संघ प्रमुख की “नसीहत” के बाद सरकार के काम-काज में आई कुछ “जान”

आरएसएस प्रमुख की अपील पर नरेंद्र मोदी सरकार की सकारात्मक और शीघ्र कार्रवाई निश्चित रूप से बड़ी संख्या में लोगों की मदद करेगी।

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वित्त मंत्री की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद ने प्रक्रियात्मक कठिनाइयों को कम करने तथा लघु-मध्यम दर्जे के उद्योगों (SMEs) पर कर का बोझ कम करने के लिए कईं कदम उठाए हैं।

हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की छोटे व्यवसायों को सहायता प्रदान करने की अपील पर नरेन्द्र मोदी सरकार की सकारात्मक और त्वरित कार्रवाई निश्चित रूप से बड़ी संख्या में लोगों की मदद करेगी। परन्तु यह कार्रवाई कुछ अहम सवाल भी उठाती है : आखिर क्यों आरएसएस प्रमुख के हस्तक्षेप की नौबत आई ? क्या वित्त मंत्रालय को छोटे और मध्यम उद्यमों के प्रति कोई संवेदनशीलता और चिंता नहीं थी? वित्त मंत्री अरुण जेटली और अन्य अधिकारियों द्वारा जीएसटी कार्यान्वयन के इंतज़ामों के बारे में किये गए बड़े-बड़े दावों का क्या हुआ?

जीएसटी की वर्तमान रचना योजना के अंतर्गत तीन प्रकार के करदाता हैं: ट्रेडिंग कम्पनियाँ (1% कर का भुगतान); विनिर्माण कंपनियाँ (2%); और रेस्तरां (5%)

हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा उठाये गए कदम किसी आत्मनिरीक्षण, घटे हुए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आंकड़े, निर्यात में गिरावट, एसएमई क्षेत्र की चिल्लाहट या किसी आंतरिक चर्चा का नतीजा नहीं है। बल्कि यह भागवत के “दशहरा-संबोधन” का ही असर है जिसने सरकार को जल्दी कदम उठाने को विवश किया। “आर्थिक व्यवस्था को सुधारने और चुस्त दुरुस्त करते समय, हालांकि कुछ झटकों और अस्थिरता की उम्मीद है, लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस क्षेत्र (एसएमई) को न्यूनतम कठिनाई आये और अंततः अधिकतम ताकत मिलनी चाहिए,” भागवत ने अपने भाषण में कहा था।

सरकार ने त्वरित कार्रवाई की। वित्त मंत्री की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद ने शुक्रवार को नई कर-प्रणाली के निष्पादन की समीक्षा के लिए बैठक की तथा प्रक्रियागत कठिनाइयों के साथ-साथ करों के बोझ को कम करने के लिए कईं कदमों की घोषणा की। इसलिए, अब छोटे व्यवसायों को मासिक रिटर्न की बजाय तिमाही आधार पर टैक्स रिटर्न दाखिल करना होगा जो कि पहले प्रावधान रखा गया था।

इसके अलावा, रचना योजना की पात्रता 75 लाख (कुछ राज्यों में कम) से बढ़ाकर 1 करोड़ रूपये कर दी गई है। एक आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, यह योजना “छोटे करदाताओं के लिए कर-वसूली का एक वैकल्पिक तरीका है … रचना योजना का उद्देश्य सादगी लाना और छोटे करदाताओं के लिए अनुपालन लागत को कम करना है। इसके अलावा, यह वैकल्पिक है … ”

जीएसटी की वर्तमान रचना योजना के अंतर्गत तीन प्रकार के करदाता हैं: ट्रेडिंग कम्पनियाँ (1% कर का भुगतान); विनिर्माण कंपनियाँ (2%); और रेस्तरां (5%)

वित्त मंत्रालय ने कुछ वस्तुओं की टैक्स दरों में भी कमी की है, उदाहरण के लिए कुछ स्टेशनरी वस्तुओं और डीजल इंजन के पुर्ज़ों पर 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत की दर की गई है। कटे हुए सूखे आमों, बिना ब्रांड की नमकीन और रोटी/चपाती सहित 27 वस्तुओं के रूप में अब पहले से कम दर होगी।

मोदी ने बहुत अधिक गरीब लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी पार्टी के मुख्य समर्थकों को छोड़ दिया है।

निर्यातकों के कार्यशील पूंजी संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए सरकार ने ई-पर्स (E-wallets) कार्यक्रम शुरू किया है। राष्ट्रीय अग्रिम धनवापसी राशि प्रत्येक वाले प्रत्येक निर्यातक को साथ ई-वॉलेट मिलेगा। ई-वॉलेट
1 अप्रैल, 2018 से लागू किया जाएगा, तब तक वे जीएसटी नाममात्र 0.1 प्रतिशत की दर से दायर कर सकते हैं, वित्त मंत्री ने घोषणा की।

उम्मीद की जा सकती है कि सरकार द्वारा घोषित किए गए उपायों से एसएमई क्षेत्र को कुछ राहत मिलेगी, इस क्षेत्र ने जो कि मोदी शासन के कठोर कदमों की दोहरी मार झेली है, उनमें से सबसे ज्यादा “विमुद्रीकरण” और फिर “जीएसटी लागू करने का अनाड़ीपूर्ण ढँग। आरएसएस प्रमुख का भाजपा के पारंपरिक समर्थकों यानि छोटे व्यापारियों की तरफ से हस्तक्षेप करना इस बात को उजागर करता है कि कहीं ना कहीं संघ और सत्तारूढ़ दल के बीच तालमेल का अभाव है।

लेखक श्री रविशंकर कपूर पहले भी लिख चुके हैं कि पूरी दुनिया में ना सही लेकिन भाजपा देश की जरूर इकलौती ऐसी पार्टी है जो अपने ही “समर्थक-वर्गों’ का उत्पीड़न करती है, चाहे दुकानदार-वर्ग हो या वेतनभोगी-वर्ग। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उदारवादियों तथा मुसलमानों को खुश करने की कोशिश करते हुए अपने स्वयं के समर्थक-वर्ग पर कम ध्यान दिया; मोदी ने भी अत्यंत गरीब लोगों के समर्थन हासिल करने के चक्कर में अपनी पार्टी के मुख्य समर्थकों का दामन छोड़ दिया है। जैसे कि मध्यम-वर्गीय भारतियों और गरीबों के हितों में किसी प्रकार का टकराव है।

मोदी-व्यवस्था जितना भी नेहरूवादी समाजवादी होने का दावा करे, लेकिन सत्य यह है कि यह अभी भी समाजवाद के प्रमुख सिद्धांतों पर विश्वास रखती है और उनमें से एक है “वर्ग-संघर्ष सिद्धांत”। मोदी और उसके सहयोगी समझ नहीं पा रहे हैं कि समाजवाद की विफलता अब एक अच्छी तरह से स्थापित तथ्य है; और सब पेशेवर क्रांतिकारियों द्वारा भी यह सत्य स्वीकार किया जा चुका है। जितनी जल्दी मोदी और उनके सहयोगी इस समाजवादी सोच से छुटकारा पा लेंगे यह उनके लिए और राष्ट्र के लिए उतना ही बेहतर होगा क्योंकि यह सोच सिर्फ जी एस टी लागू करने के तरीके जैसी “मूर्खता” को बढ़ावा देती है।


Note:
1. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

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