मोदी का कृत-निश्चय और निष्पादन की निपुणता आज पूरे भारत के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में सबसे बेजोड़ है।
भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि ने काफी ध्यान आकर्षित किया है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था चीन को मुक़ाबला देने के कगार पर है। 2018 में 7.2% से अधिक की सकल घरेलू उत्पाद देखने की उम्मीद है। दुनिया भर में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की निगरानी करने वाली कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भारत को लेकर अपनी अनुमानों में अत्यंत सकारात्मक हैं ।
यूके स्थित आर्थिक और व्यापार अनुसंधान केंद्र (सीईबीआर) द्वारा प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि भारत की लगातार सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2018 में इसे प्रतिस्पर्धा में प्रमुख स्थान पर ले आएगी। इस अनुमान के तहत भारत दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के कुलीन समूह में शामिल होगा । अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमान के अनुसार इस लक्ष्य तक पहुँचने में अभी एक वर्ष और लगेगा और 2019 में भारत शीर्ष की पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होगा ।
वैश्विक महत्व में भारत का उदय आसान नहीं रहा है । पिछले चार वर्षों में, प्रधान मंत्री मोदी की सरकार ने सैकड़ों परियोजनाओं में नीतिगत सुधारों और सार्वजनिक निवेश में अविश्वसनीय प्रयासों के द्वारा यह मुकाम हासिल किया है। सुधारों और निवेशों के इस स्मोर्गसबॉर्ड ने कृषि, विनिर्माण और सेवाओं के प्रमुख क्षेत्रों पर काफी गहरा प्रभाव डाला है। इन नीतियों की पहल हो चुकी है – और अब भी इनमे से कई योजनाएं अभी ऊष्मायन अवधि में हैं जो विस्तृत समय पर परिणाम देना जारी रखेंगी ।
पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने रिकॉर्ड पर यह बात कही है की सरकार द्वारा कल्याणकारी कार्यों के लिए खर्च किये हर रुपये में से केवल 15% ही वास्तव में लाभार्थी तक पहुंच पाए हैं ।
एक विषयनिष्ठ विश्लेषण के अनुसार अर्थव्यवस्था के इस उद्भव के तीन कारण हैं। सर्वप्रथम, प्रधान मंत्री मोदी के अपने विचारधारात्मक वित्ति का त्याग कर आर्थिक प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया है जो व्यावहारिक और अधिक महत्वपूर्ण रूप से देश के लिए उपयुक्त हैं। यह वास्तव में नवीनतम है क्योंकि कई दशकों से भारत को दुर्भाग्यपूर्ण विचारधारात्मक प्रतिमानों से परेशान किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप केवल गिरता विकास दर और स्थानिक गरीबी देखने को मिली थी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इन आर्थिक सुधारों और नीतियों को निष्पादन में एक अद्वितीय उत्कृष्टता के साक्षी हैं। मोदी के व्यक्तिगत नेतृत्व गुण – ज्यादातर गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अधिग्रहित हुए जहां उन्हें वास्तव में आग से बपतिस्मा दिया गया – इस अनुभव ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्मार्ट पूर्वी परिधीय एक्सप्रेसवे (ईपीई) का हालिया उद्घाटन (मई 2018) इस निपुणता का एक उदाहरण है। दिल्ली में 1,1,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित, यह 135 किलोमीटर लंबी सौर ऊर्जा से प्रज्वलित एक्सप्रेसवे का कार्य मात्र १८ महीनोंमें संपूर्ण हुआ ।
तीसरा, और सबसे विशेष रूप से, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि कम से कम राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार, चोरी या धोखाधड़ी नहीं हो । आज हमारी तेज़ी से बढ़ रही आर्थिक परिवर्तन का मुख्य रहस्य यही है । यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि सरकारी सेवाओं को वितरित करने, खासकर गरीबों के कल्याणकारी कार्यों में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड, निराशाजनक रहा है। पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने रिकॉर्ड पर यह बात कही है की सरकार द्वारा कल्याणकारी कार्यों के लिए खर्च किये हर रुपये में से केवल 15% ही वास्तव में लाभार्थी तक पहुंच पाए हैं ।
लेकिन मोदी ने लाभार्थी के बैंक खाते के सीधे हस्तांतरण से इस हानि को रोक दिया। सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, 3,65,996 करोड़ रुपये के कल्याण लाभ सीधे पिछले चार वर्षों (www.narendamodi.in) में लाभार्थियों के खातों में स्थानांतरित कर दिए गए थे। यह मोदी का उत्कृष्ट उदाहरण है कि उचित सेवा वितरण वाहन चुनकर सही वक़्त पर क्रियान्वित किया जाए।
मीडिया में विकृत और अधिकतर नकारात्मक रिपोर्टिंग के बावजूद, मोदी के विकास एजेंडे को समाज के बड़े वर्गों का समर्थन प्राप्त है।
मोदी के विकास के प्रतिमान और शासन रणनीति इन तीन स्तंभों के इर्द-गिर्द बनाई गई है। इसलिए उनकी कुछ योजनाएं, जैसे जीएसटी, भारतीय दिवालियापन संहिता (आईबीसी), सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण, राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे में अभूतपूर्व निवेश, 100% विद्युतीकरण, लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे कल्याण लाभ का हस्तांतरण, उनके लिए आसान सफलताएं हैं ।
और भी आश्चर्यजनक बात यह है कि सरकार ने मौजूदा कानूनों, नागरिक और प्रशासनिक मशीनरी, कर्मचारियों और अधिकारियों का उपयोग बड़ी संख्या में अपनी परियोजनाओं को निष्पादित करने के लिए किया है। एक ही मशीनरी ने कई मामलों में लागत के बिना कार्यक्रम को निर्धारित समय से पहले प्राप्त किया है।
पिछली सरकारों की तरह, मोदी के पास भी छोटे पैमाने पर सुधारों का चयन कर, कम जोखिम वाली राह चुनने का विकल्प था जो इस देश की नौका को क्षिथिल रखता। लेकिन इन परिवर्तनों से केवल औसत परिणाम या लाभ मिलते जो भारत को एक हानिकारक विकास चक्र के लिए बंधक बनाये रखते और समाज के विशाल वर्गों को एक सभ्य आजीविका से वंचित रखते। लेकिन मोदी ने स्पष्ट रूप से इसके बजाय विभिन्न क्षेत्रों में जितना संभव हो सके बड़े परिणामों को प्राप्त करने के लिए, एक उच्च जोखिम-युक्त विकल्प चुनने का साहसपूर्वक कदम उठाया है। अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा भी इस दांव को आशावादी अनुमानों से देखा गया है।
कई लोग तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किए गए 1991 के सुधारों की तुलना मोदी के परिवर्तन अभ्यास से करते हैं । तब राव के सुधार भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे लेकिन बचाव मिशन की प्रकृति के अधीन थे। वे विदेशी मुद्रा भंडार के न्यूनतम स्तरों को कम करने के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को अपनाने और आकर्षित करने पर केंद्रित थे। तुलनात्मक रूप से वे एक छोटे पैमाने पर निश्चित रूप से वृद्धिशील थे।
जैसा कि पहले से ही बताया गया है, मोदी के सुधार परिवर्तनकारी हैं। इसके अलावा उनके प्रयासों को एक मास्टर प्लान के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए जिसमें भारत को आंतरिक और बाहरी खतरों से सुरक्षित करना और साथ ही भारत के व्यापार और वाणिज्य को ठोस बनाने के लिए दुनिया भर के विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाना शामिल है। सच्चाई यह है कि राव और मोदी दोनों देश के मूल आर्थिक नीतियों का रूपांतरण करने में सफल रहे हैं।
मीडिया में दीन, विकृत और अधिकतर नकारात्मक रिपोर्टिंग के बावजूद, मोदी के विकास एजेंडे को समाज के बड़े वर्गों का समर्थन प्राप्त है। उनके लिए, आर्थिक पुनरुत्थान कम से कम छोटे स्तर पर परीक्षण में सफल रहा है। उदाहरण के लिए, गुजरात और तमिलनाडु जैसे उच्च विकास वाले राज्यों में सड़कों पर या रेलवे प्लेटफार्मों पर भिक्षुओं की उल्लेखनीय अनुपस्थिति है। गया वो वक़्त जब आम लोग बिना जूतों के और फाटे-पुराने कपड़ों में होते थे। तथाकथित ‘ट्रिकल डाउन’ प्रभाव जो कि कई दशकों तक सिर्फ प्रस्ताविक था, अब गरीब जनता के विशाल वर्गों को लाभान्वित कर रहा है। बेशक, यह इस तथ्य को झुठलाता नहीं है कि आज भी कई राज्यों में गरीबी समाज के विशाल वर्गों में फैली हुई है।
उन्होंने भारत के राजनीतिक वर्ग को एक नया मंत्र दिया है- प्रदर्शन करो या नष्ट हो जाओ।
2018 के आर्थिक सर्वेक्षण ने अर्थव्यवस्था की ताकत पर प्रकाश डाला है। लेकिन इसने अर्थव्यवस्था के संभावित जोखिम और खतरों की भी चेतावनी दी है, आंतरिक और बाहरी संकटों को ध्यान में रखने की जरूरत है। हालांकि, अच्छी खबर यह है कि महत्वपूर्ण आंकड़े और प्रासंगिक जानकारी अर्थव्यवस्था में निरंतर मजबूत विकास इंगित करते हैं। मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि एक अनुकूल नीति पर्यावरण, बुनियादी ढांचे निर्माण और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक निवेश के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करना है जो अर्थव्यवस्था में अपूर्ण वृद्धि ला सके ।
देश भर में शांतिपूर्ण रूप से हो रहे परिवर्तन – ज्यादातर अर्थव्यवस्था के निम्नतम स्तर पर – भारत के रूह पर – आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से एक बड़ा प्रभाव पैदा कर रहे हैं । लोगों के उत्साह और अपेक्षआएं- विशेष रूप से 35 से कम जनसांख्यिकीय सेगमेंट जो 60% से अधिक भारत के प्रतिनिधि हैं -इससे खासकर लाभान्वित हो रही हैं ।
भ्रष्टाचार मुक्त और सरकारी सेवाओं की त्वरित डिलीवरी के विवादों – जैसे बिजली, स्वच्छता, सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसी सेवाओं के मामलों का हल हो रहा है। जबकि नागरिक अनुभव सकारात्मक है, यह भारत में राजनीतिक परिस्थिति के तंत्र के लिए शायद एक स्वागतिय परिवर्तन नहीं है ।
मोदी की दृढ़ता एवं निष्पादन की निपुणता आज पूरे भारत के राजनीतिक श्रेणी में बेजोड़ स्तर पर है। उन्होंने भारत के राजनीतिक वर्ग को एक नया मंत्र दिया है- प्रदर्शन करो या नष्ट हो जाओ। उन्होंने प्रदर्शन के लिए इतना उच्च स्तर तय किया है कि वर्तमान राजनीतिक दृश्य में से शायद ही कोई इसे हासिल करने में सक्षम रहे । यह शायद मोदी के राजनीतिक विरोधियों और उनके प्रॉक्सी के बीच उनके प्रति सामूहिक घृणा को स्पष्ट करता है। आने वाले वर्षों में मोदी द्वारा लाये गए बदलावों का प्रभाव प्रतिबिंबित रहेगा।
. . . आगे भी जारी रहेगा
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