भ्रष्ट लेफ्ट-लिब्राटी दंगों और यूएपीए के आरोपों में पकड़े गए नक्सली और जिहादियों के साथ अर्नब गोस्वामी की जमानत की तुलना क्यों कर रहे हैं?

वाम-उदारवादी यूएपीए के तहत जेल में बंद नक्सलियों से अर्नब की जमानत की समानता दर्शाने की कोशिश कर हाथ की सफाई दिखा रहे हैं!

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वाम-उदारवादी यूएपीए के तहत जेल में बंद नक्सलियों से अर्नब की जमानत की समानता दर्शाने की कोशिश कर हाथ की सफाई दिखा रहे हैं!
वाम-उदारवादी यूएपीए के तहत जेल में बंद नक्सलियों से अर्नब की जमानत की समानता दर्शाने की कोशिश कर हाथ की सफाई दिखा रहे हैं!

लेफ्ट लिब्राटी (वाम-उदारवादी) [एलएल], वामपंथी झुकाव और उदारवादियों का एक मिश्रण सफेद झूठ बोलने में विशेषज्ञ है। नवीनतम मामला है रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्नब गोस्वामी को जल्दी जमानत मिलने और गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम [यूएपीए] के तहत और आतंकवाद संबंधित मामलों में आरोपित नक्सलियों, माओवादिओं और जिहादियों को जमानत न मिलने या उसमें देरी होने की तुलना आपस में करने के बारे में झूठ फैलाने का। जैसे ही न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अर्नब गोस्वामी के व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देने के लिए अंतरिम जमानत दी, वामपंथी-पक्ष और तथाकथित उदारवादी विचारों की भ्रष्ट मंडली काम पर लग गयी, उन्होंने नाराजगी व्यक्त की और जेल में बंद नक्सल और जिहादी नेताओं के मामलों की समानता अर्नब के मामले से करते नजर आये।

अर्नब पर क्या आरोप है?

अर्नब गोस्वामी पर एक व्यक्ति की आत्महत्या से जुड़े मामले में रिपब्लिक टीवी के डिजाइन विभाग से जुड़े व्यक्ति को भुगतान न करने और उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। पूरा मामला यही है, यह एक ज्ञात तथ्य है कि महाराष्ट्र पुलिस अर्नब को गिरफ्तार करने के मामले में अति सक्रिय थी, क्योंकि अर्नब राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार से भिड़ गए हैं। भ्रष्ट लेफ्ट लिब्राटी मंडली ने आज तक यह नहीं पूछा कि दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर को कभी गिरफ्तार क्यों नहीं किया, जो अपनी पत्नी सुनंदा की रहस्यमयी मौत में इसी तरह के आरोप का सामना कर रहे हैं?

सिद्दीक कप्पन द्वारा जमानत के लिए आवेदन करने के बजाय, चतुराई से पत्रकार संघ (केयूडब्ल्यूजे) का अपनी गिरफ्तारी के अगले दिन 6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका के लिए इस्तेमाल किया गया था।

एलएल शैतानी

उच्च न्यायालय में अंतरिम जमानत की याचिका खारिज होने के बाद अर्नब ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। लेकिन वामपंथी बदमाश अब नक्सलियों, माओवादियों और जिहादी तत्वों को दंगा, राजद्रोह जैसे गंभीर अपराधों के आरोपों में जमानत मिलने में देरी के साथ इस मामले को मिला रहे हैं। ये लोग खुद से जुड़े कुछ मामलों में त्वरित न्याय के बारे में चुप हैं। प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण, जो खुद इस मंडली का हिस्सा हैं, ने भी शीर्ष न्यायालय से सीधे न्याय पाने में ऐसे विशेषाधिकार का आनंद लिया था।

इस खबर को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े।

सोमवार (16 नवंबर) को भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने केरल स्थित पत्रकार संघ द्वारा एक पत्रकार सिद्दीक कप्पन (पीएफआई की जिहादी गतिविधियों में संलिप्त) के लिए उपाय प्राप्त करने की सीधी याचिका पर नाराजगी व्यक्त की। उन्हें 5 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अन्य तीन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) सहयोगियों के साथ यूएपीए के आरोपों में गिरफ्तार किया था। पीगुरूज ने पीएफआई के साथ सिद्दीक कप्पन के करीबी संबंध की लेख प्रकाशित किया था और यह एक ज्ञात तथ्य है कि वह दिल्ली में पीएफआई के कार्यालय सचिव थे[1]

चतुर या अजीब? जमानत के लिए आवेदन करने के लिए कप्पन ने केयूडब्ल्यूज का उपयोग किया!

सिद्दीक कप्पन द्वारा जमानत के लिए आवेदन करने के बजाय, चतुराई से पत्रकार संघ (केयूडब्ल्यूजे) का अपनी गिरफ्तारी के अगले दिन 6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका के लिए इस्तेमाल किया गया था। शीर्ष अदालत ने उन्हें पहले उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था। लेकिन आज तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है और मामले को 20 नवंबर तक टाल दिया है। पीएफआई के एक जाने माने कार्यकर्ता कप्पन ने पिछले 45 दिनों से जमानत के लिए आवेदन क्यों नहीं किया है? 6 अक्टूबर को शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया? मुख्य न्यायाधीश ने वकील कपिल सिब्बल से भी पूछा कि उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया…सिब्बल के पास कोई ठोस जवाब नहीं था। सिब्बल ने पहले पीएफआई द्वारा समर्थित एक ‘लव जिहाद’ मामले का प्रतिनिधित्व किया था और उन्हें फीस के रूप में 77 लाख रुपये मिले थे। इस मंडली के वकील दुष्यंत दवे को 11 लाख रुपये और इंदिरा जयसिंग को इस मामले में पीएफआई से 4 लाख रुपये मिले। ये शुल्क विवरण पीएफआई पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में पता चला था। अब सिद्दीक कप्पन के मामले में, सिब्बल ने केयूडब्ल्यूजे नाम वाले पत्रकार संघ का प्रतिनिधित्व किया है। इसलिए हम यह मान सकते हैं कि कौन सिब्बल को भुगतान कर रहा है, जो भारत के सबसे महंगे वकीलों में से एक हैं और एक पूर्व कानून मंत्री भी[2]

नक्सल मामला अर्नब के मामले के समान नहीं है!

भ्रष्ट मंडली और उनके सहयोगी पुणे में रचे गए दंगों के लिए पकड़े गए सुभाष भारद्वाज, वरवारा राव, स्टेन स्वामी, गौतम नवलखा आदि जैसे नक्सलियों की, अर्नब गोस्वामी को मिली ज़मानत से समानता दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली दंगों के लिए जेल में बंद ताहिर हुसैन, उमर खालिद, शरजील इमाम आदि को जेल में डालने की समानता करने में भी इन लोगों को कोई शर्म नहीं है। वे इन दोनों की बराबरी करने की पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन असफल रहेंगे। सिर्फ आने वाले दिनों में काफी शोर होने की उम्मीद के अलावा कुछ नहीं होगा।

संदर्भ:

[1] यूपी पुलिस ने पत्रकारिता की आड़ में काम करने वाले पीएफआई के कार्यालयी सचिव को पकड़ाOct 6, 2020, hindi.pgurus.com

[2] I got Rs 77 lakh from PFI as Hadiya case fee: SibalJan 27, 2020, Outlook

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