वामपंथियों द्वारा अचानक एबीपी न्यूज के साथ शांति संधि कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वामपंथियों (लेफ्ट लिबरल- एलएल) , जो कांग्रेस द्वारा प्रायोजित किए गए हैं ने इस चैनल की आलोचना तब कम कर दी जब उन्होने एक सर्वेक्षण में बताया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सत्ता से बाहर हो जाएगी। 12 अगस्त को यह सर्वेक्षण, जो निश्चित रूप से कांग्रेस का समर्थन करता है, के प्रसारित होने से पूर्व ये वामपन्थी और कांग्रेस आनंदा बाजार पत्रिका (एबीपी) पर मोदी का पक्ष लेने का एवं तथाकथित स्वतंत्र पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी और अभिसार शर्मा को बर्खास्त करने का आरोप लगा रहे थे।
उनके समर्थन में सर्वेक्षण के पश्चात, जिससे कांग्रेस के पक्ष में लोगों को ले जाने का प्रयास किया जा रहा है, इन दो पत्रकारों के एलएल समर्थन पर रोक लग गई। तो क्या अब कांग्रेस के पक्ष में सर्वेक्षण नतीजे देने के बाद एबीपी न्यूज एक अच्छी संस्था बन गई है [1]?
हमारा मानना है कि एबीपी ग्रुप को यह अधिकार है कि वे चुने उन्हें किन लोगों को अपने संगठन में रखना है और किन लोगों को नहीं रखना है। उनके प्रसिद्ध पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेई और अभिसार शर्मा दोनों ही जानेमाने भाजपा विरोधी है और कांग्रेस एवँ आम आदमी पार्टी(आप) को उनके समर्थन पर कई बार पर्दाफाश किया गया है, उनके स्वतंत्र होने के दावे के बावजूद। नियोक्ता होने के नाते एबीपी ग्रुप स्वामित्व ही नीति तय करेगा। कंपनी उन्हें आलीशान वेतन दे रही थी। दोनों ही समाचार प्रस्तुत करते समय समाचार को तोड़ मोड़ कर पेश करते थे। बाजपेयी को दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ पूर्वनिर्धारित साक्षात्कार करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया था और उसे उनके उच्च स्तरीय सम्मेलन में भाग लेते हुए भी पाया गया। उसके “क्रांतिकारी” साक्षात्कार उसके पत्रकारी पूर्वाग्रहों का खुलासा करते हैं। केजरीवाल के साथ किया गया पूर्वनिर्धारित साक्षात्कार गूगल के सबसे ज्यादा देखे गए विडियोज में से एक है। कई बार उसने नकली समाचार उत्पन्न किए है [2]।
अभिसार शर्मा एनडीटीव्ही मामलों में अपने पत्नी समेत पकड़ा गया है [3]। वह सोशल मीडिया में भी बहुत गालीगलौज करता है और एक जानामाना मोदी निंदक है।
व्यंग्य की बात यह है कि एबीपी ग्रुप के आनंद बाजार पत्रिका और टेलीग्राफ समाचार पत्र ने फरवरी 2017 [4] में 750 पत्रकारों को बर्खास्त किया था। उस समय सभी एलएल चुप्पी साधे हुए थे। तो फिर पुण्य प्रसून बाजपेयी और अभिसार शर्मा जैसे पत्रकारों के लिए गुस्सा और व्यतिक्रम करने की अवश्यकता क्या है?
कोलकाता में स्थित अविक सरकार के संचालन में एबीपी समूह, जिसे अब उनके भाई अरूप सरकार चलाते हैं, राजनीतिक रुख के हिसाब से अपना रिवायत बदलने के लिए जाने जाते हैं। जब बंगाल में वामपन्थी सत्ता में थे, सरकार राज्य में वामपन्थी के साथ और केंद्र में कांग्रेस का समर्थन कर रहे थे एवँ खास तौर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समर्थन के पात्र थे। एबीपी ग्रुप के अधिकतर पत्रकार वामपन्थी एवँ कांग्रेस समर्थक हैं और ये बात उनके लेखन, संपादन और समाचार को तोड़ने-मरोड़ने के कार्य से समझ में आता है। जब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आने लगी, सरकार बैनर्जी के समर्थक बन गए और फिर अलग हो गये [5]।
संक्षेप में, एबीपी समूह हमेशा राजनीतिक रुक के हिसाब से चलती है। उनका अगस्त में सर्वेक्षण के नतीजों को लेकर आना, जब नवम्बर में चुनाव होने वाले हैं, ना केवल दुष्ट बल्कि अनैतिक भी है। हमने कई बार एबीपी के सर्वेक्षणों को गलत होते हुए देखा है परंतु वे फिर भी पत्रकारिक स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे सर्वेक्षण करते रहते हैं और बीच बीच में झूठी चेतावनी भी जारी करते हैं।
संदर्भ:
[1] ABP News – CVoter Survey predicts BJP Loss in MP, Raj & Chattisgarh – Aug 13, 2018, TheQuint.com
[2] After hobnobbing with Kejriwal, ‘Krantikari’ Punya Prasoon Bajpai now peddles fake narratives – Jul 9,2018, OpIndia.com
[3] CBI probe NDTV’s Income Tax assessment officer, journalist husband’s unaccounted income – Aug 18, 2016, PGurus.com
[4] Telegraph and Ananda Bazar Patrika terminate more than 750 Journalists to cut costs – Feb 3, 2017, PGurus.com
[5] Will Aveek Sarkar’s exit from ABP assuage Mamata Banerjee? Jul 23, 2018, Firstpost.com
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