राफेल जेट सौदे की न्यायिक जांच करेगा फ्रांस
राफेल विमान खरीद विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। 2008 के बाद से फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट से राफेल जेट खरीदने के भारत के फैसले को एक के बाद एक विवादों का सामना करना पड़ रहा है। शुक्रवार 2 जुलाई, 2021 को, फ्रांसीसी मीडिया मीडियापार्ट ने बताया कि फ्रांस में एक न्यायाधीश 2015 में भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल लड़ाकू जेट सौदे में कथित भ्रष्टाचार की जांच करेंगे। जांच में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रेंकोइस ओलांद और डसॉल्ट के भारतीय साझेदार अनिल अंबानी के विवादास्पद संयुक्त उद्यम की भूमिका की भी जांच की जा सकती है। दोनों देशों ने कांग्रेस शासन के दौरान शुरू किए गए 126 जेट विमानों के निरस्त सौदे को रद्द करके भारतीय वायुसेना के लिए 36 राफेल विमानों का 7.8 बिलियन यूरो (58,000 करोड़ रुपये) से अधिक का दोनों सरकारों के बीच सौदा किया था।[1]
हालांकि राफेल से 36 जेट की खरीद भारत और फ्रांस के बीच एक सीधा सौदा है, ऑफसेट अनुबंध में डसॉल्ट के साथ एक संयुक्त उद्यम भागीदार के रूप में अनिल अंबानी की भूमिका को भी विवादास्पद रूप में देखा गया था। फ्रेंच मीडिया के अनुसार, जांच में यह भी शामिल है कि कैसे संयुक्त उद्यम में, जहां डसॉल्ट के पास 150 मिलियन यूरो का निवेश करने के वाबजूद केवल 49% शेयर हैं और अनिल अंबानी की फर्म के पास सिर्फ 10 मिलियन यूरो का निवेश करने के बावजूद 51% शेयर हैं! यह 2008 से शुरू हुए सौदे को हासिल करने में अनिल अंबानी की भूमिका को दर्शाता है।[2]
जब सौदे को अंतिम रूप दिया गया और मुकेश अंबानी ने 2012 में अपनी असेंबलिंग कंपनी खोली, तो भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में राफेल के चयन की धोखाधड़ी के बारे में शिकायत दर्ज कराई।
फ्रांसीसी मीडिया का कहना है कि भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रेंकोइस ओलांद द्वारा 36 जेट के प्रत्यक्ष-खरीद-सौदे की घोषणा से 15 दिन पहले डसॉल्ट और अनिल अंबानी की कंपनी ने अनुबंध किया था।
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फ्रांसीसी वेबसाइट ने शुक्रवार को कहा कि एक स्वतंत्र फ्रांसीसी मजिस्ट्रेट समझौते में भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोपों की जांच करेंगे। मीडियापार्ट ने कहा कि मीडियापार्ट द्वारा अप्रैल में सौदे में कथित गड़बड़ी की ताजा रिपोर्ट छापे जाने के बाद फ्रांस के राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालय ने न्यायिक जांच का आदेश दिया था।
राफेल सौदे में क्या हैं विवाद?
सबसे पहले, 2008 में, भारत ने निविदाएं (टेंडर) आमंत्रित करने के बाद 126 राफेल जेट खरीदने का फैसला किया। मुख्य दावेदार यूरोफाइटर अनुबंध हार गया। उस समय राफेल का इस्तेमाल केवल चार देशों – लीबिया, कतर, सऊदी अरब और फ्रांस में किया जाता था। बहुराष्ट्रीय यूरोफाइटर का इस्तेमाल कई देशों में किया जा रहा था। ऐतिहासिक रूप से, भारत फ्रांस से जुड़ा हुआ था क्योंकि 90 के दशक में सोवियत संघ के विखंडन के बाद भारत को जेट की आपूर्ति करने वाला यह अकेला देश था।
शक की सुई घूमी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार जो पहले से ही बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में घिरी थी, आखिर उसके द्वारा 126 जेट की खरीद क्यों की गई! उस समय राफेल का भारतीय एजेंट मुकेश अंबानी का रिलायंस था और सौदे के अनुसार केवल 18 विमान फ्रांस द्वारा दिये जायेंगे और शेष 106 विमान भारत में रिलायंस और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा बनाई गई कंपनी द्वारा संकलित किये जायेंगे। उस समय, दिवालिया डसॉल्ट प्रति वर्ष केवल 11 जेट का उत्पादन कर रहा था और यह आपूर्ति पहले से ही कतर, फ्रांस और लीबिया के लिए प्रतिबद्ध थी। कई सवाल उठे कि कैसे डसॉल्ट 18 जेट का निर्माण कर सकता है और 106 जेट पार्ट के लिए पुर्जे भारत को दे पायेगा।
जब सौदे को अंतिम रूप दिया गया और मुकेश अंबानी ने 2012 में अपनी असेंबलिंग कंपनी खोली, तो भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में राफेल के चयन की धोखाधड़ी के बारे में शिकायत दर्ज कराई। तब भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने भी चयन प्रक्रिया और अन्य देशों द्वारा सामना की गयीं राफेल की तकनीकी विफलताओं के बारे में शिकायत दर्ज की थी। इन शिकायतों ने घोटाले से प्रभावित कांग्रेस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मजबूर कर दिया। हाल ही में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा था कि इन शिकायतों ने 126 जेट खरीदने के कांग्रेस शासन के राफेल सौदे को विफल कर दिया था।[3]
पीगुरूज ने राफेल के विवादों और तथ्यों पर “अनटोल्ड स्टोरीज़ ऑन द राफेल डील” शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी।[4]
2013 के अंत तक, एक पारिवारिक समझौते के अनुसार, मुकेश अंबानी ने रक्षा क्षेत्र में अपना समूह व्यवसाय अपने दिवालिया भाई अनिल अंबानी को सौंप दिया। 2014 के मध्य में जब नई भाजपा सरकार आई, तो फ्रांसीसी भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार की पैरवी कर रहे थे। फ्रांस परमाणु और लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में भारत का रणनीतिक साझेदार है। दिवालिया अनिल अंबानी नए अवसरों की तलाश में थे। इसके बाद सरकार से सरकार के बीच सौदे के रूप में 36 जेट की सीधी आपूर्ति द्वारा फिर से काम शुरू करके राफेल सौदे को अंतिम रूप दिया गया। इस सौदे में एकमात्र अनैतिक हिस्सा यह है कि भारत सरकार ने अनिल अंबानी को ऑफसेट अनुबंध की अनुमति दी, जो पहले से ही दिवालिया और विवादों का सामना कर रहे एक असफल व्यवसायी थे और उनकी कंपनियां कांग्रेस के शासन के दौरान सभी घोटालों में शामिल थीं। मोदी सरकार ने अनिल अंबानी को इस सौदे में दखल देने की अनुमति क्यों दी? मोदी सरकार की दलील थी कि अनिल अंबानी डसॉल्ट की पसंद थे। अगर यह डसॉल्ट की पसंद होती, तो भी भारत सरकार फ्रांस से कह सकती थी कि अगर वे सौदा करना चाहते हैं, तो अनिल अंबानी जैसे विवादास्पद लोगों से बचें। इस पर बात क्यों नहीं की गई? इसलिए मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार को आज इस सौदे को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। यह सरल है – यदि आपकी मित्रता बुरे मित्रों से है, तो बुरे मित्र की गतिविधियाँ आपको भी मुसीबत में डालेंगी।
अंतिम लेकिन कम नहीं: क्या डसॉल्ट, जिसे 36 जेट की आपूर्ति के लिए भारत से लगभग सारा पैसा मिल चुका है, ने लगभग 20,000 करोड़ रुपये (सौदे मूल्य का 30%) परियोजनाओं के ऑफसेट अनुबंधों की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा किया है? भारत सरकार को जवाब देना है। सीएजी की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत से लगभग पूरा पैसा मिलने के बाद भी, डसॉल्ट ने अभी तक प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है।[5]
संदर्भ:
[1] ‘Rafale Papers’: France opens judicial probe into fighter deal with India, new revelations emerge – Jul 02, 2021, Mediapart
[2] Rafale deal: Why did Dassault choose Reliance over HAL? The CEO responds – Oct 12, 2018, Business Standard
[3] PM spreading false information: A.K. Antony – Mar 05, 2019, The Hindu
[4] राफेल सौदे की अनकही कहानियां और आरोपों की एक तथ्य जांच – Sep 25, 2018, hindi.pgurus.com
[5] Rafale deal: Dassault Aviation yet to meet offset commitments of contract, CAG tells Parliament – Sep 24, 2020, Scroll
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