सिपाही वफ़ा करके तन्हा रह गए,
कमिश्नर दगा दे गया।
वकीलों ने शरीर,
IPS ने मनोबल ही तोड दिया।
पुलिस अफसरों की नजर में अपने मातहतों का मूल्य सिर्फ हुक्म बजाने वाले गुलाम जितना हैं। पुलिस बल का मुखिया अपने पिटे हुए जवानों का हाल जानने तक नहीं जाएं तो यही कहा जाएगा कि पुलिस बल बेसहारा और अनाथ हो गया है।
वकीलों की पिटाई से भी कहीं ज्यादा पुलिस बल में इसी बात का दुःख और गुस्सा है कि उनके कप्तान यानी पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने उनके साथ मारपीट करने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने का अपना कानूनी दायित्व निभाने की हिम्मत तो दिखाई ही नहीं। उन्होंने घायल पुलिस वालों से हमदर्दी जताने और पुलिस वालों के हाल पूछने जाने की इंसानियत भी नहीं दिखाई।
पुलिस बल का यह रोष पुलिस मुख्यालय के बाहर कमिश्नर और अन्य आला अफसरों के सामने फूट पड़ा।
जिसके बाद 7 नवंबर को पुलिस कमिश्नरऔर डीसीपी मोनिका भारद्वाज पुलिस वालों का हाल जानने गए।
इस मामले से एक बात यह भी पता चलती हैं कि पुलिसवालों के दिमाग में कहीं न कहीं यह डर है कि हिंसा और आगजनी करने वाले हमलावरों पर काबू पाने और आत्मरक्षा में गोली चलाने के पर्याप्त कारण होने के बावजूद भी अगर उन्होंने गोली चलाई तो आला अफसर उल्टा उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
मातहत वफ़ा करके भी तन्हा रह गए।
पुलिस कमिश्नर ही नही उत्तरी जिला की डीसीपी मोनिका भारद्वाज तो अपने आपरेटर संदीप का हाल जानने तक नहीं गई। आपरेटर संदीप ने अपना यह दर्द अपने साथी के साथ फोन पर बयां किया है। संदीप का एक आडियो वायरल हुआ था।जिससे पता चलता हैं कि पुलिस के आला अफसर कितने गैर जिम्मेदार और संवेदनहीन हो गए है। संदीप ने हाल पूछने वाले अपने साथी को बताया कि अब तक आफिस से भी उसका हाल पूछने के लिए फोन तक नहीं आया।
“जिस मैडम मोनिका भारद्वाज के लिए इतना पिटा उस मैडम को तो यह भनक भी नहीं कि उसके आपरेटर को कितनी चोट लगी और कहां लगी है।”
संदीप ने बताया कि कुछ तो मैडम को बचाने के चक्कर में और कुछ अपनी पिस्तौल बचाने के चक्कर में पिटा। रोते-रोते संदीप ने बताया कि नौकरी से मन बिल्कुल उठ गया।
वहशी हुए वकील।
वकीलों ने जूतों, बेल्ट और लोहे की रॉड से इतनी बुरी तरह मारा कि उसके शरीर के अंग-अंग में दर्द हो रहा है। इसके अलावा अंदरुनी गुमचोट भी इतनी है कि बिस्तर पर पड़ा रोता रहता हूं। बेहोश होने के बाद भी वकील उसके मुंह पर जूते मारते रहे।
संदीप के कंधे की हड्डी ,पसलियों में चोट लगी और सिर में भी टांके लगे।
संदीप ने यह भी बताया कि अमित नामक सिपाही को भी न केवल बुरी तरह पीटा गया बल्कि उसकी पिस्तौल भी लूट ली गई।
संदीप ने आपा नहीं खोया।
इतनी बुरी तरह पिटने के बावजूद संदीप ने अपना आपा नहीं खोया। वर्ना वह अपने बचाव में हमला करने वालों पर गोली भी चला सकता था। ऐसे हालात में उसके द्वारा गोली चलाने को जायज़ ही ठहराया जा सकता था। संदीप की बजाए कोई आम आदमी होता तो वह हमला करने वाले पर गोली चलाने में ज़रा भी देर नहीं करता। दूसरी ओर कानून के ज्ञाता कुछ ऐसे वकील है जिन्होंने मामूली-सी बात पर आपा खो दिया और कानून हाथ में लेकर बिरादरी को शर्मसार कर दिया।
मातहत बलि का बकरा।
इस मामले से एक बात यह भी पता चलती हैं कि पुलिसवालों के दिमाग में कहीं न कहीं यह डर है कि हिंसा और आगजनी करने वाले हमलावरों पर काबू पाने और आत्मरक्षा में गोली चलाने के पर्याप्त कारण होने के बावजूद भी अगर उन्होंने गोली चलाई तो आला अफसर उल्टा उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह डर सही भी लगता है क्योंकि पुलिस अफ़सर ऐसा कुछ होते ही अपनी कुर्सी बचाने के लिए सबसे पहले मातहत को बलि का बकरा बनाते हैं।
इस वजह से वह वह बुरी तरह पिटने को मजबूर हो जाते हैं। पुलिस के हथियार को भी लुटने से बचाने के लिए अपनी जान ख़तरे में डाल देते हैं।
इतनी बुरी तरह पिटने वाले पुलिस वालों का पता लेने अगर उसके आला अफसर भी नहीं जाते तो उसका दुःख तो बढ़ता ही
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