
सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदला
सोमवार को मोटेरा में सरदार पटेल क्रिकेट स्टेडियम का नाम बदलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक स्वयंसेवक) के नाम पर रखा गया। जैसे नेहरू-गांधी परिवार ने अपने नाम पर किसी भी और हर एक संस्था का नाम रखा या उत्तर प्रदेश भर में मायावती द्वारा मुख्यमंत्री रहते अपनी ही मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं, तो अब लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी संकीर्णता के जाल में या मैं, मैं और सिर्फ मैं ही वाली धारणा में फंस गए हैं।
चीयरलीडर्स की बात मत सुनिये!
मोदी के कुछ चीयरलीडर्स (प्रशंसक) भारत के राष्ट्रपति द्वारा सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम किये जाने का औचित्य साबित करने के लिए नेहरू-इंदिरा-राजीव के नाम वाले संस्थानों की सूची के साथ आ रहे हैं। यह सिर्फ एक अपरिहार्य कार्य का बचाव और सरासर चाटुकारिता है, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से संबंधित व्यक्ति से अपेक्षित नहीं है। कांग्रेस पार्टी के प्रति लोगों के गुस्से और नेहरू-गांधी परिवार के प्रति कांग्रेस पार्टी की चाटुकारिता के कारण भाजपा भारत में स्वीकार की गई है। और आप मोदी जी?
नेहरू-गांधी परिवार द्वारा संस्थाओं के नामकरण की होड़ और मायावती द्वारा स्वयं की मूर्तियाँ बनवाये जाने के विरोध के मामले में बीजेपी हमेशा सबसे आगे थी।
राजनेता, क्रिकेट से बाहर रहें
गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के इस फैसले के लिए नरेंद्र मोदी क्यों सहमत हुए, अभी भी बहुत से लोग इसे नहीं पचा पा रहे हैं। क्या सत्ता ने उनकी मानसिकता बदल दी है? यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि मोदी के लेफ्टिनेंट गृह मंत्री अमित शाह स्टेडियम के इस नाम को बदलते हुए आनन्दित होते देखे गए थे। अमित शाह की क्रिकेट प्रशासन के लिए कमजोरी और उनके बेटे जय शाह को पैसों की खान यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में स्थापित करना विवाद का हिस्सा है। बीसीसीआई सचिव के रूप में उनके बेटे का अचानक उत्थान शक्ति का दुरुपयोग है और बॉलीवुड, क्रिकेट और राजनेताओं के बीच मौजूद भ्रष्ट सांठगांठ के बारे में मेरे विचारों को साबित करता है[1]। एक साथ देखने पर इन घटनाओं से संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीयरलीडिंग गैंग के झांसे में पूरी तरह से गिर चुके हैं। ऐसे मनुष्य के पतन को देखना दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसे 2014 के मध्य में लोगों का जनादेश “न्यू इंडिया” के लिए मिला था, परंतु वह अब चाटुकारिता के दलदल में गिर चुका है।
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आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ
नेहरू-गांधी परिवार द्वारा संस्थाओं के नामकरण की होड़ और मायावती द्वारा स्वयं की मूर्तियाँ बनवाये जाने के विरोध के मामले में बीजेपी हमेशा सबसे आगे थी। सत्ता भ्रष्ट बनाती है और एकछत्र सत्ता बिल्कुल भ्रष्ट बनाती है। संक्षेप में, नरेंद्र मोदी के नाम पर एक स्टेडियम के नामकरण की इस घटना ने पूरी तरह से बीजेपी की छवि को धूमिल किया है, जो पार्टी आरएसएस से उत्पन्न हुई है, और आरएसएस इस तरह की सरासर बकवास के खिलाफ जोरदार हमेशा पैरवी करती रही है।
यह सरदार पटेल और 556 छोटी, मध्यम और बड़ी जागीरों को एक सूत्र में पिरोकर वर्तमान भारत के निर्माण की उनकी उपलब्धियों पर एक जोरदार तमाचा है। उम्मीद है, मानसिकता में यह बदलाव उन कई सारे पूर्व-कांग्रेसियों से नहीं आया है जो अब भाजपा को अपने घर के रूप में दावा करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मोटेरा में सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलने पर वैज्ञानिक और राजनीतिक समीक्षक आनंद रंगनाथन के विचारों को सुनें।
This is the moment in sycophancy steeplechase when the Congress looks over its shoulder and sees the BJP catching up.
In accepting a stadium bearing his name Modi has not so much dishonored Patel’s legacy but, rather, his own.
My views: #ModiMoteraDebate pic.twitter.com/DBGewKkvBv
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) February 24, 2021
संदर्भ:
[1] Who painted my lust red? When Bollywood meets Cricket Politicians,this story of fiction describes it (Money Trilogy Book 2) – Amazon.in
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