उड़ीसा में 14 ज़िला जजों की पोस्ट के लिए विभागीय कॉम्पटिशन हुआ। एक भी कैंडिडट पास नही हुआ। इसके अतिरिक्त 8 पोस्ट वकीलों के लिए थी। 335 वक़ील परीक्षा में बैठे व दो पास हुए।
सभी सरकारी विभागों में यही हाल है। रिक्तियाँ भरने के लिए ज़बरदस्ती पास किया जाता है कर्मचारियों को।
Ajit Singh ने दो तीन दिन पहले एक पोस्ट में लिख दिया कि पढ़ना है तो अंग्रेज़ी सीख लो क्यूँकि हिंदी में किताबें नहीं है। लोग फैल गए, बहुत जूतमपैजार हुई।
लेकिन सच यही है। हिंदी में किताबें नहीं है ल्यूंकि हम लोग पढ़ते नहीं है। पढ़ते नहीं है तो लिखी नहीं जाती है। (ये डिमांड सप्लाई का नियम गुर्तवक्रशण के नियम से भी ज़्यादा सत्य है।)
अब तो मेरठ के जासूसी उपन्यास लिखने वाले भी कंगाल होकर सन्यास ले चुके। जो उन्हें पढ़ लिया करते थे वे भी अब मोबाइल पर विडीओ देखते है। हिंदी की अस्सी के दशक तक चली लगभग सभी पत्रिकाये या तो बंद हो गयी या ज़बरदस्ती खींची जा रही है, सरकारी विज्ञापनो के लिए।
जो domesticated जानवर है वे भी व अन्य जानवर भी सब शारीरिक ताक़त में हमसे बहुत आगे है। परंतु पृथ्वी पर राज मनुष्य का है। उसके मस्तिष्क की वजह से।
जन्म के समय मानव मस्तिष्क बिना OS वाले कम्प्यूटर की तरह होता है। OS व सारी Apps यही इंस्टल होते है, शब्दों द्वारा। शब्द जो हम सुनते है व फिर थोड़ा बड़े होते है तो जो पढ़ते है।
अभी कुछ दशक पहले तक पश्चिमी देशों में Latin व Greek पढ़ना अनिवार्य था। हम संस्कृत की बात करेंगे तो एक दर्ज़न separatist आंदोलन आरम्भ हो जाएँगे। अमेरिका में अभी भी स्कूलो में साहित्य पढ़ने पर बहुत ज़ोर रहता है। वामी वहाँ भी शिक्षा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे है, लेकिन वामपंथ को वहाँ अभी भी बहुत प्रतिरोध निलता है।
जो domesticated जानवर है वे भी व अन्य जानवर भी सब शारीरिक ताक़त में हमसे बहुत आगे है। परंतु पृथ्वी पर राज मनुष्य का है। उसके मस्तिष्क की वजह से।
और मस्तिष्क का निर्माण होता है शिक्षा से। जानवरो व मनुष्य में बस भाषा का ही अंतर है। जानवरो के पास न भाषा है अत न शिक्षा है, इसलिए बस बोझ ढोते है व मनुष्य उन पर राज करता है। हम नही पढ़ेंगे तो हम पर भी कोई भी राज करेगा: लूटीयंस, देसी लालू, इंग्लिश लालू, वोट बैंक मैनेजर, दाउद के बिज़्नेस पार्ट्नर, जातियों के भ्रष्ट ठेकेदार…….पहले पढ़ाई सीमित की थी तो आठ सौ वर्ष दास रहे थे। इस बार तो पढ़ाई का त्याग ही कर दिया है। स्वेच्छिक, सबने।
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