
1975 व 1978 में भी पटना में बाढ़ आयी थी। 1975 की बाढ़ अब आयी बाढ़ से भी अधिक थी। ये देखना दिलचस्प होगा कि 1975 के बाद पटना में हुआ निर्माण क्या उस समय के अधिकतम जलस्तर से ऊपर प्लिन्थ लेवल रखकर किया गया है या नही।
कोई मुख्यमंत्री बारिश को नियंत्रित नहीं कर सकता। पानी बरसेगा तो नदियों से होकर समुद्र तक जाएगा ही। हम इतना कर सकते है कि या तो पानी के रास्ते से दूर रहे, या उसके जलस्तर से ऊपर रहे।
पूँजीवाद व सत्यनिष्ठ समाज में प्राकृतिक आपदाये एक तो बहुत कम हो जाती है, व जब आती भी है तो जीवन व सम्पत्ति का बहुत कम नुक़सान होता है, व जो नुक़सान होता भी है तो समाज आसानी से उसे सहन कर लेता है।
हॉलैंड की पचास प्रतिशत भूमि का स्तर समुद्र तल के एक मीटर के अंदर है। इसका एक चौथाई क्षेत्र व बीस प्रतिशत जनसंख्या समुद्र तल से नीचे है।
इसका क्षेत्रफल बिहार का लगभग एक तिहाई है, लेकिन ये देश विश्व में अमेरिका के बाद खाद्य उत्पादों के निर्यात में दूसरे स्थान पर है। क्यूँकि हॉलैंड की बाढ़ से आयी मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है ।
पानी हॉलैंड में भी बरसता है व नदी के ऊपर से भी आता है। लेकिन हॉलैंड उसे पम्प करके समुद्र में डाल देता है, उसमें डूबता नहीं है, व मिट्टी रोक लेता है।
क्यूँकि हॉलैंड दुनिया के सबसे पुराने पूँजीपति देशों में से है। पूँजीवादी व्यवस्था का सबसे बदनाम तंत्र-बैंकिंग जो माना जाता है कि हॉलैंड से ही आरम्भ हुआ।
तो हॉलैंड के पास पैसा है तो तटबाँध बनाने का भी पैसा है, व पम्पिंग करने के लिए भी पैसा है, पानी के उच्चतम स्तर (HFL-Highest flood level) से ऊपर प्लिंथ लेवल रखने के लिए भी पैसा है।
जब पूँजीवाद नहीं था तो लगभग पाँच सौ वर्ष पहले हॉलैंड में भी बाढ़ से दस हज़ार से अधिक लोग मरे थे।
विकास से ही बाढ़ रुक सकती है, व विकास से ही बाढ़ के विनाश से बचा जा सकता है। और विकास पूँजीवाद से आता है।
हम या तो समाजवादी हो सकते है, या सुरक्षित व स्वस्थ हो सकते है। दोनो एक साथ नहीं हो सकते। हम या तो अपनी जाति के भ्रष्ट, चोरों, व लुटेरों को वोट दे सकते है, या सम्पन्न व सुरक्षित हो सकते है, दोनो एक साथ नहीं हो सकते।
पूँजीवाद व सत्यनिष्ठ समाज में प्राकृतिक आपदाये एक तो बहुत कम हो जाती है, व जब आती भी है तो जीवन व सम्पत्ति का बहुत कम नुक़सान होता है, व जो नुक़सान होता भी है तो समाज आसानी से उसे सहन कर लेता है।
बिहार तो पूरे देश का पेट अकेले भर सकता है व उसके बाद भी अन्न देश के बाहर भी निर्यात कर सकता है, लेकिन उसके लिए मुफ़्तखोरी व भ्रष्टाचार व समाजवाद का त्याग करना होगा समाज को, नेताओ के सिर ठीकरा फोड़ने का प्रयास न करे, मुफ़्तखोर व भ्रष्ट समाज है, नेता तो बस उस समाज से प्रकट भर होते है।
छाती न पीटे, व्यक्तिगत उत्तरदायित्व किस चिड़िया का नाम है इसका अध्ययन करे।
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