क्या हिंदू समाज के साधुओं को न्याय मिलेगा? समय है कि दिल्ली हस्तक्षेप करे

हिंदू साधुओं की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) मामले में मुकदमा चलाने के लिए 126 व्यक्तियों और दो किशोरों को नामजद कर दो आरोप पत्र दर्ज किये गए!

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हिंदू साधुओं की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) मामले में मुकदमा चलाने के लिए 126 व्यक्तियों और दो किशोरों को नामजद कर दो आरोप पत्र दर्ज किये गए!
हिंदू साधुओं की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) मामले में मुकदमा चलाने के लिए 126 व्यक्तियों और दो किशोरों को नामजद कर दो आरोप पत्र दर्ज किये गए!

अपराध की जांच कर रही पुलिस और सीआईडी टीम ने कहा कि 5000 और 6000 पन्नों वाले आरोप पत्र शुरुआती आरोप पत्र हैं!

दो हिंदू साधुओं और उनके ड्राइवर की सीसीटीवी में कैद हिंसक मोब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) हमारे दिमाग में अभी भी ताजा हैं। भयावह दृश्य आज भी याद दिलाते हैं कि कैसे 400 ग्रामीणों की भीड़ द्वारा सोचे समझे तरीके से 2 निर्दोष हानिरहित भगवा पहने साधुओं को बेरहमी से मार दिया गया था।

केंद्रीय एसआईटी या सीबीआई द्वारा निष्पक्ष जांच की मजबूत मांग के बाद #पालघरमॉबलिंचिंग की जांच महाराष्ट्र राज्य आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दी गई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे दबाव में आ गए और केंद्रीय हस्तक्षेप से बचने के लिए सीआईडी जांच की सिफारिश करनी पड़ी।

हैरानी की बात है कि आरोप पत्र में उल्लेख किया गया है कि लिंचिंग आसपास के क्षेत्र में अफवाहों पर आधारित थी और इसका कोई धार्मिक कोण नहीं था।

जांच में नवीनतम, 2 आरोप पत्र दायर किये गए हैं। प्रथम दृष्ट्या आरोप पत्र में 2 हिंदू साधुओं और उनके सहायक ड्राइवर की मोब लिंचिंग को एक धार्मिक कोण देने से उपेक्षा की और इसे एक नियमित आकस्मिक मामला बना दिया।

पालघर मॉब लिंचिंग मामले में एक प्रत्याशित विकास में, महाराष्ट्र सीआईडी ने बुधवार 15 जुलाई 2020 को 126 आरोपियों और दो किशोरों के नाम दो आरोप पत्र दायर किए और उन्हें सुनवाई के लिए आरोपी बनाया।

आरोप पत्र पालघर जिला न्यायालय में दायर किया गया है। अपराध की जांच करने वाली पुलिस और सीआईडी की टीम ने कहा कि आरोप पत्र में क्रमशः 5000 पृष्ठ और 6000 पृष्ठ शामिल हैं, जो शुरूआती आरोप पत्र हैं। जांच और आगे की छानबीन एक अतिरिक्त आरोप पत्र के साथ चल रही है जिसे खारिज नहीं किया जा सकता है। हैरानी की बात है कि आरोप पत्र में उल्लेख किया गया है कि लिंचिंग आसपास के क्षेत्र में अफवाहों पर आधारित थी और इसका कोई धार्मिक कोण नहीं था।

इससे पहले, सत्र अदालत ने पालघर मॉब लिंचिंग मामले में 25 अभियुक्तों की जमानत याचिका खारिज कर दी। आरोपियों ने तकनीकी आधार पर जमानत के लिए आवेदन किया था जिसे पालघर जिला दहानू न्यायालय ने खारिज कर दिया।

एक उदाहरण में ग्रामीण ने आत्महत्या कर ली। यह कहानी इसलिए लगाई गई कि जांच में पुलिस यातना के दौरान व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। पूरी तरह से झूठी कहानी निकली।

क्या है पालघर मॉब लिंचिंग मामला?

16 अप्रैल, 2020 को, लॉकडाउन की अवधि के दौरान, महाराष्ट्र के पालघर जिले के गडचिंचले में 400 से अधिक लोगों की भीड़ द्वारा तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, कथित तौर पर पीड़ितों के चोर होने के संदेह में। मृतकों में 2 हिंदू साधु थे जिनकी पहचान सुशीलगिरी महाराज चिकने और महाराज कल्पवृक्ष गिरि के साथ-साथ उनके चालक नीलेश तेलवाडे के रूप में हुई थी। कथित तौर पर गाँव के पहले एक स्थान पर उन पर पथराव किया गया जहाँ उन्हें शुरू में रोक दिया गया। बाद में पुलिस के हस्तक्षेप के साथ, उन्हें वन विभाग के पुलिस चौकियों पर ले जाया गया, इस स्थान पर भीड़ को लाठी और डंडों से बर्बरतापूर्वक हमला करने के लिए उकसाया गया। भगवा कपड़ों में दिखाई दिये 2 हिंदू साधुओं को कम्युनिस्ट नक्सल हिंसक व्यवहार और मिशनरियों के प्रभाव में धर्मांतरित हुए ग्रामीणों के हमले का निशाना बनाया गया, यही मिशनरी इन आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण गतिविधियों को संचालित करते हैं।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

पालघर जिले की कासा पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र में जहां अपराध की सूचना मिली थी, आईपीसी की कई धाराओं के तहत 156 लोगों को गिरफ्तार किया था, जबकि तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया था और 35 पुलिस कर्मियों को स्थानांतरित कर दिया था। आरोप पत्र में हत्या के मामले में धार्मिक कोण को नजरअंदाज किये जाने से कई अनुत्तरित प्रश्न उठते हैं और कई ऐसे बिंदु जिन पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है:

  • पहला स्थान जहां साधुओं को मामूली पिटाई और पथराव के साथ रोका गया था, उस गाँव के पास पथराव हुआ था जहाँ स्थानीय 50-60 ग्रामीण इकट्ठा हुए थे।
  • इसके बाद गांव की महिला सरपंच ने पुलिस के साथ आकर 3 लोगों को वाहन के साथ पास ही के क्षेत्र की वन विभाग चौकी में ले जाने के लिए हस्तक्षेप किया।
  • इस बीच, किसने आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीणों को वन विभाग के चौकी पर इकट्ठा होने के लिए जुटाया?
  • हिंदू साधुओं के पकड़े जाने की कहानी फैलाने वाला कौन है? हमें उन्हें सबक सिखाना होगा।
  • गाँव के पास के प्रथम आक्रमण को स्वभाविक कहा जा सकता है।
  • वन विभाग चौकी में दूसरा क्रूर हमला पूर्व नियोजित था, जिसे हिंदू साधुओं के लिए निर्देशित किया गया था।
  • क्या नक्सल कम्युनिस्ट खतरे और ईसाई मिशनरियों के धार्मिक परिवर्तन से लड़ने वाले इस आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले कई हिंदू संगठनों के मन में भय को स्थापित करने के लिए हत्या करने की सुनियोजित चाल चली गयी?
  • प्राथमिक जानकारी से लगता है कि हिंदू साधु होने के कारण यह झड़प एक धार्मिक हमले में बदल गयी।
  • भीड़ को जुटाने के लिए पहले हमले के बाद 1-2 घंटे की इस अवधि के दौरान आसपास के क्षेत्र, मोबाइल टॉवर गतिविधि में किए गए कॉल के कॉल रिकॉर्ड कई छुपे हुए सरगनाओं को उजागर कर सकते हैं। इस अवधि के दौरान इस इलाके में सक्रिय मोबाइल नंबर अपराध में प्रत्यक्ष भागीदारी हो सकते हैं।
  • कम्युनिस्ट नक्सल नेताओं की उपस्थिति, क्रिश्चियन मिशनरी प्रमुख, सत्ताधारी पार्टी के स्थानीय नेता, की वन चौकी पर अचानक उपस्थिति गंभीर रूप से गलत इरादे की ओर इशारा करती है।
  • वन चौकी में मामला सुलझ जाने के बाद साधुओं पर हमला करने के लिए भीड़ को किसने उकसाया?
  • जब भीड़ उग्र हो गई, तब पुलिस ने उदासीनता से काम लिया और एक मूक दर्शक सा व्यवहार किया। क्या उन्हें चुप रहने और कार्यवाही को देखने के निर्देश दिए गए थे?
  • वाहन भी पलट गया और क्षतिग्रस्त हो गया। फिर भी, पुलिस ने भीड़ को चेतावनी नहीं दी और न ही हवाई गोलीबारी की।
  • कुछ छोटे नेताओं के साथ पैदल सैनिकों को अपराध के लिए पकड़ा गया है, अपराध के मुख्य अपराधी अभी भी पर्दे के पीछे काम कर रहे हैं।
  • सूत्र बताते हैं कि कुछ मुख्य साजिशकर्ता हिंसक हमलावर अभी भी गुजरात और पालघर से सटे केंद्र शासित प्रदेश सिलवासा में छिपे हुए हैं।
  • नक्सल कम्युनिस्ट, मिशनरी, कुछ राजनीतिक संबद्ध गैर सरकारी संगठन अपराध के आरोपियों का समर्थन कर रहे हैं। वे कानूनी लड़ाई, जमानत, वित्त पोषण आदि की व्यवस्था कर रहे हैं।
  • एक उदाहरण में ग्रामीण ने आत्महत्या कर ली। यह कहानी इसलिए लगाई गई कि जांच में पुलिस यातना के दौरान व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। पूरी तरह से झूठी कहानी निकली।
  • गहरी साजिश, सांठगांठ को अपराध में देखा गया और केवल निष्पक्ष जांच से सच्चाई सामने आ सकती है।
  • अपराध को एक नियमित कोण देना केवल ध्यान भटकाने के लिए है।
  • राज्य, पुलिस की उपस्थिति में निर्दोष नागरिकों की रक्षा करने में विफल रहा है।
  • राज्य को जिम्मेदार, जवाबदेह ठहराया जाता है।

निष्पक्ष जांच के लिए, फास्ट ट्रैक न्याय, अभियुक्तों को सजा, एकमात्र समाधान केंद्र सरकार का हस्तक्षेप है। उसके लिए केंद्र सरकार एसआईटी या सीबीआई जांच के तुरंत आदेश दिए जाएं। गृह मंत्री अमित शाह को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और हस्तक्षेप करना चाहिए।

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

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