भारत कोविड-19 टीकाकरण की भारी कमी और अभियान के पटरी से उतरने का सामना कर रहा है। शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने टीके की आपूर्ति में कमी के कारण 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण शिविरों को बंद करने की घोषणा कर दी। कर्नाटक ने 12 मई को बंद होने के बाद शनिवार को टीकाकरण फिर से शुरू कर दिया। कई मुख्यमंत्री मौजूदा टीकों की कमी की चिंता व्यक्त कर रहे हैं और अस्थायी रूप से 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण शिविरों को रोक रहे हैं। ऐसा क्यों हुआ? यह कुप्रबंधन और भारत, जहाँ 136 करोड़ से अधिक की आबादी और उसमें भी 95 करोड़ से अधिक 18 वर्ष से ऊपर के लोग हैं, में वैक्सीन उत्पादन की योजना की कमी के कारण है।
आज (22 मई, 2021) तक, भारत ने 18.8 करोड़ वैक्सीन की खुराक लगाई हैं और इसमें से 4.13 करोड़ लोगों को 2 खुराक का पूर्ण टीकाकरण मिला है। 4.13 करोड़ भारत की आबादी का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा है। भारत द्वारा 18-44 आयु वर्ग के लिए टीकाकरण शुरू किये जाने के बाद, टीकों की अनुपलब्धता पर कई शिकायतें आना शुरू हुईं और यहां तक कि पंजीकरण वेबसाइट कोविन भी पंजीकरण प्रदान करने के अलावा टीकाकरण के लिए समय निर्धारित नहीं कर सकी। कई लोगों को आवंटित स्लॉट के रद्द होने के संदेश भी मिले।
भारत सरकार को भारत में अन्य फर्मों को जनवरी 2021 में ही भारत के अपने भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के साथ गठजोड़ करने की अनुमति दे देनी चाहिए थी।
इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय पहले ही कह चुका है कि तीसरी लहर से पहले 12 साल से ऊपर के बच्चों का टीकाकरण किया जाना चाहिए। यह अन्य 20 करोड़ लोगों को टीकाकरण के दायरे में जोड़ता है। भारत कब सक्षम होगा?
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यह सब अराजकता क्यों? सीधा सा सच यह है कि भारत टीकों की भारी कमी का सामना कर रहा है। भारत ने केवल दो कंपनियों, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) और भारत बायोटेक को ही मंजूरी दी। एसआईआई यूके स्थित ऑक्सफोर्ड एस्टा जेनेका के भारतीय संस्करण कोविशील्ड का उत्पादन कर रहा है और कंपनी के सीईओ अदार पूनावाला ने भारत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन में भारी कमी के बारे में कई बार बात की है। एसआईआई लगभग 85% उत्पादन और भारत बायोटेक का कोवैक्सीन 15% की आपूर्ति कर रहा था। अब भारत में कई फर्मों को भारत बायोटेक से गठजोड़ के साथ कोवैक्सिन का उत्पादन करने की अनुमति मिली है और भारत सरकार ने अब स्पुतनिक, फाइजर, जेएंडजे आदि के आयात की अनुमति दी है। इन आयातित टीकों को जनता के लिए कब लाया जाएगा, यह एक स्पष्ट प्रश्न है।
कई राज्यों ने वैश्विक निविदाएं (टेंडर) आमंत्रित करना भी शुरू कर दिया है। ये प्रक्रियाएं जुलाई या अगस्त तक ही तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचेंगी। दरअसल, भारत सरकार को भारत में अन्य फर्मों को जनवरी 2021 में ही भारत के अपने भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के साथ गठजोड़ करने की अनुमति दे देनी चाहिए थी। चूंकि भारत बायोटेक पूरी तरह से भारतीय कंपनी है, इसलिए कोई पेटेंट मुद्दा नहीं आता, अगर भारत सरकार अपनी ताकत या शक्तियों का इस्तेमाल करती। लेकिन वैसा नहीं हुआ। अब अप्रैल के अंत में केवल कुछ फर्मों को, जो कि महाराष्ट्र सरकार के हाफकाइन इंस्टीट्यूट से शुरू हुई, कोवैक्सिन के उत्पादन की मंजूरी मिली। इससे पता चलता है कि मोदी सरकार ने इस पहलू पर निर्णय में चार महीने से अधिक की देरी की।
केंद्र सरकार के पास वैक्सीन उत्पादन इकाइयाँ भी हैं। आज तक केंद्र सरकार की किसी भी वैक्सीन कंपनियों ने महाराष्ट्र सरकार के हाफकाइन इंस्टीट्यूट की तरह कोवैक्सिन उत्पादन की प्रक्रिया में नहीं लगी। क्या नौकरशाही एक बार फिर अपनी आश्चर्यजनक अयोग्यता दिखा रही है?
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अब 86 देशों को 6.8 करोड़ वैक्सीन खुराक निर्यात करने के अपने धूमधाम से पीआर शो (प्रचार) के लिए चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, जबकि उस समय तक भारत ने मुश्किल से सिर्फ एक प्रतिशत आबादी का टीकाकरण किया था। ये चीजें तब होती हैं जब नौकरशाही अपने राजनीतिक आकाओं को ठीक से सलाह नहीं देती है, या जब राजनीतिक स्वामी अपने आसपास की संदिग्ध मंडली की प्रशंसा के बीच छुपे संदेश को समझने में विफल रहते हैं।
भारत अभी भी वेबसाइट (कोविन) पंजीकरण के माध्यम से टीकाकरण कर रहा है। यह वेबसाइट पंजीकरण ग्रामीण क्षेत्रों या गरीब लोगों में अप्रभावी है। सरकार के अपने दावे के अनुसार उन्होंने 85 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन वितरित किया है। क्या सरकार गरीब लोगों से वेबसाइट या स्मार्ट फोन के माध्यम से पंजीकरण करने की उम्मीद कर रही है? टीकाकरण केन्द्रों पर आने के लिए क्षेत्रवार टीकाकरण शिविर और लोगों को शिक्षित करने का प्रयास होना चाहिए।
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