राजस्थान उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई न्यायालय (ट्रायल कोर्ट) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 2001 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित उदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल के विनिवेश मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अरुण शौरी के अभियोजन के क्लोजर रिपोर्ट (समाप्त वाली रिपोर्ट) को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत पर कड़ा रुख अपनाया और पूछा कि जोधपुर की विशेष अदालत के ट्रायल जज ने इस तरह का निष्कर्ष कैसे निकाला और व्यक्तियों की गिरफ्तारी और होटल को जब्त करने और राज्य सरकार को सौंपने के लिए कैसे कहा। उच्च न्यायालय का आदेश भारत होटल की वर्तमान मालिक ज्योत्सना सूरी द्वारा दायर की गई समीक्षा याचिका पर आया है, ज्योत्सना सूरी पर भी अरुण शौरी और अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों के साथ अभियोजन लगाया गया था। असल में, सुनवाई न्यायालय के विवादास्पद आदेश पर उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गयी है, और इन लोगों को ट्रायल कोर्ट में पेश होने के लिए कहा है और किसी को भी गिरफ्तार न करने का आदेश दिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा – “पक्षों के लिए प्रस्तुत वकील और रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री के बारे में जानने के बाद, यह न्यायालय (उच्च न्यायालय) प्रथम दृष्टया राय रखता है कि न्यायालय (ट्रायल कोर्ट) द्वारा याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी का वारंट जारी करना न्यायसंगत नहीं है।” पूर्व कानून मंत्री और भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने ज्योत्सना सूरी का प्रतिनिधित्व किया।
यह अभी भी एक रहस्य है कि नरेंद्र मोदी के तहत सीबीआई ने वाजपेयी सरकार मंत्रिमंडल के फैसले पर प्राथमिकी (एफआईआर) क्यों दर्ज की?
जोधपुर के ट्रायल जज के विवादास्पद आदेश पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा – “यह न्यायालय (उच्च न्यायालय) यह मानने के लिए विवश है कि निचले न्यायलय (ट्रायल कोर्ट) ने आरोपी को हिरासत में लेने के लिए किसी भी प्रकार के अति अधिक तरीके, जैसे वारंट जारी करना, को उचित नहीं समझा है… और फिर, गिरफ्तारी वारंट जारी करते हुए, निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने कोई निष्कर्ष नहीं दिया है कि याचिकाकर्ता की हिरासती पूछताछ की आवश्यकता क्यों है, खासकर जब सभी संबंधित दस्तावेज निचली अदालत के रिकॉर्ड में हैं और लेन-देन की तारीख वर्ष 2001 है, जब वह कंपनी के मामलों की निर्णयकर्ता नहीं थीं।”
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उच्च न्यायालय को इस पर आश्चर्य भी हुआ कि कैसे भ्रष्टाचार निरोधक मामलों को संभालने वाले ट्रायल जज ने आदेश को रद्द करते हुए होटल को जब्त करने का आदेश दिया।
यह मामला कैसे घटित हुआ और कैसे सीबीआई ने आश्चर्यजनक रूप से 13 अगस्त 2014 को एफआईआर दर्ज की, इस बारे में पीगुरूज ने विस्तार से रिपोर्ट दी है। यह अभी भी एक रहस्य है कि नरेंद्र मोदी के तहत सीबीआई ने वाजपेयी सरकार मंत्रिमंडल के फैसले पर प्राथमिकी (एफआईआर) क्यों दर्ज की? कई लोगों का मानना है कि यह संदिग्ध सीबीआई मामला मोदी और अरुण शौरी के बीच तनातनी का परिणाम था। इस मामले की उत्पत्ति पर विस्तृत लेख यहाँ पढ़ सकते हैं[1]।
संदर्भ:
[1] नरेंद्र मोदी ने वाजपेयी मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित होटल विनिवेश के लिए सीबीआई को अरुण शौरी के खिलाफ मामला दर्ज करने की अनुमति क्यों दी? Sep 19, 2020, hindi.pgurus.com
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