रूस से भारतीय नेवी को जल्द मिलेंगे दो स्टील्थ फ्रिगेट!
यूक्रेन के साथ 50 दिन से भी ज्यादा लंबे समय से जंग में उलझे रूस ने भारत की हथियार सप्लाई प्रभावित नहीं होने देने का वादा किया है। हालांकि, मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 की सेकेंड रेजीमेंट की डिलीवरी कुछ महीने के लिए टलने के आसार हैं, लेकिन इस बीच रूस ने इंडियन नेवी को दो तलवार-क्लास स्टील्थ फ्रिगेट की सप्लाई तय शेड्यूल के हिसाब से करने का वादा किया है।
भारत और रूस के बीच 2016 में चार स्टील्थ फ्रिगेट की खरीद का इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट (आईजीए) हुआ था। एक अरब डॉलर के इस एग्रीमेंट के हिसाब से दो स्टील्थ फ्रिगेट रूस में बनाए जाने थे, जबकि बाकी दो का कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) किया जाना है। द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में एक भारतीय रक्षा अधिकारी के हवाले से बताया है कि चारों फ्रिगेट का कंस्ट्रक्शन चालू हो चुका है।
दरअसल रूस में बनने वाले दोनों फ्रिगेट पहले 2022 के अंत तक भारत को मिल जाने थे, लेकिन पिछले साल कोरोना के कहर के कारण इनके कंस्ट्रक्शन में देरी हुई। इसके चलते पहला फ्रिगेट करीब 8 महीने की देरी के साथ 2023 के मध्य में इंडियन नेवी को सौंपा जाना तय हुआ था।
गोवा में बनने वाले दोनों वॉरशिप्स में से पहले की डिलीवरी 2026 में और दूसरे की डिलीवरी उसके 6 महीने बाद देना तय है। हालांकि, अब रूस की यूक्रेन के साथ जंग शुरू हो जाने से यह टाइमलाइन खतरे में मानी जा रही है।
भारतीय रक्षा अधिकारी ने बताया कि ये चारों फ्रिगेट गैस टरबाइन इंजन से चलेंगे, जिनकी सप्लाई यूक्रेन की जोरया-मैशप्रोकेट कंपनी को करनी थी। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो इन चारों फ्रिगेट के कंस्ट्रक्शन में यही पेंच फंस गया है। जोरया-मैशप्रोकेट कंपनी की प्रमुख फैक्टरी यूक्रेन के माएकोलाइव शहर में थी, जो 13 मार्च के इस शहर पर रूसी सेना के मिसाइल हमले में बुरी तरह प्रभावित हुई है।
हमले के बाद सामने आई तस्वीरों व वीडियो में इस फैक्टरी से भी मिसाइल हमले के कारण बड़े पैमाने पर लगी आग का धुआं उठता देखा गया है। रक्षा अधिकारी के मुताबिक, इस हमले से इंडियन नेवी के बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना है, जो इस कंपनी के इंजनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रही है।
अच्छी खबर ये है कि जंग से पहले ही जोरया-मैशप्रोकेट कंपनी रूस में बन रहे दोनों भारतीय फ्रिगेट के लिए इंजन की सप्लाई कर चुकी थी। इन इंजन की डिलीवरी भारत को दी गई थी। इसके बाद इन्हें रूस भेजकर फ्रिगेट्स में लगवाया जा चुका है, लेकिन इन दोनों फ्रिगेट्स के जरूरी टेस्ट जंग के कारण टल गए हैं।
एक अन्य रक्षा अधिकारी के मुताबिक, कंपनी ने जीएसएल में बन रहे फ्रिगेट्स के भी इंजन तैयार हो जाने की जानकारी दी थी, लेकिन इनकी डिलीवरी लेने से पहले ही जंग शुरू हो गई थी।
हालांकि, रूस से जुड़े डिप्लोमैटिक सोर्सेज का दावा है कि रूसी अधिकारियों ने किसी भी तरह की देरी की संभावना से इंकार किया है। उनका कहना है कि रूस ने जंग के बावजूद समय पर डिलीवरी देने का वादा किया है।
भारतीय रक्षा अधिकारियों का कहना है कि इंजन संबंधी लोड की थोड़ी जिम्मेदारी विशाखापत्तनम स्थित इंडियन नेवी के मैरीन गैस टरबाइन ओवरहॉल सेंटर को दी जा सकती है, जो जोरया इंजनों की रिपेयर और मेंटिनेंस की जिम्मेदारी संभालती है। पिछले साल नवंबर में जोरया और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) ने एक जॉइंट वेंचर की भी घोषणा की थी, जिसमें जोरया टरबाइन इंजनों के कुछ कंपोनेंट लोकल लेवल पर भारत में ही बनाए जाने थे। हालांकि, इस जेवी का मौजूदा स्टेट्स अभी क्लियर नहीं है।
फिलहाल इंडियन नेवी जोरया कंपनी के इंजनों पर बेहद निर्भर है। इंडियन नेवी के 30 फ्रंटलाइन वॉरशिप्स को जोरया इंजनों से ही पॉवर मिल रही है। इनमें राजपूत-क्लास डेस्ट्रॉयर्स, दिल्ली-क्लास डेस्ट्ऱॉयर्स, मिसाइल कॉर्वेतीज शामिल हैं। इसके अलावा फिलहाल इंडियन नेवी में सेवा दे रहे 6 क्रिवाक या तलवार-क्लास स्टील फ्रिगेट्स में भी यही इंजन लगे हैं।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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