हनुमान जन्‍मस्‍थली किष्किंधा क्षेत्र मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश – पुजारी को पूजा करने में कोई बाधा उत्पन्न न की जाए!

    कर्नाटक सरकार और पुजारी के बीच से कानूनी लड़ाई 2018 से चल रही है। कर्नाटक के जिला कोप्पल स्थित अंजनी पर्वत पर ये प्राचीन आंजनेय मंदिर है जिसे हनुमान का जन्म स्थान बताया जाता है।

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    कर्नाटक उच्च न्यायालय - किष्किंधा में आदेश तक प्रशासन रुकावट न डाले!
    कर्नाटक उच्च न्यायालय - किष्किंधा में आदेश तक प्रशासन रुकावट न डाले!

    कर्नाटक के किष्किंधा हनुमान मंदिर पूजा विवाद; हाईकोर्ट का आदेश प्रधान अर्चक को पूजा व अर्चना करने में किसी तरह की रुकावट पैदा न की जाए

    अयोध्या रामजन्मभूमि मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को हक दे दिया लेकिन अयोध्या से सैकड़ों किलोमीटर दूर कर्नाटक के हनुमान लला यानी हनुमानजी का जन्म स्थल माने जाने वाले किष्किंधा क्षेत्र में अंजनी पर्वत पर स्थित आंजनेय हनुमान मंदिर पर सरकारी नियंत्रण है जिसके खिलाफ पूजा-प्रशासन के हक को लेकर पुजारी की कर्नाटक सरकार से कानूनी जंग जारी है। कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कर्नाटक सरकार को कहा है कि मंदिर के प्रशासक हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी व अर्चक विद्यादास बाबा को भगवान की पूजा व अर्चना करने में किसी तरह का रुकावट या बाधा उत्पन्न नहीं करेंगे। जस्टिस एस आर कृष्णा कुमार की बेंच ने ये भी कहा है कि अगले आदेशों तक अफसर मुख्य पुजारी को मंदिर या उनके रहने के स्थान को लेकर किसी तरह कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 17 मार्च को होगी।

    दरअसल कर्नाटक सरकार और पुजारी के बीच से कानूनी लड़ाई 2018 से चल रही है। कर्नाटक के जिला कोप्पल स्थित अंजनी पर्वत पर ये प्राचीन आंजनेय मंदिर है जिसे हनुमान का जन्म स्थान बताया जाता है। करीब सौ सालों से मंदिर का प्रबंधन और रखरखाव पुजारियों के हाथ में है और मुख्य पुजारी बाबा नारायण दास के वृद्ध होने के बाद 2009 में विद्यादास बाबा को मुख्य अर्चक/ पीठाधिपति नियुक्त किया गया। इसी दौरान मंदिर में 500 से ज्यादा सीढ़‍ियां और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं दी गईं। मंदिर के साथ ही जमीन पर एक संस्कृत विद्यालय भी स्थापित किया गया। इस मामले में विवाद तब शुरू हुआ जब 18 जुलाई 2018 को जिला कलेक्टर ने हिंदू धर्म व धर्मार्थ दान अधिनियम 1997 के तहत आदेश पारित किया और मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया। इसके साथ ही पुजारियों को भी बाहर कर दिया। साथ ही कार्यपालक अधिकारी और प्रशासक व अन्य अफसरों की नियुक्ति कर दी। 26 जुलाई को सरकारी नियंत्रण को अवैध बताते हुए इसके खिलाफ बाबा विद्यादास ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अर्जी लगाई जिसने 6 दिसंबर को अंतरिम आदेश जारी कर 18 जुलाई के डीएम के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

    इसके बाद बाबा विद्यादास अंतरिम आदेश पर स्पष्टता और पूजा व्यवस्था के लिए दो जजों की पीठ के सामने अर्जी लगाई। खंडपीठ ने एकल जज पीठ के अंतरिम आदेश में संशोधन किया कि पुजारी को अपने आराध्य भगवान की पूजा करने का अधिकार है लेकिन बाद में मुख्य पुजारी ने ये आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में 3-1-2019 को अवमानना याचिका दाखिल की कि तहसीलदार और एसपी हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें पूजा नहीं करने दे रहे हैं। 27 फरवरी 2019 को सिंगल बेंच ने आदेश दिया कि सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक मुख्य पुजारी को मंदिर के पास ही पूजा आदि करने के लिए एक कमरा दिया जाए। इधर 1 जुलाई 2019 को अवमानना याचिका पर कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रशासक पुजारी को मंदिर के पास कमरे में रहने देगा और पुजारी के काम से नहीं रोकेगा लेकिन दो सितंबर 2020 को पुजारी ने फिर से याचिका दाखिल कर आरोप लगाया कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद पूजा नहीं करने दी जा रही है। उन्होंने मांग की कि न्यायिक अफसर या मजिस्ट्रेट की देख में जांच हो।

    इसके बाद हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर सरकार को कहा कि पुजारी को पूजा आदि से न रोका जाए लेकिन मुख्य पुजारी की ओर से पेश वकील विष्णु शंकर जैन ने हाईकोर्ट को बताया कि इसके बावजूद भी अफसर उन्हें पूजा करने नहीं दे रहे और रुकावट डाल रहे हैं। मंगलवार 14 फरवरी को हुई इस सुनवाई में हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में सरकार को कहा है कि पहले के आदेशों में भी पुजारी के अधिकारों को अंतरिम रूप से सरंक्षण दिया गया है। ऐसे में ये उचित है कि उन्हें पूजा, अर्चक कर्तव्यों को करने के लिए कोई रुकावट या बाधा न हो। मंदिर में अफसरों द्वारा पुजारी के काम में कोई रुकावट न डाली जाए। यह भी निर्देश दिया जाता है कि इन रिट याचिकाओं के लंबित निपटारे तक प्रतिवादी किसी भी तरह से मंदिर या निवास के संबंध में मुख्य पुजारी के खिलाफ कोई भी कठोर /दंडात्मक कदम नहीं उठाएंगे। यह स्पष्ट किया जाता है कि यह अंतरिम व्यवस्था पक्षों के अधिकारों और विवादों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना और इस न्यायालय के आगे के आदेशों और इन याचिकाओं के अंतिम परिणाम के अधीन है। कर्नाटक सरकार की ओर से अदालत में बताया गया कि धमार्थ दान कानून के तहत मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लेने के आधार को लेकर रिकॉर्ड को तलाशने के प्रयास किया जा रहा है और चार हफ्ते का समय मांगा। वहीं याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि इस कानून के तहत सरकारी नियंत्रण तभी लिया जा सकता है जब मंदिर को पहले के एक कानून के तहत नियंत्रण में लिया गया हो और इसे दान किया गया हो। ऐसे में जब सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है तो फिर ये कदम पूरी तरह गैरकानूनी है।

    [आईएएनएस इनपुट के साथ]

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