दिल्ली कोर्ट ने सबूतों के अभाव में शशि थरूर को सभी आरोपों से बरी किया
कांग्रेस सांसद शशि थरूर को बुधवार को उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमयी मौत के मामले में निचली अदालत द्वारा बरी किया जाना इस बात का कुरूप स्मरण दिलाता है कि कैसे हाई प्रोफाइल आपराधिक मामलों की संदिग्ध रूप से जांच की जाती है, मुकदमा चलाया जाता है और अंततः उन मामलों को दफना दिया जाता है। इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, याद रखें, दिल्ली पुलिस पीएम के भरोसेमंद नम्बर दो, अमित शाह के अधीन काम करती है। यह मामला इसलिए ढह गया क्योंकि दिल्ली पुलिस ने इसे कमजोर कर दिया (उस समय राजनाथ सिंह गृहमंत्री थे) और अभियोजन पक्ष को असहाय कर दिया; विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए न्याय को कैसे बर्बाद कर दिया जाता है, इसका एक उत्कृष्ट मामला है। आइए देखते हैं सेवन स्टार होटल लीला में सुनंदा की रहस्यमयी मौत के घटनाक्रम।
सुनंदा की मृत्यु के तीन दिन पहले, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और सुनंदा एक पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के साथ थरूर के व्यभिचारी संबंधों को लेकर सार्वजनिक रूप से झगड़ रहे थे। लड़ाई एयर इंडिया की दिल्ली जाने वाली एक फ्लाइट में शुरू हुई जब सुनंदा ने अपने पति के सोने के दौरान उनके मोबाइल पर एक नज़र डाली और थरूर और मेहर के बीच चैट को पढ़कर अपना आपा खो बैठी। वार्तालाप कथित तौर पर बेहद रोमांटिक था और जो मिल्स एंड बून एवं बारबरा कार्टलैंड जैसे फ्रैन्चाइज़ को भी शर्मसार कर देता कि कैसे उनकी विस्तीर्ण किताबें भी इसके सामने फीके पड़ गए।
विशेष न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने आभासी (ऑन लाइन) सुनवाई में पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमयी मौत के मामले में एकमात्र आरोपी शशि थरूर को बरी कर दिया। कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है
जब फ्लाइट दिल्ली में उतरी, तो सुनंदा ने अपने पति के साथ जाने से इनकार कर दिया और सीधे अपने सहायक नारायण के साथ होटल लीला पहुँच गई। फिर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से पति-पत्नी में झगड़ा हुआ और सुनंदा ने घोषणा की कि वह क्रिकेट आईपीएल में अपने पति के गंदे कारोबार का पर्दाफाश करेगी। क्रिकेट जगत के गंदे खेलों पर साक्षात्कार के लिए उन्होंने चार पत्रकारों से संपर्क किया। और 24 घंटे के भीतर सुनंदा मृत पाई गई। 17 जनवरी 2014 का दिन था, और यूपीए अभी भी सत्ता पर काबिज थी। पीगुरूज ने सुनंदा द्वारा मृत्यु से कुछ घंटे पहले संपर्क किए गए पत्रकारों के विवरण की सूचना दी थी।[1]
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यह भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी थे जिन्होंने मार्च 2014 में ट्विटर पर घोषणा की थी कि सुनंदा की मौत जहर से हुई थी, जिसकी बाद में अक्टूबर 2014 तक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने पुष्टि की थी। लेकिन नवनिर्वाचित नरेंद्र मोदी सरकार ने भी थरूर के साथ नरमी बरती, और मोदी ने थरूर को स्वच्छ भारत मिशन का राजदूत तक घोषित कर दिया। इसने दिल्ली पुलिस को किस तरह का संदेश दिया, यह अब स्पष्ट हो गया है – एक कमजोर मामला बनाओ, अदालत में फटकार खाओ और आगे बढ़ो?
पीएम मोदी ने ऐसे कई संदिग्ध कारनामें किए हैं – 2जी फैसले से कुछ दिन पहले एम करुणानिधि से मुलाकात और तत्कालीन वित्त मंत्री, स्वर्गीय अरुण जेटली ने एक सजायाफ्ता जे जयललिता से मुलाकात की, ये प्रमुख मामले थे। लेकिन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की रिपोर्ट ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के हर कदम पर दिल्ली पुलिस के असहयोग को उजागर किया। हालांकि थरूर से तीन बार पूछताछ की गई, लेकिन उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया।
यहां तक कि भारत के प्रमुख संस्थान एम्स की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, जिसमें सुनंदा के शरीर पर स्पष्ट रूप से 12 चोट के निशान और जहर की मौजूदगी की सूचना दर्ज की गई थी, के साथ भी, दिल्ली पुलिस चुप रही और यहां तक कि विसरा के नमूने (दो साल बाद खराब हो गए थे) को यूएसए की एफबीआई लैब में भेजकर हर तरह की गंदी चाल चली।
थरूर के खिलाफ कार्रवाई के लिए अकेले एम्स की रिपोर्ट ही काफी थी। फिर मोदी सरकार के तहत दिल्ली पुलिस ने आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी क्यों की?[2]
2018 की शुरुआत में, सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप-पत्र दाखिल न किये जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने एक अजीबो-गरीब फैसले में स्वामी की याचिका खारिज कर दी। फिर बीजेपी नेता सर्वोच्च न्यायालय गए और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया गया।
यहीं पर और भी शरारतें की गईं। सर्वोच्च न्यायालय के नोटिस का जवाब देने से पहले, दिल्ली पुलिस ने अचानक मई 2018 में शशि थरूर को एकमात्र आरोपी बनाते हुए आरोप-पत्र दायर किया, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दायर नहीं किया (हालांकि हत्या के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी) और केवल आत्महत्या के लिए उकसाने और घरेलू हिंसा के आरोप लगाए गए।
आरोप-पत्र पर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन न्यायाधीश ने कई बार एम्स की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बारे में पूछा जिसमें सुनंदा के शरीर पर चोट के 12 निशान दिख रहे थे और दिल्ली पुलिस हर बार असंतोषपूर्ण बहाने बनाती रही। मुकदमे के शुरुआती चरणों के दौरान, सुब्रमण्यम स्वामी ने पहली टीम की जांच (तत्कालीन संयुक्त निदेशक विवेक गोगिया के अधीन, जो जेसिका लाल मामले से छेड़छाड़ करने के आरोप में पकड़े गए थे) की कमियों पर दिल्ली पुलिस सतर्कता विभाग की रिपोर्ट की एक प्रति पेश की। लेकिन दिल्ली पुलिस और थरूर के वकीलों ने एक बाहरी व्यक्ति (स्वामी) की दलीलों पर आपत्ति जताई।
बाद में, अगस्त 2019 में, दिल्ली पुलिस ने मौखिक रूप से हत्या के आरोपों को जोड़ने के लिए तर्क दिया (मौखिक रूप से क्यों?)। इस हाई-प्रोफाइल मामले को छेड़छाड़ करने की मूर्खता या लापरवाही या उद्देश्यपूर्ण कदम को देखें। और अब, विशेष न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने आभासी (ऑन लाइन) सुनवाई में पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमयी मौत के मामले में एकमात्र आरोपी शशि थरूर को बरी कर दिया। कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के आदेश को सार्वजनिक डोमेन में अपलोड नहीं किया जा सकता है क्योंकि आरोपों में घरेलू हिंसा के आरोप (धारा 498 ए) शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर धारा 498ए में पति-पत्नी के झगड़ों से जुड़े मामलों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
क्या मोदी सरकार के तहत दिल्ली पुलिस, गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में, जिसने एक कमजोर आरोप पत्र दायर किया, उच्च न्यायालय में अपील करेगी? यदि हां, तो यह निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) के फैसले के 90 दिनों के भीतर किया जाना है।
क्या भारत की राजधानी में स्थित एक सात सितारा होटल में रहस्यमय तरीके से मृत पाई गई सुनंदा को न्याय मिलेगा? इसका जवाब सिर्फ पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ही दे सकते हैं।
संदर्भ:
[1] Why haven’t Barkha and Sagarika said anything about their communications with Sunanda? – May 10, 2017, PGurus.com
[2] Shashi Tharoor tried all tricks to fool AIIMS doctors during the post-mortem of Sunanda – May 28, 2017, PGurus.com
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