
मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद से, हम वामपंथी और तथाकथित उदारवादी लोगों द्वारा किए जा रहे फर्जी दुष्प्रचारों को देख रहे हैं। यह देखने के लिए रॉकेट साइंस में डिग्री की आवश्यकता नहीं है कि ये गुप्त रूप से कांग्रेस द्वारा वित्तपोषित किए गए हैं। सबसे पहले “बढ़ती असहिष्णुता” नामक शब्द का सृजन था, जून 2014 तक, व्यापक प्रचार था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री (पीएम) बनने के बाद, भाजपा और संघ परिवार (आरएसएस) की तरफ से देश भर में बढ़ती असहिष्णुता थी। बिना किसी सबूत के इस तरह की बकवास के पीछे बिकाऊ मीडिया हाउस और भाजपा विरोधी पत्रकार थे।
तब ‘बढ़ती असहिष्णुता’ को ‘मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता’ में बदल दिया गया था और सोशल मीडिया पर बेरोजगार पत्रकारों और मीडिया हाउसों में बैठे भ्रष्ट लोगों ने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के खिलाफ हमलों की यादृच्छिक घटनाओं को साझा करना शुरू कर दिया। बिना किसी आधार के इन लोगों ने भाजपा या आरएसएस के सदस्यों पर इन हमलों के पीछे होने का आरोप लगाया। और अंत में इन सभी मामलों में सड़क विवाद या भीड़ द्वारा मवेशी तस्करों को पीटने, किसी चोर को पीटने, आदि की घटनाओं के रूप में पाया गया।
अब मीडिया और सांस्कृतिक दुनिया में वाम-उदारवादी गिरोहों के उपयोगी बेवकूफों का उपयोग करके कांग्रेस द्वारा इस संदिग्ध प्रचार को गति देने के लिए लंदन स्थित बिचौलिया एजेंसी कैंब्रिज एनालिटिका की भूमिका उजागर हुई है।
2014 के अंत तक, एक नया शब्द ‘मॉब लिंचिंग’ (भीड़तंत्र) को भ्रष्ट लोगों के दरबारियों द्वारा गढ़ा गया था, जिसका एजेंडा केवल बीजेपी और मोदी के प्रति नफरत फैलाना था। यह बहुत निश्चित है कि समाज को विभाजित करने के लिए इन सभी दुष्प्रचारों को कांग्रेस से गुप्त धन के साथ वाम-उदारवादी बुद्धिजीवियों या उनके अंधानुकरण करने वालों द्वारा सृजित किया गया था। इन तथाकथित मोब लिंचिंग में से कई साधारण लोगों के पशु तस्करों (जो मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित थे) के खिलाफ झगड़े थे। मवेशी तस्कर हथियारबंद लुटेरे हैं और जब वे पकड़े गए तो लोगों ने भी उन पर कोई दया नहीं दिखाई।
अब मीडिया और सांस्कृतिक दुनिया में वाम-उदारवादी गिरोहों के उपयोगी बेवकूफों का उपयोग करके कांग्रेस द्वारा इस संदिग्ध प्रचार को गति देने के लिए लंदन स्थित बिचौलिया एजेंसी कैंब्रिज एनालिटिका की भूमिका उजागर हुई है। इन उपयोगी बेवकूफों ने अपने पुरस्कार लौटाने का नाटक शुरू किया और बड़े पैमाने पर हस्ताक्षरित पत्र लिखने शुरू कर दिए और मीडिया ने भी इन घटनाओं को बड़े समाचार आइटम के रूप में प्रसारित करना शुरू किया[1]। पुलिस और सुरक्षाबलों के कई सेवानिवृत्त अधिकारी जिनका कांग्रेस शासन के दौरान अच्छा समय बीता था वे भी इन नाटकीय घटनाओं का हिस्सा थे।
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अब मोदी बड़े बहुमत के साथ वापस आ गए हैं। इससे पता चलता है कि भारत के लोग वामपंथी-लिबरल बावलों द्वारा प्रचारित अतिश्योक्ति में नहीं फँसे हैं। अब, नवीनतम प्रचार क्या है? हाल ही में आरोप लगे कि बीजेपी-संघ परिवार समर्थक भीड़ ने मुस्लिम लोगों पर ‘जय श्री राम‘ का जाप करने की मांग करते हुए हमला करना शुरू कर दिया !!! ‘जय श्री राम’ को जोड़ना दरबारियों द्वारा सोचा-समझा खौफनाक योजना का षणयंत्र है। तुम पूछोगे क्यों? क्योंकि हर समझदार व्यक्ति जानता है कि अयोध्या राम मंदिर का मामला हिंदुओं के पक्ष में जा रहा है और यह गिरोह जय श्री राम के जप के खिलाफ एक नकारात्मक अभियान चलाना चाहता था। ये लोग राम मंदिर मामले में हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना चाहते थे। यह देश को विभाजित करने के लिए उनका शातिर एजेंडा है।
ये भ्रष्ट कितना नीचे गिरेंगे? दोषियों की पहचान करने और उन्हें उजागर करने के लिए सही समय है।
ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।
References:
[1] The real story behind AwardWapsi and Intolerance – Jan 2, 2016, PGurus.com
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