अलकनंदा ग्लेशियर के पिघलने से गंगा-जल में कमी
उत्तराखंड में अलकनंदा नदी घाटी के ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण गंगा नदी में पानी की कमी होने की संभावना है। गंगा नदी में अधिकांश पानी अलकनंदा से आता है। जियोकाटरे जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट ‘इनवेंटर ऑफ ग्लेशियर्स ‘के अनुसार,अलकनंदा ग्लेशियर क्षेत्र में पिछले 50 साल यानी 1968 से 2020 के दौरान 59 वर्ग किलोमीटर में फैला ग्लेशियर पिघल गया है। अलकनंदा के कुल ग्लेशियर क्षेत्र में यानी 50 साल के दौरान आठ प्रतिशत की कमी आ गयी है।
ग्लेशियर क्षेत्र में कमी तभी आती है जब ग्लेशियर पिघलने की दर बर्फ बनने की दर से अधिक होती है। ग्लेशियर का क्षेत्र यहां हर साल 11.7 मीटर की दर से कम होता जा रहा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर अलकनंदा का ग्लेशियर क्षेत्र इतनी ही तेजी से कम होता रहा तो गंगा नदी में पानी की कमी हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि 1968 से 2020 के बीच सर्दी के मौसम का तापमान यहां हर साल 0.03 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, जिससे ग्लेशियर पिघलने की गति तेज हो गयी।
शोधकर्ताओं ने 1968 से सभी उपग्रहीय तस्वीरों का अध्ययन करके और साइट पर जाकर यह रिपोर्ट तैयार की है।
उन्होंने साथ ही यह बताया कि इस अवधि में ग्लेशियरों की संख्या भी बढ़कर 98 से 116 हो गयी। हालांकि, उनका कहना है कि यह कोई खुशी की बात नहीं है। यह प्राकृतिक है।
उन्होंने कहा कि ग्लेशियर एक पेड़ की तरह होता है और उससे कई शाखायें निकलती हैं। अलकनंदा में भी ऐसा ही हुआ है और इसकी वजह जलवायु है।
गौरतलब है कि गत साल भी नेचर में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में तेजी से पिघलते ग्लेशियरों का भारतीय नदियों पर पड़ने वाले असर की चर्चा की गयी थी।
शोध में कहा गया था कि 2000 से 2019 के बीच ग्रीन लैंड और अंटार्कटिक को छोड़कर अन्य ग्लेशियर में 267 गीगाटन बर्फ पिघला।
रिपोर्ट में कहा गया कि अलास्का, आइसलैंड और आल्पस में सबसे तेजी से ग्लेशियर पिघले लेकिन हिंदुकुश और हिमालय में भी स्थिति खराब है।
[आईएएनएस इनपुट के साथ]
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