कितना व्यंगपूर्ण लगता है कि पूर्व दागी गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जेल में बंद शहरी नक्सलियों की दुर्दशा पर सहानुभूति ट्वीट किया। शुक्रवार को चिदंबरम ने जेल में बंद नक्सलियों सुधा भारद्वाज, वरवारा राव, शोमा सेन आदि की पुरानी बीमारियों के बारे में ट्वीट किया। गृह मंत्री के रूप में कुटिल चिदंबरम ने कोबाद गंधी सहित कई नक्सलियों को जेल में डाल दिया था, जो अभी भी एक अन्य नक्सली साईंबाबा की तरह जेल में हैं, जिन्हें भी यूपीए के कार्यकाल में गिरफ्तार किया गया था।
केवल एक बदमाश इस तरह से ट्वीट कर सकता है – 1000 चूहे खाकर बिल्ली के हज जाने के समान है:
A legal system that keeps them in jail indefinitely on questionable charges of aiding the Maoists is a dysfunctional system
A legal system that denies them bail, having regard to their age and ailments, is turning the law on its head. Who remembers Justice Krishna Iyer’s dictum?— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) July 24, 2020
गृह मंत्री के रूप में, चिदंबरम यहाँ तक कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों में माओवादियों पर हमला करने के लिए सेना और उसके हेलीकाप्टर विंग का उपयोग करना चाहते थे। उनकी मांग को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी और सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने यह कहते हुए नकार दिया था कि सेना का इस्तेमाल अपने ही लोगों के खिलाफ नहीं किया जा सकता। वही शख्स अब जेल में बंद नक्सलियों की दुर्दशा पर रोते हुए ट्वीट कर रहा है।
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चिदंबरम न्यायालयों द्वारा सहानुभूति न दिखाने के खिलाफ भी तर्क देते हैं। यही बदमाश आदमी सोनिया गांधी के नेतृत्व में दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल के नेतृत्व वाली कांग्रेस मंडली का हिस्सा थे, जिन लोगों ने मिलकर एक नकली ‘हिंदू आतंकवाद सिद्धांत‘ को गढ़ कर कई सारे लोगों को जेल में डाल दिया था। सेना अधिकारी कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा, एक अन्य सेवानिवृत्त सेना अधिकारी रमेश उपाध्याय को चिदंबरम की अगुवाई में इस भ्रष्ट गिरोह द्वारा छह-सात साल से अधिक समय तक यातनाएं दी गईं और जेल में डाल दिया गया। उस समय मानवता जैसा शब्द उनके शब्दकोश में नहीं था।
चिदंबरम ने अपने कट्टर विरोधी और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी को इस्लामिक आतंक से निपटने के तरीके के बारे में डीएनए अखबार में एक लेख लिखने के लिए जेल भेजने की हर संभव कोशिश की। उस समय स्वामी अदालतों में चिदंबरम के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लड़ रहे थे। यहाँ तक कि चिदंबरम ने सिंगापुर में सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ मामला दर्ज करने की भी कोशिश की और यहां तक कि सिंगापुर न्यायालयों से नोटिस जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय का इस्तेमाल किया। विचार यह था कि स्वामी को गिरफ्तार किया जाए और उन्हें अदालत में पेश न होने पर सिंगापुर की अदालतों में बंदी बना दिया जाए। लेकिन स्वामी कानून जानते थे और हारते हारते जीत गए, जब चिदंबरम 106 दिनों के लिए जेल में रहे और अब कई अदालतों में बेटे और पत्नी के साथ मुकदमे का सामना कर रहे हैं।
चिदंबरम को मानव अधिकारों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार में उनकी भूमिका कुख्यात है। वह आंतरिक सुरक्षा के प्रभारी राज्य मंत्री थे, जब 42 मुस्लिम युवाओं को गोलियों से भून दिया गया और शवों को नदी में फेंक दिया गया था। चिदंबरम मामलों में लोगों को सबक सिखाने में इतने कुटिल थे कि उनके और उनके बेटे के खिलाफ ट्वीट करने वाले लोगों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नियंत्रित पुडुचेरी पुलिस द्वारा कार्यवाही करवाई गयी। अब वही दागी व्यक्ति जेल में बंद नक्सलियों की दुर्दशा पर रो रहा है। इस बात पर तो हँसी भी हजार बार हँसेगी!
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