ज्ञानवापी मामला : श्रृंगार गौरी पूजा की याचिका की सुनवाई को न्यायालय की मंजूरी!
वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर मां श्रृंगार गौरी की पूजा की याचिका की सुनवाई को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने इस याचिका को चुनौती देने वाली अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी की चुनौती को खारिज कर दिया। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का ये विवाद सदियों पुराना है। 213 साल पहले इस विवाद को लेकर पहली बार दंगे हुए थे।
इतिहास के पन्ने
1. काशी विश्वनाथ मंदिर को पहली बार कुतुबउद्दीन ऐबक ने 1194 ई. में ध्वस्त किया। वो मोहम्मद गोरी का कमांडर था। करीब 100 साल बाद एक गुजराती व्यापारी ने इस मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया।
2. काशी विश्वनाथ मंदिर पर दूसरा हमला जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने 1447 ईसवी में करवाया था। मंदिर पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। 1585 ईसवी में अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निमाण कराया।
3. 1642 ई. में शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश पारित किया। हिंदुओं के भारी विरोध के बाद प्रमुख मंदिर को तो नहीं तोड़ा जा सका, लेकिन काशी के 63 छोटे-बड़े मंदिरों को तोड़ दिया गया।
4. 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश जारी किया। ये आदेश कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी रखा हुआ है। सितंबर 1669 में मंदिर तोड़ दिया गया और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई। इसके करीब 111 साल बाद इंदौर की मराठा शासक अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।
मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा। किंवदंतियों, आम जनमानस की मान्यताओं में यह कुआं सीधे पौराणिक काल से जुड़ता है।
ज्ञानवापी मस्जिद हिंदू और मुस्लिम आर्किटेक्चर का मिश्रण है। मस्जिद के गुंबद के नीचे मंदिर के स्ट्रक्चर जैसी दीवार नजर आती है।
माना जाता है कि ये विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा है, जिसे औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रवेश द्वार भी ताजमहल की तरह ही बनाया गया है।
मस्जिद में तीन गुंबद हैं, जो मुगलकालीन छाप छोड़ते हैं। मस्जिद का मुख्य आकर्षण गंगा नदी के ऊपर की ओर उठी 71 मीटर ऊंची मीनारें हैं। ज्ञानवापी मस्जिद का एक टावर 1948 में आई बाढ़ के कारण ढह गया था।
मंदिर-मस्जिद को लेकर कई बार विवाद हुए हैं, लेकिन ये विवाद आजादी से पहले के हैं। 1809 में जब हिंदुओं ने विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच एक छोटा स्थल बनाने की कोशिश की थी, तब भीषण दंगे हुए थे।
1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशजों ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा कि मूल मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़कर मस्जिद बनवाई।
याचिका में कहा गया कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ, इसलिए यह जमीन हिंदू समुदाय को वापस दी जाए। याचिका के मुताबिक केस में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों से बनाया था।
1998 में ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामिया इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची। कमेटी ने कहा कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
2019 में विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की।
हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई।
2020 में अंजुमन इंतजामिया ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराए जाने की याचिका का विरोध किया। इसी साल रस्तोगी ने हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाने का हवाला देते हुए निचली अदालत से सुनवाई फिर शुरू करने की अपील की।
काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी की विश्वनाथ गली में गंगा नदी के किनारे स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आपस में सटी हुई है, लेकिन यहां आने-जाने के रास्ते अलग हैं।
मंदिर का प्रमुख शिवलिंग 60 सेंटीमीटर लंबा और 90 सेंटीमीटर की परिधि में है। मुख्य मंदिर के आसपास काल-भैरव, कार्तिकेय, विष्णु, गणेश, पार्वती और शनि के छोटे-छोटे मंदिर हैं।
मंदिर में 3 सोने के गुंबद हैं, जिन्हें 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था। मंदिर-मस्जिद के बीच एक कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है। ज्ञानवापी कुएं का जिक्र स्कंद पुराण में भी मिलता है। कहा जाता है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान शिवलिंग को ज्ञानवापी कुएं में छिपा दिया गया था।
ताजा विवाद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की रोजाना पूजा-अर्चना को लेकर है। 18 अगस्त 2021 को 5 महिलाएं ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, गणेश जी, हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा की इजाजत मांगते हुए हुए कोर्ट पहुंची थीं। अभी यहां साल में एक बार ही पूजा होती है।
इन पांच याचिकाकर्ताओं का नेतृत्व दिल्ली की राखी सिंह कर रही हैं, बाकी चार महिलाएं सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक बनारस की हैं।
26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया था।
कोर्ट के आदेश के बावजूद मुस्लिम पक्ष के भारी विरोध की वजह से यहां 6 मई को शुरू हुआ 3 दिन के सर्वे का काम पूरा नहीं हो पाया। इस मामले में 10 मई को फिर से सुनवाई होगी। माना जा रहा है कि इस सुनवाई में कोर्ट ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की नई तारीख देने वाला है।
मुस्लिम पक्ष सर्वे के लिए मस्जिद के अंदर जाने को गलत बता रहा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि शृंगार देवी के अस्तित्व के प्रमाण के लिए पूरे परिसर का सर्वे जरूरी है।
ज्ञानवापी विवाद की पूरी बहस द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 कानून के इर्द-गिर्द टिकी हुई है। द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट उपासना स्थलों को बदले जाने से रोकता है। एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को उपासना स्थल जिस धार्मिक रूप में थे, वो बरकरार रहेगा। यानी आजादी के वक्त अगर कोई मस्जिद थी, तो बाद में उसे बदलकर मंदिर या चर्च या गुरुद्वारा नहीं किया जा सकता। ये कानून 11 जुलाई 1991 को लागू किया गया।
इसमें कुल 8 सेक्शन हैं जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण 4 बातें इस प्रकार हैं…
सेक्शन-3: 15 अगस्त 1947 के बाद धार्मिक स्थलों में कोई बदलाव नहीं, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 3 कहती है कि धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जिसमें वह 15 अगस्त 1947 को थे। अगर यह सिद्ध भी होता है कि वर्तमान धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता।
सेक्शन 4(2): 15 अगस्त 1947 से पहले के विवाद पर कोई नया मुकदमा नहीं, 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने के लिए किसी भी अदालत में पेंडिंग कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही खत्म हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। अगर उपासना स्थल में बदलाव 15 अगस्त 1947 के बाद हुआ है, तो ऐसे में कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
सेक्शन-5: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर लागू नहीं, द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के कोई प्रावधान अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर लागू नहीं होंगे।
सेक्शन-6: 3 साल तक की सजा का प्रावधान, अगर कोई व्यक्ति इस एक्ट के सेक्शन-3 का उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल तक की सजा और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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