दो दिन पहले, जोधपुर में आश्चर्यजनक रूप से एक सुनवाई न्यायालय ने उदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल के 18 वर्षीय (2002) कैबिनेट-अनुमोदित विनिवेश मामले में पूर्व मंत्री अरुण शौरी के खिलाफ जांच का आदेश दिया। 17 सितंबर, 2020 को न्यायाधीश ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मामले को बंद करने के आदेश पारित किए। प्राथमिकी (एफआईआर) कब दर्ज की गई थी? 13 अगस्त, 2014 को। हां, मैं दोहरा रहा हूँ 13 अगस्त 2014, जब सीबीआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन थी। यह एक बहुत बड़ा सवाल है कि मोदी सरकार के तहत सीबीआई ने वाजपेयी के मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित होटल की बिक्री के खिलाफ मामला क्यों दर्ज किया… अमर प्रेम फिल्म में राजेश खन्ना पर फिल्माया एक गीत… ये क्या हुआ, कैसे हुआ… एफआईआर, जिसमें किसी नाम का उल्लेख नहीं किया गया, में कहा गया कि यह मामला विनिवेश विभाग द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर दर्ज किया गया है। उस समय, यह विनिवेश विभाग अरुण जेटली के नेतृत्व वाले वित्त मंत्रालय के अधीन था। तब तक शौरी ने मोदी की आलोचना शुरू कर दी थी। क्या सीबीआई ने अरुण शौरी पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया था?
यह चाल किसने खेली?
क्या यह मोदी सरकार का ओछापन (नीचता) है, जो शरारत या जेटली की कुटिलता के साथ खेला गया? सीबीआई की दूसरी क्लोजर (समापन) रिपोर्ट को न्यायाधीश द्वारा आश्चर्यजनक रूप से खारिज करने के बाद अब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। न्यायाधीश ने राज्य सरकार द्वारा होटल के अधिग्रहण का भी आदेश दिया है! यह कानून पर एक सवाल है कि कैसे एक ट्रायल कोर्ट के जज ने इस तरह से भ्रष्टाचार निरोधक कानून को संभाल लिया। अरुण शौरी ने 17 सितंबर को मीडिया से कहा कि वह राजस्थान उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण (रिवीजन) याचिका दायर करेंगे[1]।
सीबीआई ने कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्राप्त 18 साल पुराने उस फैसले पर केस दर्ज करने का फैसला क्यों किया, जिसकी कई अदालतों द्वारा पुष्टि की गयी थी? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेन्द्र मोदी के तहत सीबीआई ने वाजपेयी के मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित निर्णय के खिलाफ मामला क्यों दर्ज किया?
शौरी ने 2014 में ही इसका खंडन कर दिया था
छह साल पहले – सितंबर 2014 में सीबीआई मामले के पंजीकरण के हफ्तों बाद – अरुण शौरी ने उदयपुर में इस होटल के विनिवेश पर एक विस्तृत लेख लिखा था। एक लम्बे लेख में, बिंदु-दर-बिंदु खंडन में, शौरी ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे सीबीआई इस निष्कर्ष पर पहुंची कि होटल का मूल्य 151 करोड़ रुपये था, जबकि यह वास्तव में 7.5 करोड़ रुपये में बेचा गया था। विस्तृत लेख में कहा गया कि होटल का वार्षिक राजस्व केवल दो करोड़ रुपये था और खर्च तीन करोड़ रुपये से अधिक होता था, जिससे लंबे समय तक प्रति वर्ष एक करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। होटल में केवल 55 कमरे हैं (और उस समय कमरे का किराया 1900 रुपये प्रति दिन था) और रुकने वालों की दर केवल 41% थी और कुल मिलाकर, झील सहित 29 एकड़ भूमि – पर्यावरण और तटीय विनियमन क्षेत्र नियमों पर राज्य के कानूनों द्वारा एक बड़े हिस्से को आगे के निर्माण से रोक दिया गया था। होटल को भारत होटल समूह द्वारा मंत्रिमंडल की स्वीकृति के साथ बोली के माध्यम से अधिग्रहित किया गया था। शौरी ने लेख में याद दिलाया कि उस समय कानून मंत्री अरुण जेटली थे जिनके विभाग ने तीन बार फाइलों को मंजूरी दी थी। भारत होटल के मालिक, स्वर्गीय ललित सूरी उस समय भाजपा के सांसद और जेटली के करीबी मित्र थे। उनकी पत्नी ज्योत्सना सूरी, जो अब होटल का कामकाज संभाल रही हैं, भी जेटली की करीबी दोस्त थीं। यहां वाजपेयी सरकार द्वारा अनुमोदित निर्णय के खिलाफ मोदी शासन के दौरान सीबीआई के आश्चर्यजनक कदम पर इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अरुण शौरी के विस्तृत लेख की लिंक दी गई है[2]।
इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।
वाजपेयी (एबीवी) मंत्रिमंडल के फैसले पर सवाल क्यों?
सीबीआई द्वारा इस मामले का पंजीकरण नरेंद्र मोदी और उनके दशकों पुराने दोस्त और वरिष्ठ सहयोगी अरुण शौरी के बीच की दोस्ती में आखिरी कील साबित हुआ। हालाँकि यह मामला स्वर्गीय अरुण जेटली द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन मोदी सीबीआई को फटकार लगा सकते थे और इसे प्राथमिकी दर्ज करने से रोक सकते थे, जिसके कारण अब यह बुरी स्थिति बन गई है। हालांकि शौरी का नाम एफआईआर में दर्ज नहीं किया गया था, लेकिन सीबीआई ने उन्हें कई ऐसे अधिकारियों द्वारा पूछताछ के लिए उकसाया गया, जिन्होंने मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित 18 वर्षीय होटल विनिवेश के लिए उनके अधीन काम किया था। वाजपेयी सरकार द्वारा इस होटल की बिक्री सहित कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेशों के खिलाफ कई मामलों को कई उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में पुष्टि की गई थी। यहां तक कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग (यूपीए) सरकार ने भी विनिवेश के फैसलों में कोई कमी नहीं पाई! तो फिर बेवजह गढ़े मुर्दे क्यों उखाड़े जा रहे हैं?
निर्णय कौन ले रहा है?
सीबीआई ने कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्राप्त 18 साल पुराने उस फैसले पर केस दर्ज करने का फैसला क्यों किया, जिसकी कई अदालतों द्वारा पुष्टि की गयी थी? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेन्द्र मोदी के तहत सीबीआई ने वाजपेयी के मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित निर्णय के खिलाफ मामला क्यों दर्ज किया? क्या यह सिर्फ अरुण शौरी को डराने और धमकाने के लिए है? मोदी जी, आप कुछ आलोचना नहीं सह सकते? अरुण शौरी इस तरह की रणनीति में फंसने वाले व्यक्ति नहीं हैं।
सीबीआई को कार्रवाई करनी चाहिए
आश्चर्यजनक न्यायिक आदेश के बाद मामला अब नियंत्रण से बाहर हो गया है। अब सीबीआई को उच्च कानूनी मंचों में न्यायाधीश के आश्चर्यजनक आदेश पर सवाल उठाना है, हालांकि शौरी ने घोषणा की है कि वह उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर करेंगे। यह प्रतिशोध/ क्षुद्रता का प्रतीक है और नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सत्ता का घोर दुरुपयोग है।
संदर्भ:
[1] CBI court orders FIR against Arun Shourie for sale of Laxmi Vilas Palace in 2002, tells authorities to seize hotel – Sep 17, 2020, India Today
[2] Is this the way to energise civil servants? Sep 5, 2014, The Indian Express
- इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने यह घोषणा क्यों नहीं की कि अडानी के पास उनके चैनल में 16% से अधिक शेयर हैं? - January 29, 2023
- स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग के अनुसार प्रणॉय रॉय को अडानी से 605 करोड़ रुपये मिलेंगे। रॉय के 800 करोड़ रुपये से अधिक के बकाए पर आयकर विभाग कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? - January 4, 2023
- क्या एमसीएक्स अपने नए प्लेटफॉर्म के बारे में जनता को गुमराह कर रहा है? भाग 2 - December 4, 2022
[…] […]
[…] […]