सरकार को परेशानी पैदा करने वालों को सबक सिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अवसर का उपयोग करना चाहिए!
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुलह कराने के प्रयास के बाद भी, पिछले 60 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर अराजकता पैदा करके किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। कई भारत विरोधी ताकतों जैसे सिख फ़ॉर जस्टिस और अति-वामपंथी तत्वों द्वारा उपद्रव मचाने के साथ, सरकार की ओर से कड़ी कार्रवाई करने में हिचक अब स्थिति को बदतर बना रही है। घटनाओं के एक अजीब मोड़ में, हरियाणा में एक जगह पर किसानों के एक समूह ने कोविड टीकाकरण कार्यक्रम को नुकसान पहुँचाया, जो एक जघन्य कृत्य है। किसानों के विरोध प्रदर्शन में घुसपैठ करने वाले ऐसे असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए सरकार की सख्ती की कमी से कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाई
नवीनतम मामला सोमवार (18 जनवरी) को, जब सर्वोच्च न्यायालय ने 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर रैली पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति मांगने के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। शक्तिशाली केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने ट्रेक्टर रैली पर प्रतिबंध लगाने के लिए न्यायालय की अनुमति क्यों मांगी? पुलिस निर्णय क्यों नहीं ले सकती? सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को उसकी शक्तियों और जिम्मेदारियों के बारे में सही ढंग से याद दिलाया, और उन्हें अदालत से आदेश मांगने के लिए लताड़ लगाई। यह घटना सरकार द्वारा निर्णय लेने की कमी को उजागर करती है।
कृषि कानून किसान की भलाई के लिए हैं, लेकिन हमेशा की तरह सरकार और किसानों के बीच एक संचार अंतराल है और इसे तुरंत दूर करने की आवश्यकता है।
शाहीन बाग की पुनरावृत्ति?
दिल्ली में शाहीन बाग विरोध प्रदर्शनों में 100 दिनों से अधिक समय तक जो खेल खेला गया, जो अंततः दिल्ली के दंगों में 52 मौतों में समाप्त हुआ और हजारों घायल हुए और संपत्तियों को भारी नुकसान हुआ था, यह फिर से हो सकता है। फौरी तौर पर चीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि इतने दिनों तक विरोध प्रदेशनों की अनुमति देना सरकार का दोष है। दिल्ली में कानून स्पष्ट हैं; केवल निर्दिष्ट क्षेत्रों और दिन में तय घंटों पर ही विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं। बीजेपी नेतृत्व ने सोचा था कि वे दिल्ली विधानसभा चुनाव में एकीकृत हिंदू वोट प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि मुस्लिम समर्थक संगठनों ने नेशनल हाईवे को अवरुद्ध करके शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन जब नतीजे आए, तो फरवरी 2020 में 70 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी सिर्फ आठ सीटों पर ही जीत पायी। याद रखें उसी बीजेपी ने आठ महीने पहले मई 2019 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सात सीटें जीती थीं। चालाक केजरीवाल ने चुनाव के बाद कीमतों को बढ़ाने के लिए मतदाताओं के लिए मुफ्त पानी और बिजली की सब्सिडी दी थी।
वार्ता ही वार्ता
किसानों के विरोध पर वापस आते हैं, कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कोई सकारात्मक संकेत दिये बिना किसानों की यूनियनों के साथ बातचीत के दसवें दौर में प्रवेश कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभूतपूर्व तरीके से विवादास्पद तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को रोककर एक शांतिपूर्ण समाधान पर पहुंचने का मार्ग खोला है, जिस तरह से सरकार द्वारा इसे लाया गया और संसद में पारित कराया गया उस पर सर्वोच्च न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त की।
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सोशल मीडिया में तुच्छ ट्रॉल्स (मजाक बनाना) करने और किसानों को गाली देने के बजाय, यह सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के लिए सही समय है कि वे सुलह करने के लिए वास्तविक प्रयास करें और स्थिति को बदतर न बनाएं। किसान संगठनों को विरोध वापस लेना चाहिए और अपने कार्यकर्ताओं को कड़ाके की ठंड में बैठने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। कृषि कानून किसान की भलाई के लिए हैं, लेकिन हमेशा की तरह सरकार और किसानों के बीच एक संचार अंतराल है और इसे तुरंत दूर करने की आवश्यकता है।
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