अब 30 सितंबर को लखनऊ के एक सुनवाई (ट्रायल) न्यायालय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, और कई अन्य संघ परिवार नेताओं पर आरोप लगाते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर किये गए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला सुनाने जा रहा है। यहां बड़ा सवाल सीबीआई की रहस्यमय भूमिका है, जो मई 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन है और इस मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी अपील पर मामला आगे बढ़ा रही है।
इस मामले की समयावधि इस प्रकार है – 2001 में, एक सुनवाई न्यायालय ने आडवाणी और जोशी सहित सभी नेताओं को 6 दिसंबर 1992, को बाबरी मस्जिद के विध्वंस मामले में आपराधिक साजिश से बरी कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी 2010 में सुनवाई न्यायालय के आदेश की पुष्टि की। कांग्रेस शासन के तहत सीबीआई ने 2011 में उच्च न्यायालय के बरी करने के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। मामले को लंबे समय तक सूचीबद्ध नहीं किया गया और मई 2014 में भाजपा सत्ता में आई। फिर बड़ा सवाल यह है कि सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी अपील वापस क्यों नहीं ली? आडवाणी, जोशी और अन्य के खिलाफ सीबीआई की दलीलें सर्वोच्च न्यायालय में 2016 में शुरू हुई थीं और अप्रैल 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को खत्म करने के लिए सुनवाई न्यायाधीश को सेवा विस्तार के बाद फिर से सुनवाई करने का आदेश दिया।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, जो स्वयं राम जन्मभूमि आंदोलन का हिस्सा थे, इस संबंध में कोई बहाना नहीं बना सकते।
इस तरह के राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में, मई 2014 से प्रत्येक सीबीआई निदेशक (अर्थात् रंजीत सिन्हा, अनिल सिन्हा, अस्थायी निदेशक राकेश अस्थाना, और आलोक वर्मा) ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से यह पूछा होगा कि इस मामले में सीबीआई को क्या रुख अपनाना चाहिए। यह एक ज्ञात तथ्य है कि लगभग हर दो सप्ताह में, सीबीआई निदेशक अपने असली बॉस, प्रधानमंत्री से मिलते हैं और संवेदनशील मामलों के बारे में उन्हें जानकारी देते हैं।
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स्पष्ट रूप से, मई 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद सीबीआई सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती थी और आडवाणी, जोशी, और अन्य को बरी करने के खिलाफ की गयी अपनी अपील को वापस ले सकती थी, क्योंकि यह मामला उच्च न्यायालय और सुनवाई न्यायालय के फैसले को स्वीकार करते हुए सिर्फ एक राजनीति से प्रेरित मामला था। मोदी के नेतृत्व में सीबीआई ने ऐसा क्यों नहीं किया और इसके अलावा कांग्रेस शासन के तर्कों पर आगे क्यों बढ़ी? अगर सीबीआई अपनी अपील वापस ले ले तो क्या होगा? कुछ भी नहीं – सीबीआई के वकील सर्वोच्च न्यायालय को बता सकते हैं कि उन्होंने अपील वापस लेने का फैसला किया है क्योंकि यह पिछले कांग्रेस शासन द्वारा राजनीति से प्रेरित था। फिर सीबीआई जो मोदी के अधीन है, उसने मई 2014 के बाद यह क्यों नहीं किया?
मोदी को जवाब देना होगा
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, जो स्वयं राम जन्मभूमि आंदोलन का हिस्सा थे, इस संबंध में कोई बहाना नहीं बना सकते। उन्हें जवाब देना होगा कि सीबीआई, जो मई 2014 से उनके अधीन है, आडवाणी, जोशी और अन्य संघ परिवार के सहयोगियों के बरी होने के खिलाफ कांग्रेस शासन की अपील पर आगे क्यों बढ़ी। क्या वे जवाब देंगे या हमें जवाब के लिए फाइलों के गैर-वर्गीकरण से पहले दशकों तक इंतजार करना पड़ेगा?
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