अब फिल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत का मामला बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया है। 14 जून को हुई उनकी मृत्यु के 65 दिन बाद, न्याय दिया गया है। यह मामला शीर्ष न्यायालय के हस्तक्षेप का एक उत्कृष्ट मामला है, जो महाराष्ट्र पुलिस के विवादास्पद गठबंधन सरकार के तहत काम करने वाले विवादास्पद पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह की अध्यक्षता में मुंबई पुलिस द्वारा जांच की संदिग्ध शैली पर बड़े पैमाने पर विरोध और आक्रोश का जवाब देता है। शीर्ष न्यायालय और उसके न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने मुंबई पुलिस के चंगुल से जांच को बाहर करते हुए, सीबीआई को मामला सौंप कर इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए श्रेय प्राप्त किया, मुंबई पुलिस ने आम जनता की नजरों में विश्वसनीयता खो दी।
कुछ लोग सम्मान के हकदार हैं
कई लोग इस मामले में सम्मान और कई लोग आलोचना के पात्र हैं। सबसे पहला नाम कभी न थकने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और उनके कानूनी सहयोगी अधिवक्ता ईशकरण भंडारी हैं, जिन्होंने शुरू से ही सुशांत की रहस्यमय मौत पर सवाल उठाया, सीबीआई जांच की मांग की। कंगना रनौत, सुशांत की तरफ से बॉलीवुड का मुकाबला करने के लिए प्रशंसा की पात्र हैं। सुशांत को न्याय दिलाने में अन्य महत्वपूर्ण खिलाड़ी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पुलिस प्रमुख गुप्तेश्वर पांडे रहे, जिन्होंने प्राथमिकी दर्ज की और सीबीआई को जांच सौंपी, जिसने मुंबई पुलिस के संदिग्ध खेलों को नष्ट कर दिया। जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के पुलिस अनुरोध के आधार पर सीबीआई को बिहार पुलिस से मामला लेने का आदेश देने के लिए श्रेय के हकदार हैं।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले को सीबीआई के हाथों सौंपकर खुद को बचा सकते थे। लेकिन उनके गठबंधन के दबाव ने उन्हें रोक दिया क्योंकि बॉलीवुड से जुड़े लोग उनके सिर पर बैठे थे। अब मीडिया में आते हैं।
आलोचना
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली और एनसीपी प्रमुख शरद पवार नियंत्रित महाराष्ट्र गठबंधन सरकार और विवादास्पद पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह के नेतृत्व वाली मुंबई पुलिस ने सभी तरह के संदिग्ध खेल खेले। शीर्ष न्यायालय का आदेश बिहार पुलिस को रोकने में मुंबई पुलिस की कार्रवाई से पैदा हुए संदेह के बारे में बोलता है। परम बीर सिंह हमेशा कई अवैध गतिविधियों के रडार पर रहते हैं। कुटिल पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम और कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह द्वारा तैयार फर्जी हिंदू टेरर (हिंदू आतंकवाद) मामले में पीड़ित कर्नल पुरोहित ने शिकायत की थी कि कैसे परम बीर सिंह और पुलिस ऑफिस के दिवंगत अधिकारी हेमंत करकरे उन्हें प्रताड़ित करते थे। पीगुरूज ने कर्नल पुरोहित की पूरी शिकायत को विस्तार से प्रकाशित किया, जिसमें एक फर्जी मामले में एक सेवारत सेना अधिकारी को प्रताड़ित करने में परम बीर की अमानवीय प्रकृति को उजागर किया गया है[1]।
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परम बीर और कर्नल पुरोहित
यदि महाराष्ट्र और केंद्र की भाजपा सरकारों ने कर्नल पुरोहित द्वारा 24-पृष्ठ के कंपा देने वाले पत्र का संज्ञान लिया होता, तो परम बीर सिंह जैसा दैत्यनुमा पुलिस अधिकारी अब तक जेल में होता। हम सभी जानते हैं कि परम बीर सिंह सभी राजनीतिक दलों में कई भ्रष्ट तत्वों से जुड़े हुए हैं। लेकिन बिहार के स्वतंत्र डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के सामने परम बीर सिंह के हथकंडे विफल हो गए।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले को सीबीआई के हाथों सौंपकर खुद को बचा सकते थे। लेकिन उनके गठबंधन के दबाव ने उन्हें रोक दिया क्योंकि बॉलीवुड से जुड़े लोग उनके सिर पर बैठे थे। अब मीडिया में आते हैं। रिपब्लिक टीवी और इसके संपादक अर्नब गोस्वामी और टाइम्स नाउ और इसके संपादक राहुल शिवशंकर और नविका कुमार सुशांत के लिए न्याय की लड़ाई के लिए श्रेय के पात्र हैं। सबसे खराब स्थिति इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई की थी जिन्होंने मुंबई पुलिस की जमकर तरफदारी की। बरखा दत्त ने भी सुशांत सिंह में निराशा (डिप्रेशन) की समस्या के बारे में खबरें लगाकर धोखाधड़ी की।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के मामले में सीबीआई जांच के लिए अपने 35 पेज के आदेश की समाप्ति इन शब्दों के साथ की : “जब सत्य उजागर होगा, तब केवल जिवित व्यक्ति ही नहीं परंतु जीवन की चिंताओं से मुक्त अब मृत व्यक्ती भी चैन से सो पाएंगे। सत्यमेव जयते।”
संदर्भ:
[1] कर्नल पुरोहित द्वारा मानवाधिकार आयोग को चौंकाने वाला पत्र बताता है कि उन्हें कैसे यातनाएं दी गई थीं! – Jun 16, 2018, hindi.pgurus.com
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