एक नयी कल्पित कहानी: मोदी मीडिया को नियंत्रित करते हैं

उनकी सभी-शक्ति का अंदेशा सबसे अधिक यदि कहीं होता है तो वह है मीडिया।

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भारतीय मीडिया को मोदी का परिचारिका कहना झूठ है

वाम-उदारवादियों के लिए, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी न केवल एक बुरा अवतार हैं, बल्कि अत्यंत प्रभावशाली भी हैं और उनकी सभी-शक्ति का अंदेशा सबसे अधिक यदि कहीं होता है तो वह है मीडिया।

‘कॉर्पोरेट मीडिया,’ के पेशेवर क्रांतिकारियों का यह मानना है कि या तो ये भ्रष्ट हैं या फिर इन्हें मोदी की टीम ने भ्रष्ट किया है। ऑरवेलियन डाइस्टोपियास को संदर्भित किया जाता है या फिर उदारवादियों और चलते-फिरते आलोचकों द्वारा “ऑल्ट-ट्रुथ” अथवा “पोस्ट-ट्रुथ” जैसे वाक्यांशों का प्रचुर रूप से प्रयोग किया जाता है।केवल समाचार पत्र है; समाचार मर चुका है; यह 1984, 2017 नहीं है, हमें बताया गया है। लेकिन हमारे बुद्धिजीवियों के साथ समस्या ये है कि वे अक्सर गलत होते हैं लेकिन कभी संदेह नहीं करते। तो क्या सच है? आज कि तारिख में समाचार का अंत हो चुका है, केवल “न्यूज़पीक” का बोलबाला hai। हमें बताया जाट अहइ कि यह १९८४ है, २०१७ नहीं ।लेकिन हमारे बुद्धिजीवियों के साथ समस्या ये है कि वे अक्सर गलत होते हैं लेकिन कभी संदेह नहीं करते। फिर इस अवस्था में सच क्या है?

भाजपा समर्थक चैनल ज़ी न्यूज़ ने भी राज्य स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कि भरपूर आलोचना की । रिपब्लिक टीवी के अर्नाब गोस्वामी भी ।

यदि हम मोदी सरकार को हिला कर रख देने वाले अगस्त के वृत्तांतों पर गौर करें तो उनमें से सबसे दर्दनाक बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में गोरखपुर अस्पताल की मृत्यु कि शृंखला थी । इसका कारण तरल ऑक्सीजन के सप्लायर को पूरा भुगतान न किया जाना बताया गया जिसकी वजह से तरल ऑक्सीजन कि सप्लाई बंद हो गयी ।10 अगस्त से 48 घंटों के अंदर 30 बच्चों की मृत्यु हो गई।

मीडिया ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी? मोदी के समर्थक बताये जानेवाले समाचार संगठनों ने स्पष्ट रूप से आदित्यनाथ योगी के प्रशासन कि निंदा की । इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा जिनका सर्कार से निकट सम्बन्ध हैं, उन्होंने भी गोरखपुर की गोरखधंधे पर एक विस्तृत रिपोर्ट जाहिर की । भाजपा समर्थक चैनल ज़ी न्यूज़ ने भी राज्य स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कि भरपूर आलोचना की । रिपब्लिक टीवी के अर्नाब गोस्वामी भी ।

विरुद्ध हो गए और कहा – “बच्चे मतदान वोटबैंक नहीं हैं और हमारे राजनेताओं का इन पर ध्यान नहीं दिया जाता क्यूँकि यदि जाता तो आज इतनी मौतें ना हुई होतीं… ।”
फिर 1 9 अगस्त को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के खटौली में सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं हुईं। पुरी हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए, जहां करीब दो दर्जन लोग मारे गए और 200 घायल हो गए। अडिशनल डायरेक्टर जनरल (कानून और व्यवस्था) आनंद कुमार ने मीडिया को बताया कि आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) की टीम बचाव कार्य में सहायता करेगी और यह छानबीन भी करेगी कि कहीं जानबूझ कर कोई तोड़-फोड़ ना की गई हो ।1 9 अगस्त को मोदी-भक्त तोड़फोड़ के कारण को मीडिया को बेचने की कोशिश कर रहे थे।

तोड़फोड़ कि इस नाकि परिकल्पना का खुलासा मीडिया चैनेलों के वाद-विवाद से नहीं बल्कि अगले ही दिन २० अगस्त को ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के महेंद्र सिंह द्वारा बहुत ही शांत, अनसुचित रूप से किया गया ।सिंह की रिपोर्ट ने एक बार में ही भारतीय रेल सिस्टम की त्रुटियोों को साबित कर दिया । उन्होंने यह स्पष्ट किया कि “रेलवे कर्मचारी दुर्घटना के समय ट्रैक के अनधिकृत रखरखाव में लगे थे, जिसका मतलब है कि वे लाल झंडे या मार्ग पर संकेत चेतावनी के माध्यम से कोई गति प्रतिबंध नहीं रख रहे थे इसके बावजूद कि रखरखाव कार्य चल रहा था।”

यदि सोचा जाये तो ऐसा अनधिकृत रखरखाव का काम केवल भारत जैसे अलौकि देश में ही हो सकता है ।

सिंह ने सभी षड्यंत्र के सिद्धांतों के लिए एक संक्षिप्त दोष-स्वीकृति भी दी । एक अन्य अधिकारी ने कहा कि “ट्रैन इंजनऔर पांच कोच सुरक्षित रूप से स्थानांतरित होने के बाद ही पटरी पर से उतरी, यह 106 किमी की गति पर संभव नहीं था यदि ट्रैक पर छेड़छाड़ की गई हो ।”

यदि मीडिया मोदी द्वारा नचायी जानेवाली कठपुतली होती तो फैबिन्डिया के बुद्धिजीवियों के अनुसार मोदी के प्रिय खट्टर को मीडिया हाउसेज द्वारा बर्बर करना असंभव होता।

यह खबर पत्रकारिता के उत्क्रांत या बौद्धिक अभिव्यक्ति नै साबित हुई लेकिन मुख्यतः तथ्यों की प्रस्तुति के कारण ये बेहद ताकतवर थी। समाचार एंकर की एनिमेटेड वग्मिता ने इसे और प्रभावशाली बना दिया । संचयी प्रभाव यह था कि खटौली दुर्घटना के चार दिन बाद ही रेलवे मंत्री सुरेश प्रभु ने अपना इस्तीफा प्रधान मंत्री को सौंप दिया ।

मोदी सरकार के शर्मिंदगी से उबरने से पहले ही गुरमीत राम रहीम सिंह प्रकरण ने इसमें आग में घी का काम कर दिया जिसकी लपेट में हरियाणा सरकार के एम.एल. खट्टर भी आ गए ।इसके पहले कभी भी सभी मीडिया संगठनों द्वारा किसी मुख्यमंत्री की इतनी गंभीर रूप से निंदा नहीं की गई । इस निंदा एकता में थी और बिना किसी झिझक के अख़बार, चैनल, समाचार पोर्टल, ब्लॉगर्स-सभी ने खट्टर शासन की अयोग्यता और सहभागिता की निंदा की।

यदि मीडिया मोदी द्वारा नचायी जानेवाली कठपुतली होती तो फैबिन्डिया के बुद्धिजीवियों के अनुसार मोदी के प्रिय खट्टर को मीडिया हाउसेज द्वारा बर्बर करना असंभव होता। वास्तव में, मीडिया ने ईमानदारी से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा मोदी के बारे में की गयी टिप्पणी भी प्रकट की – कि वह भारत के प्रधान मंत्री हैं, न कि भारतीय जनता पार्टी के । मुझे किसी भी अन्य प्रधान मंत्री का पता नहीं है जिसकी इस प्रकार एक उच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा की गयी हो ।

ऐसे परिवेश में, भारतीय मीडिया को मोदी के सौहार्द के तौर पर दर्शन एक गंभीर झूठ है। यह वाकई 2017 है।

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