुजरात के स्टर्लिंग बायोटेक से 3.8 करोड़ रुपये लेने के मामले की जांच कर रही थी [1]। हालांकि, सीवीसी ने सीबीआई निदेशक की सिफारिशों पर विचार नहीं किया और अस्थाना के पदोन्नति का आदेश 24 घंटे के भीतर जारी किया।
अस्थाना ने दो वर्षों तक पी चिदंबरम पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की, जब से उन्हें सीबीआई अपर निदेशक नियुक्त किया गया? अगर हम इस पहेली के विभिन्न टुकडों को जोड़ें, तो उत्तर अपने आप स्पष्ट हो जाएगा। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जब पी चिदंबरम के दिल्ली वाले घर की तलाशी ली, सीबीआई के उच्च स्तरीय बरामद रहस्य दस्तावेज, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय को एक बंद लिफाफे में पेश करना था, प्राप्त हुआ। सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच की पूर्ति में हो रहे विलंब एवँ चार्जशीट को समय पर ना दाखिल करने पर कठोर शब्दों का प्रयोग किया। अस्थाना ने सर्वोच्च न्यायालय की सारी बातों को अनसुना कर दिया।
अप्रैल 2018 में सीबीआई ने अस्थाना को, अगस्ता वेस्टलैंड एवँ बोफोर्स मामलों को छोड़कर, सारे उच्च स्तरीय मामलों से हटा दिया। दिशाहीन जाँच को नए अपर निदेशक एके शर्मा के नियुक्ति के बाद तेजी प्राप्त हुई। और पाँच महीनों के भीतर, जाँच की पूर्ति पर आरोप-पत्र दाखिल किया गया।
इससे कई गंभीर प्रश्न पैदा होते हैं – राकेश अस्थाना दो वर्षों तक पी चिदंबरम मामले में मौन क्यों रहे? उन्होनें प्रधानमंत्री कार्यालय एवँ सर्वोच्च न्यायालय को जाँच की प्रगति के बारे में अंधेरे में क्यों रखा? वह दोषी चिदंबरम का बचाव क्यों कर रहे थे और क्या उच्च नेतृत्व में से किसी ने ऐसा करने का आदेश दिया था? और अंततः कुछ नौकरशाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस विषय पर गलत जानकारी देकर गुमराह क्यों कर रहे हैं?
हमे आशंका है कि यह सब इसलिए है क्यूंकि अस्थाना बार्डर सिक्यूरिटी फोर्स के अवकाश प्राप्त जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से मीडिया में, एक खास वेबसाइट समेत, सीबीआई एवँ ईडी अधिकारियों के खिलाफ गलत कहानियां प्रकाशित करवा रहे हैं।
नायक
आलोक वर्मा, सीबीआई निदेशक
सीबीआई के इतिहास में ऐसा कभी नहीं देखा गया जब एक निदेशक को स्वयं के संस्था के भीतर कुछ लोगों से लड़ना पड़ा ताकि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाई जा सके। उन्होनें ना सिर्फ दागी राकेश अस्थाना के पदोन्नति को लिखित में सीवीसी के समक्ष विरोध करने का असाधारण कदम उठाया बल्कि साथ ही उन्होंने चिदंबरम और उनके पुत्र कार्ति के खिलाफ जाँच को अस्थाना से एके शर्मा के हाथ में सौंपकर आगे बढ़ाया। जब अस्थाना ने सीबीआई में कई अधिकारियों की नियुक्ति में हेरफेर करने की कोशिश की, निदेशक, जो उस समय विदेश में थे, ने सीवीसी चयन समिति को जुलाई 2018 में बताया कि अस्थाना को सीबीआई निदेशक का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार नहीं है क्योंकि सीबीआई उनके खिलाफ जांच कर रही है।
एके शर्मा, अपर निदेशक, सीबीआई
गुजरात कैडर के 1987 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, जो पहले सीबीआई में संयुक्त निदेशक के रूप में काम कर रहे थे और पदोन्नति पर अतिरिक्त निदेशक के रूप में प्रतिधारित किए गए थे। अप्रैल 2018 में, निदेशक ने उनको एयरसेल-मैक्सिस मामले की जांच सौंपी और कह सकते हैं कि चमत्कारिक गति से जांच पूरी हो चुकी है और 19 जुलाई, 2018 को पिता-पुत्र युगल के खिलाफ आरोप-पत्र दर्ज किया गया।
यहाँ बताना मुद्दे से बाहर नहीं होगा कि चिदंबरम के खिलाफ जाँच को आवेग तब प्राप्त हुआ जब ईडी एवँ आयकर विभाग ने मिलकर दिसम्बर 2015 को चेन्नई में छापा मारा और ईडी संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह ने अक्टूबर 2017 में कार्ति चिदंबरम की संपत्ति को जब्त कर लिया जिसे पीएमएलए के अंतर्गत अधिनिर्णयन प्राधिकारी ने मान्यता दी है। ईडी ने जून 13 को कार्ति के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया और अपेक्षा है कि जल्द ही चिदंबरम के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया जाएगा। यहाँ बता दें कि साहसिक अधिकारी राजेश्वर सिंह की अपर निदेशक के पद पर पदोन्नति 10 महीनों से रोकी गयी है और लुटियंस गुट उन्हें लगातार सता रही है।
ईडी प्रमुख करनाल सिंह के नेतृत्व ने संगठन को सक्रिय किया है। प्रवर्तन निदेशालय को एक शक्तिशाली इकाई बनाने का श्रेय ईमानदार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी करनाल सिंह को दिया जाना चाहिए।
संदर्भ:
[1] CVC meeting minutes expose how CVC selected Asthana over the CBI Director’s objections – Nov 25, 2017, PGurus.com
- मुस्लिम, ईसाई और जैन नेताओं ने समलैंगिक विवाह याचिकाओं का विरोध करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति को पत्र लिखा - March 31, 2023
- 26/11 मुंबई आतंकी हमले का आरोपी तहव्वुर राणा पूर्व परीक्षण मुलाकात के लिए अमेरिकी न्यायालय पहुंचा। - March 30, 2023
- ईडी ने अवैध ऑनलाइन सट्टेबाजी में शामिल फिनटेक पर मारा छापा; 3 करोड़ रुपये से अधिक बैंक जमा फ्रीज! - March 29, 2023