डॉ सुब्रमण्यम स्वामी – बौनों के बीच विशाल व्यक्तित्व

भारतीय राजनीति के सच्चे दिग्गजों में से एक, डॉ स्वामी एक बहु-प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हैं जिसका एकमात्र विस्त्सार सत्य है

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डॉ स्वामी - बौनों के बीच विशाल व्यक्तित्व
डॉ स्वामी - बौनों के बीच विशाल व्यक्तित्व

वे नैतिक रूप से आपराधिकता और अक्षमता के सख्त खिलाफ है, वह कानून के शासन में पारदर्शिता और मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते है।

ब्रिटेन में रहकर भारत में होने वाली घटनाओं को देखना हमेशा आकर्षक होता है। इंग्लैंड में हम अधिक भारतीय राजनेताओं से परिचित नहीं हैं, राजनेताओं के साथ अक्सर प्रवासी भारतीयों की परस्पर क्रियाएं होती हैं, लेकिन वे ज्यादातर भारतीय उच्चायोग या लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़े हुई कार्यक्रमों में ही होती हैं। परंतु डॉ सुब्रमण्यम स्वामी एक ऐसे राजनेता हैं जिन्हें नियमित रूप से छात्रों और प्रबुद्ध मंडल के साथ तर्क-वितर्क  में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है; जहाँ तक मेरी जानकारी है, उन्हें पिछले तीन वर्षों में वारविक, ऑक्सफोर्ड और डिचले फाउंडेशन में दो बार आमंत्रित किया गया है। स्वामी भारत के समर्थन के लिए, अंतर्राष्ट्रीय द्विपक्षीय संबंधों को प्रोत्साहित करने और अपने हिंदुत्व कार्यसूची को बढ़ावा देने के लिए संस्कृतियों के बीच निर्बाध रूप से आगे बढ़ते हुए दिखाई देते हैं। उनके कार्यालय में कई तस्वीरें उनकी विश्वव्यापी पहुंच की गवाही देती हैं; जिनमें प्रिंस फैसल के साथ, बराक ओबामा के साथ, डेंग जिओपिंग के साथ भी तस्वीरें शामिल हैं; स्वामी को मैं वास्तविक रूप से वैश्विक हिंदू समझती हूं।

यह व्यक्तित्व और उनकी नैतिकता युवा भारतीयों और विदेशियों को उनकी ओर आकर्षित करती है।

यद्यपि 2014 से उनके पास कोई संविभाग नहीं है, स्वामी ने भाजपा के 2014 में निर्धारित सिद्धांतों और दृष्टिकोण के लिए अभियान जारी रखा है: कम कर और ब्याज दरें, किसानों के जीवन में सुधार और भारत की कृषि क्षमता का पूर्ण लाभ उठाना, काला धन वापस लाना और भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना, महिलाओं को सशक्त बनाना, भारत की सभ्यता विरासत और संस्कृति को पुनः जागृत करना, हिन्दुओं को एकजुट करना और जाति और भाषा के विभाजन को खत्म करना, शिक्षा पाठ्यक्रम पुनः स्थापित करना, नौकरशाही को अनवरोधित करना, रोजगार निर्माण के लिए नवाचार, प्रौद्योगिकी का महत्व, अर्थव्यवस्था और पर्यटन में सुधार के लिए सुझाव देना, न्यायपालिका में पारदर्शिता और शीघ्रपथ की वकालत करना और वैकल्पिक रूप से पाकिस्तान या सोनिया गांधी की आलोचना करना।

स्वामी को हम किसी खताई में नहीं डाल सकते परंतु इस लेख के लिए हम उनके व्यक्तिव का समावेश नीचे दिए गए रेखा-चित्र में करेंगे।

चित्र 1. Dr. Swamy described in a Venn diagram चित्र 1. Dr. Swamy described in a Venn diagram

तीन वृत्तों में से पहला व्यक्तित्व कहा जाएगा। स्वामी की प्रतिष्ठा प्रसिद्ध है, वे मुद्दों को लेकर निखालिस अवश्य है लेकिन आम तौर पर, वे वास्तव में सिर्फ लोकप्रिय भावनाओं को व्यक्त करते हैं और प्रासंगिक प्रशासन / नौकरशाही से विशिष्ट मुद्दे पर कार्य करने का आग्रह करते हैं। वह एक अपरिवर्तनीय देशभक्त, घुमक्कड वकील, अपराध का सफाया करनेवाले और बुद्धिमान है, वह धैर्यवान, कृपाशील और शिथिलीकृत है।  उन्हें अपने आप को साबित करने की आवश्यकता नहीं है, उनके विचार और सम्मान हमेशा सही साबित हुए है। 100% हिंदू होने के बावजूद उनके पास एक अपरंपरागत रूप से धर्मनिरपेक्ष परिवार है, उनका एक पारसी महिला रोक्सना से विवाह हुआ, उनकी दो बेटियां हैं, एक मुस्लिम से विवाहित है और उनके बहनोई यहूदी है; वह कुत्तों से प्यार करते है। यह व्यक्तित्व और उनकी नैतिकता युवा भारतीयों और विदेशियों को उनकी ओर आकर्षित करती है।

दूसरा वृत्त नैतिकता को दर्शाता है । डॉ स्वामी का जन्म एक सख्त ब्राह्मण परिवार में हुआ, उनके पिता सीताराम सुब्रमण्यम सख्त कांग्रेस सिद्धांतों के थे और “खादी उन्मुख” थे। सीताराम सुब्रमण्यम, भारत के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के गणितज्ञ और निदेशक भी थे, विचार की आजादी के वकील वह बहुत नैतिक थे; प्रधान मंत्री नेहरू के एक घनिष्ठ मित्र होने के बावजूद सीताराम नेहरू के सलाहकारों की गुणवत्ता से असहमति जताने की हिम्मत रखते थे। यह दर्शाता है कि स्वामी के शुरुवाती जीवन में पूछताछ और चुनौतीपूर्ण माहौल का कितना महत्व था। वे नैतिक रूप से आपराधिकता और अक्षमता के सख्त खिलाफ है, वह कानून के शासन में पारदर्शिता और मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते है। एक बार जब वह किसी अभियान से जुड़ जाते हैं तब वे पूर्णतः उसे सफल बनाने में लगे रहते हैं। राम भक्त होने के कारण, उनका आचरण धर्म और कर्म द्वारा संचालित है।

डॉ स्वामीजी की हिंदुत्व और आरएसएस की व्याख्या सम्मिलित है, उन्होंने मुझे बताया कि हिंदुत्व का मतलब हिंदुराष्ट्र है, मुझे लगता है कि उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म एक भारतीय की परिभाषित विशेषता है-उनकी आस्था या जातीयता कोई भी हो। आम डीएनए सिद्धांत एकीकरण रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए है, यदि हिंदु और मुस्लिम एक आम विरासत  के तहत जुड़ जाते हैं तो देश शांतिपूर्ण हो जाएगा। डॉ स्वामी और नरेंद्र मोदी दोनों ही आरंभ से इस बात से चिंतित थे कि जहां भी मुस्लिम अल्पसंख्यक है, वहां हिंदू बहुसंख्यक पीड़ित है, उदाहरणार्थ कश्मीर और केरल। स्वामी चाहते हैं कि सभी धर्मों में समानता लाई जाये, सभी धर्मों की महिलाओं को शिक्षा प्राप्त हो और सभी पाठशालाओं में केन्द्रीय शिक्षा समिति द्वारा अनुमोदित पाठ्यक्रम हो, फिर समान नागरिक संहिता लागू की जाए।

हावर्ड कार्यकाल

इनके विशाल अनुभव को हम तीसरे वृत्त में डालेंगे, यहां मैं कुछ 2014 की बैठकों से अपनी टिप्प्णीयों का उल्लेख करूँगी। सुब्रमण्यम स्वामी ने भारत के सांख्यिकीय संस्थान में अपना स्नातकोत्तर अध्ययन किया, विवाद में उनका पहला प्रयास पीसी महालानोबिस के लेखन और सिद्धांतों को फर्जी और चोरी के रूप में उजागर करना था; महालानोबिस ने उन्हें तर्कहीन रूप से सताया, उनका पेपर इतना व्यंग्यात्मक था कि वह चिंतित थे कि उन्हें अनुत्तीर्ण कर दिया जाएगा। उन्होंने इकोनॉमेट्रीका के लिए एक लेख लिखा – एक समाज और पत्रिका जो सैद्धांतिक, अनुभवजन्य, अमूर्त और लागू आर्थिक समस्याओं को लेकर कठोर दृष्टिकोण रखा है। यह आलेख हार्वर्ड में फैसले के लिए भेजा गया और स्वामी को पीएचडी के लिए हार्वर्ड में आमंत्रित किया गया। इस समय के दौरान उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता साइमन कुज़नेट्स के तहत अध्ययन किया जिससे उनमें यहूदी लोगों के प्रति आजीवन संबंध और सम्मान विकसित हुआ। हार्वर्ड के कार्यकाल के दौरान स्वामी ने विवाद की संतुष्टि की खोज की और इसमें बहुत कुशल भी बन गए। परिणाम स्वरूप उन्हें अमेरिकी आर्थिक समीक्षा के लिए जाने माने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री पॉल सैमुएलसन के साथ एक पेपर लिखने के अवसर से सम्मानित किया गया, 24 साल की उम्र में स्वामी हार्वर्ड में आर्थिक संकाय में पहले एशियाई बन गए।

गहरा विश्वासघात

1969 में वह दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चीनी अध्ययनों के प्राध्यापक पद के लिए अमर्त्य सेन के निमंत्रण पर हार्वर्ड से लौट आए, लेकिन यह अल्पकालिक था क्योंकि उनके परमाणु विचार और दक्षिणपंथी सोच उस समय के वामपन्थी राजनीतिक वातावरण में अनुकूल नहीं थे। स्वामी चीन की छात्रवृत्ति के लिए जाने जाते हैं, वह मंदारिन अच्छी तरह से जानते हैं, स्वामी ने घोषणा की कि उस समय चीन और भारत की संभावना बराबर थी। उन्होंने भारत विरोधी कहानियों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया, मुख्य रूप से इस बात को लेकर कि भारत एटम बम बनाने में सक्षम नहीं था; उन्होंने दावा किया कि एटम बम बनाने से नौकरियाँ उत्पन्न होगी और विकास होगा, उन्होंने कांग्रेस सरकार के सोवियत नियंत्रणों और सिद्धांतों को छोड़ने का प्रचार किया। उनकी योजना ने 10% की वृद्धि (3.5% नहीं) की भविष्यवाणी की, यह विदेशी ऋण के बिना संभव था। इन सभी विचारों ने उन्हें इंदिरा गांधी के समक्ष अलोकप्रिय बना दिया। नकली खबर अफवाहें फैलाई गई: स्वामी सोवियत द्वारा मत-आरोपित बौद्धिक या सीआईए द्वारा प्रत्यारोपण किये हुए जासूस थे! अमर्त्य सेन ने उन्हें हिंदू दक्षिणपंथी घोषित करके सार्वजनिक रूप से बदनाम किया और श्रीमती गांधी ने संसद में आरोप लगाया कि उनका स्वतंत्र उद्यम हैएकियन पुस्तक सांता क्लॉस द्वारा लिखी गई एक खतरनाक दस्तावेज थी और संकेत दिया कि उन्हें  अवांछित व्यक्ति माना जाएगा, आईआईटी ने उनका पद वापस ले लिया। स्वामी ने आईआईटी में गणित के प्राध्यापक की पद लिया।

आपातकालीन समय

आपातकाल में वह अपनी गर्भवती पत्नी और दो वर्षीय बेटी के साथ सड़कों पर थे। अमेरिका में निर्वासन और 22 वर्षीय लंबी अदालत का मामला शुरू हुआ, वे जीत गए और उन्हें कानूनी रूप से 1990 के दशक के अंत में आईआईटी में पुनः स्थापित कर दिया गया। कई भारतीय बुद्धिजीवी उनके साथ देखा जाने से डरते थे क्योंकि उससे समाजवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह हो सकता था, इस प्रकार उन्होनें अपने विशेष टकराव शैली में, शैक्षणिक समुदाय की जगह राजनीति का चयन किया।

वह जनता दल, जिसने इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर किया, के प्रवर्तक और संस्थापक थे, लेकिन स्वामी और जनता दल के लिए समस्याएं उत्पन्न हुईं, वाजपेयी के साथ टकराव जो पार्टी पसंदीदा थे, का मतलब था कि दल के वैचारिक संयोजनों के बीच घर्षण था। वाजपेयी की स्वामी से ईर्ष्या ने माहौल और बिगाड़ दिया, अनिवार्य रूप से उनके खिलाफ “सक्रिय उपाय” किए गए और विद्रोह अभियान द्वारा चोट पहुंचने वाले उद्योगपतियों ने दान बंद कर दिया, इस प्रकार निराधार जनता पार्टी विभाजित हुई; स्वामी बचे हुए पक्ष के अध्यक्ष बने रहे।

श्रीमती गांधी के अपमान ने उन्हें आरएसएस के लिए आकर्षक बनाया, उन्होंने इस संगति का इस्तेमाल अपने विचारों को सार्वजानिक करने के लिए किया। स्वामी और आरएसएस एक पारस्परिक रूप से उपयोगी साझेदारी थीं, आरएसएस के पास पहले कोई भी आर्थिक विशेषज्ञता नहीं थी और आरएसएस ने स्वामी को एक प्रमुख प्रख्यात प्राध्यापक के रूप में ध्यान आकर्षित करने के लिए एक आदर्श मंच प्रदान किया, आरएसएस ने उनके हिंदुत्व सिद्धांत को अपनाया जिसके अनुसार भारत अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। स्वामी हमेशा विश्वास करते थे कि आबादी एक शिक्षित अभिनव समुदाय में परिवर्तनीय थी।

जनसंघ वर्ष

इस दौरान स्वामी एक समस्या-समाधान करने वाले के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे- कुछ ने परेशान करने वाला कहा होगा- उन्होंने आईआईटी सीनेट की एक बैठक बुलाई और घोषणा की कि 84% संस्थान की आय-व्ययक शैक्षणिक समुदाय और शोध की जगह परियोजनाओं के निर्माण के लिए जा रहा था और अस्थायी कानून के माध्यम से शैक्षणिक रोजगार का शोषण किया जा रहा था। उन्होंने शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक अतिरिक्त व्यापार संघ बनाया जो तीन महीने के भीतर ही प्रमुख संघ बन गया। लेकिन एक प्रशासनिक कार्यवाही में प्रतिविस्फोटन हुआ और उन्होंने कुछ भ्रष्टाचार पाया जिसमें उन्होनें पाया कि सभागार निर्माण के खातों में विसंगति हुई है और इस भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए मजबूर हो गए।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रार्थना ने ऊपर दिए गए जाँच को पलट दिया, यूपी चुनावों के दौरान जनसंघ ने उनसे अधिक सीटें जोड़ने में मदद माँगी। आईआईटी में उन्होंने एक कैंपस कार्यक्रम “वोट प्रोफाइल विश्लेषण” चलाया जिसने 424 में से 220 सीटें पहुँचाना जिसको वे संभावित रूप से भ्रष्टाचार के बिना जीत सकते हैं। सीटों में 15 से 61 तक वृद्धि हुई, स्वामी नायक बन गए, जनसंघ/आरएसएस ने उन्हें राज्यसभा में पदोन्नति द्वारा पुरस्कृत किया।

इंदिरा गाँधी के साथ टकराव

अब इंदिरा गांधी की प्रतिद्वंद्विता के विपरीत श्री वाजपेयी उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण और मित्रवत थे। 1974 में राज्य की स्वामित्व वाली बीमा कंपनी के एक कर्मचारी ने कुछ सबूत दिए कि सोनिया गांधी (तब एक गृहिणी) चार राज्य-स्वामित्व वाली बीमा कंपनियों के लिए बीमा एजेंट थीं। सभी बीमाधारक प्रधान मंत्री कार्यालय के कर्मचारी थे और उन्होंने पीएमओ का व्यावसायिक पता दिया था। भारतीय कानून के अनुसार कोई भी विदेशी बीमा एजेंट नहीं हो सकता है और एक निजी सरकारी पते का व्यावसायिक पता होना अवैध था।

जब स्वामी ने संसद में इस मुद्दे को उठाया तो उत्तेजना हुई, उनके निहित नैतिकता ने आपराधिक शिकायत उठाई जिसके खिलाफ इंदिरा गांधी ने यह बयान दिया कि सोनिया ने इस्तीफा दे दिया था और किसी भी अवैधता से अनजान थी। स्वामी अब एक दक्षिणपंथी राष्ट्रीय नायक बन गए थे और अन्याय के खिलाफ समस्या निवारक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा की पुष्टि हुई थी।

1980 में सौदों के लिए दलाली स्वीकार करना दिल्ली में राजनीतिक आदर्श बन गया, जो आज तक जारी राजनीतिक परंपरा है। भ्रष्टाचार के अपने अचूक दृष्टिकोण की वजह से स्वामी ने देखा कि दल समय के साथ सिकुड़ रहा है।

स्वामी के पास कोई कानून की उपाधि नहीं है, सार्वजनिक हित उनकी प्रेरणा हैं; 1988 में उन्होंने रामकृष्ण हेगड़े, कर्नाटक के मुख्यमंत्री, पर फोन  टैपिंग और विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग, ताकि गलत जमीन आवंटित की जा सके, करने का आरोप लगाया जिसमें दोषसिद्धि प्राप्त की।

चंद्रशेखर सरकार

1990 में स्वामी ने तत्कालीन मौजूदा वीपी सिंह गठबंधन को हटाया। जनता पार्टी ने राजीव गांधी का समर्थन किया और नवंबर 1990 में एक नई गठबंधन सरकार की स्थापना की। वह वाणिज्य और कानून और न्याय के दो शक्तिशाली संविभाग के साथ मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री बने। उन्होंने तब प्रधान मंत्री चंद्रशेखर को भारत के 5 एयरफील्ड जगहों की अनुमति देकर गैर-संरेखण की भारत की विदेश नीति में परिवर्तन करने के लिए राजी करवाया, अमेरिका ने खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत में सद्दाम हुसैन से लड़ने के लिए सऊदी अरब के रास्ते में अपने विमान यहाँ उतारे और इसके लिए जॉर्ज बुश सीनियर ने व्यक्तिगत रूप से उनकी प्रशंसा की थी।

स्वामी ने फिर बाजार-अनुकूल आर्थिक सुधार के लिए खाका तैयार किया और सोवियत कमांड आर्थिक मॉडल को खत्म करने का प्रस्ताव देने के लिए उन्हें विश्वव्यापी प्रशंसा प्राप्त हुई। इस खाके को उत्तराधिकारी नरसिम्हा राव सरकार ने लागू किया और जीडीपी में उच्च वृद्धि दर के रास्ते पर भारतीय अर्थव्यवस्था को  स्थापित किया।

राव सरकार में भूमिका

डॉ स्वामी को मंत्रिमंडल पद में राव सरकार में शामिल किया गया जिसमें उन्हें विश्व व्यापार संगठन के मुद्दों से निपटना था, उन्होंने सोवियत प्रभाव को समाप्त कर दिया; उन्होंने फरवरी 1991 में पहली बार व्यापार संधि और प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के लिए चीन में पहल की।

1998 में, उनकी जनता दल ने भाजपा, एक प्रमुख तमिलनाडु पार्टी और अन्य लोगों के साथ गठबंधन किया, ताकि श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में हरा सके। लेकिन पूर्व शत्रुता के कारण, वाजपेयी ने गठबंधन सहयोगियों के फैसले के बावजूद वित्त मंत्री बनने से उन्हें रोक दिया। एक वर्ष के भीतर, डॉ स्वामी ने 1999 में वाजपेयी पर बदला लेने के लिए एक प्रमुख क्षेत्रीय साथी को गठबंधन से अलग करके सरकार को गिरा दिया।

भारत में रहने के बावजूद, डॉ स्वामी ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाना जारी रखा, क्योंकि वे अपने बौद्धिक परिशुद्धता को संभाल कर रखना चाहते थे, उन्होंने गर्मी के दौरान 30 से अधिक सालों तक एक छमाही बिताई। लेकिन रहस्यमय रूप से 2012 में हार्वर्ड ने धार्मिक अध्ययन प्रोफेसरों द्वारा प्रेरित गति पर विश्वविद्यालय संकाय बैठक में बहुमत द्वारा उनके पाठ्यक्रम हटा दिए। डॉ स्वामी ने एक भारतीय अख़बार में एक ओप-एड लेख लिखा था, जो मुस्लिमों के लिए अपमानजनक था, इस लेख में कुछ आनुवांशिक शोध दोहराते हुए मुसलमानों और हिंदुओं ने एक ही पूर्वज डीएनए होने को साझा किया गया, इससे उदार वामपंथी शिक्षाविदों में उत्तेजना हुई। लेकिन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ एक रात्रिभोज की बैठक ने इस धारणा को बदल दिया कि डॉ स्वामी, जो हिंदुत्व के पंथ नायक बन गए थे, अमेरिका में व्यक्तिगत रूप से अवांछित व्यक्ति थे।

2008 और 2012 के बीच, वैचारिक सिद्धांतों से प्रेरित, वह इस आधार पर 9 दूरसंचार कंपनियों के अनुज्ञप्ति रद्द करवाने में सफल रहे कि स्पेक्ट्रम एक राष्ट्रीय संसाधन है और इसलिए सार्वजनिक संपत्ति है। उन्होंने साबित किया कि अगर बाजार मूल्य पर अनुज्ञप्ति जारी किए गए होते तो सरकारी राजस्व एक वर्ष के राष्ट्र के व्यक्तिगत आयकर के बराबर होता। अगर इसे सालाना की इजाजत दी गई तो “मौजूदा बेवकूफ नेहरूवादी योजनाओं”, जिससे किसी को भी लाभ नहीं पहुंचता, के बजाय राष्ट्र को भारी राजस्व मिलेगा।

2014 रणनीतिक कार्य समिति

2014 में स्वामी ने रणनीतिक कार्य समिति की अध्यक्षता की जिसने नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान की योजना बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज राज्यसभा के तीसरे बार सदस्य होते हुए भी उनके पास कोई मंत्रिस्तरीय पद नहीं है, परंतु स्वामी अभी भी भाजपा के 2014 के घोषणापत्र पर देशभर में प्रचार कर रहे हैं; उसमें जो सब कहा गया है वह कर रहे हैं, जहां तक वह प्रतिज्ञा कर सकते हैं लेकिन सबकुछ लागू करने के अधिकार के अभाव में। यहां तीन मंडलियां आती हैं, उन्हें वेन आरेख में शामिल करें, और जहां वृत्त मिलते हैं वहीं मनुष्य और घोषणापत्र की कई नींव के बीच सही
संबंध है।

अपने एशियाई पड़ोस और इज़राइल से चीन एवँ सिलिकॉन वैली से लंदन तक उनकी प्रतिष्ठा दर्शाती है कि वह वैश्विक हिंदू कैसे है। स्वामी के विराट दृढ़ संकल्प उनके डीएनए में हैं, उनके पास वित्त मंत्री के लिए प्रमाण पत्र हैं लेकिन भाजपा ने कभी भी इस पर विचार नहीं किया।

2019 के चुनाव से पहले, मुरली मनोहर जोशी द्वारा लिखे गए घोषणापत्र के प्रस्तावना को दोबारा पढ़ने की आवश्यकता है, क्या सरकार पर भरोसा पुनः स्थापित किया गया है?

ध्यान दें:
1. यहां व्यक्त विचार लेखक के हैं और पी गुरुस के विचारों का जरूरी प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।

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