कुतुब मीनार के मालिकाना हक को लेकर अगली सुनवाई 17 सितंबर को
कुतुब मीनार पर मालिकाना हक को लेकर मंगलवार को दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई। महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने कुतुब मीनार पर अपने मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में याचिका दर्ज की है। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए 17 सितंबर को एक फिर से सुनवाई की तारीख तय की है।
सिंह के वकील एमएल शर्मा ने कहा कि सरकार ने 1947 में बिना हमारी इजाजत के पूरी प्रॉपर्टी अपने कब्जे में ले ली थी। सिंह का यह भी दावा है कि न केवल कुतुब मीनार का, बल्कि आगरा से मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर और गुरुग्राम तक यमुना और गंगा नदी के कुछ इलाके भी उनके हैं। शर्मा ने कोर्ट में दलील दी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में 1960 में याचिका दाखिल की थी, जो अब तक लंबित है।
इसी बीच एक और पक्ष कुतुब मीनार पर दावेदार कर रहा है। उनका कहना है कि यह ऐतिहासिक इमारत जैन मंदिर और हिन्दू मंदिर तोड़कर बनाई गई है। हालांकि कोर्ट ने जवाब में कहा कि इस याचिका पर तब तक सुनवाई नहीं हो सकती जब तक कि जमीन के मालिकाना हक से जुड़े मामले सुलझ नहीं जाते।
पुरातत्व विभाग (एएसआई) ने कुतुब मीनार से छेड़छाड़ करने का विरोध किया है। एएसआई के वकील ने ने 24 मई को साकेत कोर्ट में कहा था कि 1914 से कुतुब मीनार संरक्षित स्मारक है। अब इसका स्वरुप नहीं बदल सकता।
हिंदू पक्ष की वकील अमिता सचदेवा ने कहा कि याचिका दाखिल करने वाले 102 साल बाद संपत्ति पर अधिकार का दावा कर रहे हैं। यह पब्लसिटी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं है। इसे भारी जुर्माने के साथ खारिज किया जाना चाहिए। उन्होंने पुराने मामले का भी जिक्र किया जिसमें महिला ने बहादुर शाह जफर के खानदान से होने का दावा किया था। लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।
विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने दावा किया था कि कुतुब मीनार हिंदू शासक के समय में भगवान विष्णु के मंदिर पर बनाया गया था। बंसल ने दावा किया कि जब मुस्लिम शासक यहां पर आए तो उन्होंने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर इसके कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण कराया। साथ ही इसका नाम बदलकर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कर दिया गया।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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