कांग्रेस को समाजवाद का मुख्य संदेश छोड़ना और पहचान राजनीति को अपने डीएनए से बाहर निकालना होगा
अनिष्ट-संकेत थे और पूर्व चिह्न भी थे। तीन महीने पहले, राज्य सरकार की खुफिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 40 से अधिक विधायक मजबूत विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कांग्रेस सरकार के खिलाफ विरोधी लहर नहीं थी परंतु मतदाता उनके प्रदर्शन से खुश नहीं थे।
सिद्धारमैया की समाजवादी विचारधारा और उस विचारधारा पर आधारित नीति नुस्खे 1970 के श्रीमती इंदिरा गांधी के समय के पहचान की राजनीति और लोकलुभावनवाद की याद दिलाते हैं। जब उन्होंने मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह के दिन, गरीबी रेखा से नीचे व्यक्तियों के लिए अन्ना भाग्य योजना- 1 रुपये में चावल – की घोषणा की। इस योजना के चलते कई अन्य भाग्य योजनाओं को “अहिंदा” समुदाय, जिनकी कांग्रेस को 2013 में सत्ता हासिल कराने में अहम भूमिका रही, के लिए लाया गया।
राज्य में अविश्वसनीय और भ्रष्ट स्थानीय नेतृत्व के बावजूद, मतदाताओं को अपने वादे को पूरा करने की बीजेपी की क्षमता के बारे में आश्वस्त थे।
सिद्धारमैया ने प्रशासनिक कार्यों से सारे समुदाय के लोगों को क्रोधित किया था। उन्होंने पुराने मैसूर के कई ताकतवर प्रशासनिक पदों पर कुरुबास को बिठाया था जिससे वॉकालिगा समुदाय के लोग क्रोधित हो गये। वीरशैव-लिंगायत समुदाय के लोग उन्हें अलग धर्म का दर्जा देने के सरकार के निर्णय से चिढ़ गये थे। दलित खुश नहीं थे क्योंकि 5 सालों में उनके जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं हुआ था। और अंत में, अल्पसंख्यक कांग्रेस से उदास थे क्योंकि कांग्रेस उन्हें हमेशा से गैर- महत्वपूर्ण समझती रही और यह कांग्रेस प्रशासन भी किसी प्रकार से अलग नहीं था।
परंतु ये इक्कीसवी सदी है और कर्नाटक के बड़ी युवा आबादी 2018 चुनाव में निर्णायक रही। युवा मतदाताओं को जातिवादी राजनीति रास नहीं आई। इसीलिए कांग्रेस ने युवा एवँ अन्य समुदाय के वोट खो दिये जिस वजह से वह हार गये।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनावों से पहले अंतिम दिनों में किये गये प्रचार की वजह से कांग्रेस ने एक और सामरिक भूल कर दी। सोशल मीडिया समर्थकों के प्रोत्साहन से, पार्टी ने विधानसभा चुनाव का उपयोग कर अपने अध्यक्ष को 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। सिद्धारमैया और राहुल गांधी दोनों मोदी के आरोपों के जवाब चुनाव रैलियों में दे रहे थे और इसके चलते दिशा भटक रहे थे। सिद्धारमैया ने देर से ही सही परंतु यह तो स्पष्ट किया, ट्वीट के माध्यम से, कि वह “प्रधानमंत्री के साथ प्रतियोगिता में नहीं है। मैं येदुरप्पा को 15 मिनिट वाद-विवाद करने के लिए चुनौती देता हूँ”। इस घोषणा से मतदाता भौंचक्के हो गये।
इस चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी बिल्कुल तैयार थी। 2008 के वरिष्ठ नेताओं को टिकिट दिया गया जिन्होंने राज्य को लूटा और कुशासन किया परंतु इस चुनाव का मुखोटा मोदी और अमित शाह को बनाया गया। प्रधानमंत्री मोदी के रैलियों द्वारा युवा मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने, वीरशैव-लिंगायत समुदाय को बीजेपी के उनके प्रति प्रतिबद्धता का आश्वासन दिलाने एवँ अनिर्णायक मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया गया। इसीलिए मोदीजी तटीय कर्नाटक में एक ही बार गये क्योंकि स्थानीय नेताओं ने उन्हें विजय प्राप्त करने का आश्वासन दिया था और पुराने मैसूर में गये ही नहीं क्योंकि वहाँ पार्टी का बोलबाला नहीं था और प्रधानमंत्री के जाने से कोई लाभ नहीं मिल सकता था।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैलियों में केवल विकास का मुद्दा उठाया और कांग्रेस नेतृत्व पर हल्ला बोला। भाजपा का संदेश युवाओं एवं अन्य मतदाताओं को विकास का था एवँ वरिष्ठ लोगों को सरकारी सेवाएं सही तरह और बिना भ्रष्टाचार के उन तक पहुंचाने का था। प्रधानमंत्री मोदी के बोलने के कौशल ने लोगों का दिल जीत लिया। भले ही स्थानीय नेता कुटिल और भ्रष्ट हो, परंतु मतदाता इस बात से आश्वस्त थे कि भाजपा अपने वचनों को पूरा करेगी।
कर्नाटक चुनाव मई 201 9 में संसदीय चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की संभावनाओं के बारे में क्या बताता है?
स्थानीय दल जनता दल (सेक्युलर) एक बार फिर 50 सीटें और 21% वोट शेयर का आंकड़ा पार नहीं कर सकी। 2013 की भांति, पार्टी का एचडी कुमारस्वामी पर निर्भर रहना बेअसर रहा। जेडीएस ग्रामीण वोट पर निर्भर रही और इसलिए युवाओं और अन्य मतदाताओं के लिए उनके पास कोई संदेश नहीं था। पार्टी ने अपना पूरा ध्यान सत्ता में आने के 24 घंटे के भीतर कृषी ऋण माफी और वृद्ध एवं गर्भवती महिलाओं को नकद देने पे केंद्रित किया इसलिए किसानों और पेंशनरों के अलावा किसी को भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। युवाओं ने पार्टी को ठुकरा दिया। सी-वोटर के एग्जिट पोल ने बताया कि मुसलमानों ने जेडीएस से अधिक मतदान भाजपा को किया। उत्तर प्रदेश के बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन ने भी दलितों को पार्टी की ओर आकर्षित नहीं किया।
कर्नाटक चुनाव भाजपा और कांग्रेस के 2019 लोकसभा चुनाव संभावनाओं के बारे में क्या कहता है? ये इस बात की पुष्टि करता है कि प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा और विश्वसनीयता बरकरार है और युवाओं को कोई अन्य नेता इस प्रकार आकर्षित नहीं कर पाता। भाजपा के कार्यकर्ता एवं संगठन हर राज्य में मतदाताओं को अपनी ओर लाने में सक्षम हैं।
कांग्रेस पार्टी को संदेश और संगठन दोनों में परिवर्तन लाने की जरूरत है। उन्हें समाजवाद का संदेश छोड़ना होगा और जातिवादी राजनीति को अपने डीएनए से हटाना पड़ेगा। साथ ही अपनी चुनावी रणनीति की कायापलट करनी होगी और वोट पाने के लिए बाहर के संगठन एवं संघों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अब देखना यह है कि सिर्फ एक साल के भीतर क्या उनका वर्तमान नेतृत्व बदलाव ला पायेगा ताकि वह 2019 में भाजपा को प्रभावशाली चुनौती दे सके!
- कांग्रेस कर्नाटक का चुनाव कैसे हारी! - May 18, 2018
आपकी बातों में सही तर्क आप ने दिए हैं मोदी जी की विश्वसनीयता कर्नाटक में ही नहीं पूरे देश में बरकरार है लेकिन उनके छोटे नेता शायद 19 तक मटियामेट कर देंगे। भाजपा को एक साथ नेताओं से जमकर क्षेत्र में काम लेना चाहिए। और जनता की बड़ी शिकायतों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। धन्यवाद