पीएमएलए के दो नियमों का रिव्यू करेगा सर्वोच्च न्यायालय; केंद्र को नोटिस भेजा

ईडी का गिरफ्तारी करने, सीज करने, संपत्ति अटैच करने, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गए हैं।

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पीएमएलए के दो नियमों का रिव्यू करेगा सर्वोच्च न्यायालय; केंद्र को नोटिस भेजा
पीएमएलए के दो नियमों का रिव्यू करेगा सर्वोच्च न्यायालय; केंद्र को नोटिस भेजा

पीएमएलए कानून सर्वोच्च न्यायालय में रिव्यू के लिए

सुप्रीम कोर्ट प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) पर दिए गए अपने फैसले का रिव्यू करेगी। रिव्यू पिटीशन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम काला धन और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के समर्थन में हैं, लेकिन हमें लगता है कि कुछ मुद्दों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के दो नियमों को लेकर केंद्र को नोटिस भेजा है।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने मामले की सुनवाई की। यह सुनवाई ओपन कोर्ट में हुई, यानी इसमें मीडिया और आम लोगों को कोर्ट की कार्यवाही में देखने के लिए शामिल होने दिया गया।

चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा- यह कानून बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ 2 पहलू को दोबारा विचार लायक मानते हैं-

ईसीआईआर (ईडी की तरफ से दर्ज एफआईआर) की रिपोर्ट आरोपी को न देने का प्रावधान

खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपी पर होने का प्रावधान

कोर्ट ने 27 जुलाई को पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए इस एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था। तब कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है। इसे लेकर सांसद कार्ति पी चिदंबरम ने कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी, जिस पर आज सुनवाई हुई।

27 जुलाई को जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने विजय मदनलाल चौधरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस और 240 याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, महाराष्‍ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ईडी की गिरफ्तारी, जब्ती और जांच प्रक्रिया को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें

1. ईडी का गिरफ्तारी करने, सीज करने, संपत्ति अटैच करने, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गए हैं।

2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत ईसीआईएआर को एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता है। ये ईडी का इंटरनल डॉक्यूमेंट है।

3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईसीआईएआर रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है।

4. पीएमएलए में 2018-19 में हुए संशोधन क्या फाइनेंस एक्ट के तहत भी किए जा सकते हैं? इस सवाल पर 7 जजों की बेंच मनी बिल के मामले के तहत विचार करेगी।

याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती या कुर्की करने का अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है। दायर की गई याचिकाओं में मांग की गई थी कि पीएमएलए के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरी प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती है, इसलिए ईडी को जांच के समय सीआरपीसी का पालन करना चाहिए। इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वकीलों ने अपना पक्ष रखा।

[आईएएनएस इनपुट के साथ]

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